नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार (23 जनवरी को कहा कि रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने का केन्द्र को निर्देश देने के लिए भाजपा नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर तीन महीने बाद विचार किया जाएगा। रामसेतु भारत और श्रीलंका के बीच मन्नार की खाड़ी में चूना पत्थरों की श्रृंखला है। रामायण के अनुसार रावण की कैद से सीता को छुड़ाने के लिए भगवान राम की वानर सेना ने रामसेतु की निर्माण किया था।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के लिए दायर याचिका पर शीघ्र सुनवाई के बारे में स्वामी की अर्जी का संज्ञान लिया। पीठ ने स्वामी से कहा, ''आप तीन महीने बाद इसका उल्लेख करें। हम उस समय इस पर विचार करेंगे।"
भाजपा नेता ने कहा कि वह इस मामले को लेकर कानूनी लड़ाई का पहला दौर जीत चुके हैं जिसमें केन्द्र ने रामसेतु के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा कि संबंधित मंत्री ने रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की उनकी मांग पर विचार के लिए 2017 में एक बैठक बुलाई थी, लेकिन इसके बाद इस मामले में कुछ नहीं हुआ है।
शीर्ष अदालत ने अपने समक्ष बड़ी संख्या में लंबित मामलों का जिक्र करते हुए स्वामी से कहा कि वह तीन महीने बाद इस पर शीघ्र सुनवाई का उल्लेख करें। भाजपा नेता ने इससे पहले संप्रग सरकार के कार्यकाल में शुरू की गई सेतुसमुद्रम जहाजरानी परियोजना के खिलाफ शीर्ष अदालत में जनहित याचिका दायर कर रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने का मुद्दा उठाया था।
शीर्ष अदालत ने 2007 में रामसेतु के आसपास इस परियोजना के काम पर रोक लगा दी थी। सेतुसमुद्रम परियोजना के अंतर्गत चूना पत्थरों की इस श्रृंखला को हटाकर 83 किलोमीटर लंबा गहरा जलमार्ग बनाना था। यह जलमार्ग के लिए मन्नार को पाक जलडमरूमध्य से जोड़ने की परियोजना थी। सेतुसमुद्रम परियोजना का कुछ राजनीतिक दल, पर्यावरणविद और चुनिन्दा हिन्दू संगठन विरोध कर रहे थे।
केन्द्र ने बाद में न्यायालय में दायर एक नए हलफनामे में कहा था कि सरकार रामसेतु को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाये बगैर ही इस परियोजना के लिए वैकल्पिक मार्ग की संभावना तलाशेगी। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 13 नवंबर को केन्द्र को रामसेतु मामले में अपना रुख स्पष्ट करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था। न्यायालय ने स्वामी को यह छूट प्रदान की थी कि अगर केन्द्र अपना जवाब दाखिल नहीं करता है तो वह शीर्ष अदालत आ सकते हैं।