ब्रम्हाकुमारी रोहित नगर में हर्षोल्लास से मनाया गया जन्माष्टमी महोत्सव
भोपाल. ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के बावडिय़ा कला स्थित रोहित नगर सेंटर में सुंदर झांकी सजाकर हर्षोल्लास के साथ जन्माष्टमी महोत्सव मनाया गया। इसमें बहनों ने श्रीकृष्ण और राधा का वेश धारण कर रासलीला की। जन्मोत्सव के दौरान आश्रम पर भगवान को याद करते हुए कृष्ण जी को माखन – मिश्री का भोग लगाया गया और सभी को प्रसादी खिलाई गई। इसमें सेंटर के भाई बहनों ने सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मास्क लगाकर हाथों को सैनिटाइज कर झांकी के दर्शन किये। इस मौके पर ब्रह्माकुमारी बहनों ने कोरोना वायरस को संपूर्ण विश्व से जड़ से खत्म करने के लिए खासतौर से पूजा-अर्चना की। साथ-साथ मेडिटेशन भी किया गया।
ब्रह्माकुमारीज़ आश्रम की संचालिका बी.के. डॉ. रीना दीदी ने जन्माष्टमी त्योहार की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि ये दिन हमें उस स्वर्णिम युग की याद दिलाता है, जब इस धरा पर श्री कृष्ण का राज्य था। जहां पर संपूर्ण सुख-शांति एवं पवित्रता थी। वहीं भारत सोने की चिडिय़ा कहलाता था, यही वो राम राज्य था, जिसकी कल्पना महात्मा गांधी ने भी की थी। अगर भारत को फिर से सुख, शांति एवं समृद्धि से भरपूर खुशहाल बनाना है, तो हमें अपने अंदर वही दिव्य गुण जैसे कि धैर्यता, मधुरता, संतुष्टता, हर्षितमुखता आदि गुण धारण करने होंगे। वर्तमान समय में हमारे जीवन में इन्हीं सब गुणों की जरूरत महसूस हो रही है।
श्रीकृष्ण स्वर्णिम युग के प्रथम राजकुमार व श्रीराधा प्रथम राजकुमारी हैं। वर्तमान संगमयुग अर्थात् कलियुग के अंतिम और सतयुग की शुरुआत का समय महापरिवर्तन का समय है। इसके बाद जल्द ही श्रीकृष्ण की दुनिया आने वाली है और उस युग में ले जाने के लिए परमात्मा द्वारा सिलेक्शन का कार्य चल रहा है। भगवान के श्रीमत के अनुसार जो व्यक्ति अपने को परिवर्तन कर रहा है, वही उस सुख-शान्ति भरी दुनिया में जाने के योग्य है।
परमात्मा ने जब सृष्टि की स्थापना की थी, तब केवल आदि सनातन देवी-देवता धर्म ही था। अभी समय है धरा पर अवतरित हुए भगवान को पहचानने का व उनके कहे अनुसार बुराईयों को छोडऩे का। नहीं तो समय ऐसा आएगा, जो हमें बदलना ही पड़ेगा। कोरोना ने भी हमें बहुत कुछ सिखा दिया। हम प्रकृति को तकलीफ देंगे तो वह भी तकलीफ ही देगी। उक्त बातें ब्रह्माकुमारी रीना दीदी ने कही।
संस्कारों व गुणों से बनें श्रीकृष्ण समान सर्वांग सुन्दर
आपने कहा कि श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व हर एक के मन को हरने वाला है। हर मां को अपना बच्चा नयनों का तारा, अति प्यारा, दिल का दुलारा लगता है फिर भी वे श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए तरसती हैं। उनकी झांकियां बनाती हैं, पालने में झुलाती हैं, अनेक ऐसे नामों से पुकारती हैं, जिससे कि उनके प्रति स्नेह, अपनापन, आकर्षण प्रदर्शित होता है। वे उन्हें अपने बच्चे के रूप में पाना चाहती हैं। संसार में सुंदर लोग तो और भी होते हैं, लेकिन आकर्षण का कारण सुंदरता के साथ गुण भी होते हैं और श्रीकृष्ण की महिमा ही है कि वे सर्वगुण सम्पन्न, 16 कलाओं में संपन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी।
आज संसार में सुंदर लोग तो हैं, किन्तु आज के संसार पर हम नजर डालें तो कोई भी ऐसा मानव नहीं होगा जिसने क्रोध करके अपने ही मन को दुखी न किया हो, जो लोभ के दाग-धब्बों से बिल्कुल ही बचा हुआ हो या कुदृष्टि के कुठाराघात से बच गया हो। तब भला हम किसी को सर्वांग सुंदर कैसे कह सकते हैं। संस्कारों के आधार पर ही तो शरीर बनता है और कर्मफल ही तो शरीर गढऩे के निमित्त बनते हैं। यह तो कल्पना से परे है कि वह तन कितना सुंदर होगा, जिस पर कोई कुदृष्टि न पड़ी हो। काम की चोट, क्रोध का प्रहार न हुआ हो और जिसका मन सदा हर्ष में नाचता हो। होंठो पर सदा मुस्कान और नयनों में सदा शान्ति बसती हो, ऐसा सौन्दर्य श्रीकृष्ण का ही था।
हर बालक श्रीकृष्ण और हर बाला हो राधा समान
हमारे देश का गायन था जहां डाल-डाल पर सोने की चिडिय़ा करती है बसेरा, जहां हर बालक श्रीकृष्ण और हर बालिका राधा के समान हो, ऐसा हमारा भारत देश था। ऐसा तभी संभव है, जब हम श्रीकृष्ण के जीवन से शिक्षा लेकर अपना जीवन भी उनके समान बनाने के लिए संकल्पित होंगे। इसी संकल्प के साथ हम जन्माष्टमी मनाते हैं, तो हमारा यह पावन पर्व मनाना सार्थक होगा, क्योंकि हमारे ही बुरे कर्मों से यह दुनिया कलियुग बना है और अब समय है अपने को श्रेष्ठ संस्कारवान और गुणवान बनाकर पुन: स्वर्णिम दुनिया की स्थापना करना।