बिलासपुर
वन अधिकार पट्टा बांटने पर जारी रोक को यथावत रखते हुए हाई कोर्र्ट की डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा है कि समान मामला सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहा है। अगर वे चाहें तो सर्वोच्च न्यायालय जा सकते हैं। मंगलवार को एक जनहित याचिका पर चीफ जसिटस पीआर रामचंद्र मेनन व जस्टिस पीपी साहू मामले की सुनवाई कर रहे थे। जंगल काट कर अपात्रों को बांटे जा रहे वन अधिकार पट्टों पर जांच, अपात्रों को बांटे गये पट्टों को निरस्त करने और पट्टा वितरण की प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग लेकर रायपुर निवासी नितिन सिंघवी द्वारा दायर की गई जनहित याचिका के अलावा सेवानिवृत्त अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक डॉ अनूप भल्ला की हस्तक्षेप याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्रन मेनन तथा जस्टिस पीपी साहू की बेंच ने कहा कि समान प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में भी लंबित है। लिहाजा याचिकाकर्ता चाहे तो सर्वोच्च न्यायालय जा सकते हैं।
डिवीजन बेंच ने यह व्यवस्था देने के साथ ही वन अधिकार पट्टा बांटने पर पूर्व जारी रोक को यथावत रखा है। डिवीजन बेंच ने कहा है कि जारी रोक एक महीने तक यथावत रहेगी। जनहित व हस्तक्षेप याचिका में पूर्वं में डिवीजन बेंच ने दो महीने के लिए पट्टा वितरण पर रोक लगा दी थी।
हस्तक्षेप याचिकाकर्ता डॉ.अनूप भल्ला ने महासमुंद, कवर्धा, धमतरी, में बीते कुछ वर्षो वन अधिकार पट्टा वितरण के लिए हुई वनों की कटाई के वीडियो के अलावा ग्रामीणों और वन कर्मचारियों की बातचीत से संबंधित वीडियो क्लीपिंग हस्तक्षेप याचिका के जरिए कोर्ट के समक्ष पेश की है।
याचिका में इस बात की भी जानकारी दी गई है कि वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अगर कोई अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति द्वारा 13 दिसंबर 2005 के पूर्व 10 एकड़ वनभूमि में कब्जा किया गया है तो उक्त व्यक्ति ही पट्टा प्राप्त करने की पात्रता रखेगा। जिसके लिये उसे प्रमाण प्रस्तुत करना पड़ेगा। इसी प्रकार अन्य परंपरागत वन निवासियों जो 13 दिसंबर 2005 के पूर्व वर्ष 1930 से वन क्षेत्रों में रह रहे हैं वे भी पट्टा प्राप्त करने के पात्र होंगे । याचिका में बताया गया कि छत्तीसगढ़ में सितंबर 2018 तक चार लाख एक हजार 551 पट्टे अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वन निवासी को बांटे गये।
छत्तीसगढ़ में वनों का भाग लगभग 42 प्रतिशत है जिसमें से तीन हजार 412 वर्ग किमी जो कि कुल वन भू भाग का 6.14 प्रतिशत वन अधिकार पट्टे के रूप में बांटा गया।
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि निरस्त किये गये वन अधिकार पट्टों पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता। निरस्त किये गये वन अधिकार पट्टों पर पुनर्विचार के नाम पर अपात्रों को पट्टे बांटे जा रहे है। नवंबर 2015 तक चार लाख 97 हजार 438 पट्टों के आवेदनों को निरस्त कर दिया गया था परंतु पुनर्विचार के बहाने मार्च 2018 तक निरस्त पट्टों की संख्या घटकर चार लाख 55 हजार 131 रह गई। जिन पट्टों के आवेदनों को निरस्त किया गया है वे कब्जाधारी अभी भी वन भूमि में काबिज है।
छत्तीसगढ़ वन विकास निगम लिमिटेड, कवर्धा परियोजना मंडल के वन क्षेत्र में गूगल मैप के अनुसार वर्ष 2013 और वर्ष 2015 में घना जंगल था, जिसकी वन भूमि 21 हजार 122 हेक्टेयर थी, जिसमें से 9.24 प्रतिशत अर्थात 1हजार 949 हेक्टेयर भूमि पर 1 हजार 510 वन अधिकार पट्टे बांटे गए।