नई दिल्ली
आर्थिक सुस्ती के बीच कंपनियों की कमान संभाल रहे सीनियर मैनेजर मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं। मनोचिकित्सकों के पास ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ गई है, जो लंबी शिफ्ट, मुश्किल टार्गेट और नौकरी छूटने के डर की शिकायत करते हैं। कई अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि पिछले छह महीनों में डिप्रेशन और चिंता संबंधित परेशानियां बढ़ गई हैं।
कॉस्मोज इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड बिहेवियरल साइंस (CIMBS) के अध्ययन के मुताबिक, सीनियर प्रफेशनल्स के मानसिक स्वास्थ्य पर असर तीन गुना तक बढ़ा है। कंपनियों को एंप्लॉयी-असिस्टेंस प्रोग्राम मुहैया कराने वाली ऑप्टम के मुताबिक, 2019 में स्ट्रेस की शिकायत करने वाले कर्मचारियों की संख्या पिछले साल से दोगुनी बढ़कर 16 पर्सेंट पहुंच गई है।
CIMBS में मनोचिकित्सक शोभना मित्तल ने बताया, 'काम या माली हालत की चिंता से संबंधित शिकायत करने वालों में दूसरे ऑर्गनाइजेशंस में काम करने वाले पेशेवरों के अलावा स्वरोजगार करने वाले लोग और उनके पति-पत्नी भी शामिल हैं।' एक्सपर्ट्स बता रहे हैं कि ज्यादातर मामलों में प्रोफेशनल्स को वित्तीय जोखिम, नौकरी छूटने, बिजनस में नुकसान जैसी चिंताएं सता रही हैं।
ऑप्टम इंटरनैशनल के बिजनस हेड (इंडिया) अंबर आलम ने बताया, 'हमारे पास आने वाली कॉल्स की संख्या बढ़ी है।' काउंसलर और मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स ने बताया कि ज्यादातर कॉल ऐसे सेक्टरों से आ रही हैं, जिन पर आर्थिक सुस्ती का अधिक असर पड़ा है। इनमें ऑटोमोबाइल, टेलिकॉम, रियल एस्टेट और फाइनैंशल सर्विसेज शामिल हैं। उन्होंने बताया कि पेशेवर लोग काउंसलिंग लेने में झिझक नहीं रहे हैं।
भारतीय कंपनियों के प्रोमोटर्स और CEO तनाव के बढ़ते स्तर से रूबरू हैं। हालांकि, इसका समाधान किसी के पास नहीं है। मैरिको के चेयरमैन हर्ष मारीवाला ने कहा, 'स्ट्रेस से निपटने के तरीके लोगों को खुद ढूंढने होंगे। कॉम्पिटीशन बढ़ गया है, जिसके चलते कंपनियों के लिए लगातार आगे बढ़ना मुश्किल हो गया है। बदलावों, कैपिटल मार्केट की उम्मीदों और प्राइवेट इक्विटी प्लेयर्स ने तनाव और बढ़ा दिया है।'
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स ने बताया कि रेगुलेटर्स और अन्य सरकारी एजेंसियों के नियम कड़े करने से भी मुश्किलें बढ़ी हैं। जो कंपनियां सेक्टर में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही हैं, उनके लिए माहौल और खराब हो गया है। बड़े शहरों में रहने के भी अलग तनाव हैं। आदित्य बिड़ला ग्रुप के CEO (कार्बन ब्लैक बिजनस) संतृप्त मिश्रा ने कहा, 'हर व्यक्ति तनाव को अलग तरीके से संभालता है। बिजनस में अगर किसी की परफॉर्मेंस खराब होने से नुकसान होता है, तो सीनियर लीडर के लिए तनाव बढ़ जाता है। ऐसे में हम अक्सर खुद तनाव पाल लेते हैं। अगर बोर्ड ने बहुत मुश्किल टार्गेट सेट कर दिया, तो उससे भी तनाव कई गुना बढ़ जाता है।'
उन्होंने सलाह दी कि CEO को यह समझना चाहिए कि फायदा और नुकसान बिजनस का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा, 'लोगों को ऐसे फैक्टर पर ध्यान देना चाहिए, जिन पर हमारा वश होता है। जो चीजें हमारे नियंत्रण के बाहर हैं, उनके लिए तनाव लेने का कोई मतलब नहीं है।'
5.6 करोड़ भारतीय डिप्रेशन का शिकार
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियां बढ़ गई हैं। 5.6 करोड़ लोग डिप्रेशन के शिकार हैं। 3.8 करोड़ को चिंता संबंधित परेशानियां हैं। इंडिया इंक में नौकरी कर रहे हर पांच में से एक व्यक्ति वर्कप्लेस डिप्रेशन का शिकार है।