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सात फीसदी वेतनभोगी देते हैं सर्वाधिक टैक्स, फिर भी नहीं मिलती है कोई सुविधा

नई दिल्ली
देश भर में वेतनभोगी करदाता जितना टैक्स चुकाते हैं, उसके मुकाबले गैर-वेतनभोगी पर आयकर देय नहीं होता है। देश भर में आलम यह है कि दिल्ली-मुंबई में रहने वाला क्लर्क जिसकी मासिक आमदनी 10 हजार रुपये है, वो भी टैक्स भरता है। हालांकि यूपी या फिर पंजाब का बड़ा किसान जो साल भर में पांच लाख रुपये से अधिक कमाता है, उसकी आमदनी पर किसी तरह का कोई टैक्स देय नहीं होता है। अभी आयकर की हालत ये है कि 15 लाख की गाड़ी खरीदने वाला व्यक्ति केवल 18.78 लाख रुपये अतिरिक्त पैसा टैक्स पर सरकार को दे देता है। इसमें पेट्रोल पर लगने वाले टैक्स के अलावा टोल प्लाजा पर लगने वाला शुल्क भी शुमार है।

30 लाख की सालाना कमाई वाला व्यक्ति आयकर के तौर पर अपनी आय का 43 फीसदी वेतन दे देता है। फिलहाल अभी आयकर की दर 30 फीसदी है, लेकिन इस पर 13 फीसदी सेस और सरचार्ज के तौर पर अतिरिक्त लिए जाते हैं। अभी भी देश में निजी या फिर सरकारी नौकरी में लगे लोगों से आयकर वसूला जाता है, जो केवल सात फीसदी है।

नौकरी पेशा व्यक्ति एक साल में कुल 76306 रुपये टैक्स के तौर पर देता है। वहीं गैर-नौकरीपेशा व्यक्ति केवल 25753 रुपये टैक्स के तौर पर देता है। इस हिसाब से इसमें तीन गुणा का अंतर देखने को मिलता है। अगर गैर नौकरी पेशा व्यक्ति भी टैक्स देने लगें तो सरकार को इससे 50 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त कमाई होनी लगेगी। हालांकि अभी तक किसी भी वित्त मंत्री ने इसके बारे में किसी तरह का कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।

अगर कोई व्यक्ति देश में 15 लाख रुपये की गाड़ी को खरीदना चाहता है, तो उसकी सालाना कमाई 21.42 लाख रुपये होनी चाहिए। 15 लाख की गाड़ी पर उस व्यक्ति को 6.42 लाख टैक्स के तौर पर देने होंगे। कार के कुल मूल्य में से कंपनी और डीलर को 9.80 लाख रुपये मिलते हैं, जिस पर टैक्स के तौर पर वो 5.20 लाख रुपये देते हैं।
अगर कोई व्यक्ति एक लाख किलोमीटर गाड़ी चलाता है तो उस पर उसे अधिकतम 7.55 लाख रुपये का खर्चा आएगा। इसके लिए आपकी कमाई 10.78 लाख रुपये होने चाहिए, क्योंकि आयकर के तौर पर 3.23 लाख और पेट्रोल पर लगने वाले कर के तौर पर 3.92 लाख रुपये देने होंगे। इस हिसाब से आप कुल 32.20 लाख रुपये खर्च करते हैं। यह रकम 15 लाख रुपये की कार खरीदने पर अतिरिक्त देनी होगी।

डॉक्टर, वकील, कोचिंग संचालक जिसमें सबसे ज्यादा कमाई होती है, उनसे सरकार सेवा कर की वसूली नहीं करती है। 2012 में कुल आठ लाख लोगों ने अपनी खेती से आय दिखाई थी, जो कि करोड़ों रुपये में थी, हालांकि इस पर किसी तरह का कोई आयकर नहीं देना पड़ा था। अगर इनसे टैक्स वसूला जाने लगे तो फिर वेतनभोगियों पर कर की मार कम पड़ने लगेगी। इस बारे में कई बार विचार किया गया कि बड़े किसानों की आय पर टैक्स लगाया जाए, लेकिन कोई भी सरकार इसके बारे में फैसला नहीं ले पाई है।

देश में संसद सदस्य भी किसी तरह का कोई टैक्स नहीं देते हैं, जबकि वो अपने वेतन के लिए भी खुद निर्णय लेते हैं। सांसदों को साल भर में 34 मुफ्त हवाई यात्रा एक साथी के साथ, ट्रेन के प्रथम श्रेणी में असीमित मुफ्त यात्राएं, मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं, बिना किराये का घर और 20 हजार रुपये मासिक पेंशन के तौर पर मिलते हैं। यह सारा उनको वेतनभोगी के टैक्स से मिलता है। वरिष्ठ नागरिकों को भी इस दायरे में नहीं लाया जाता है।  

आयकर दाताओं को मजबूरी में स्वच्छ पानी, हवा, निजी सुरक्षा और सड़क का इस्तेमाल करने के लिए टैक्स देना होता है। हालांकि यह खर्च करने के बाद भी उनको कुछ बदले में सरकार की तरफ से मिलता नहीं है। विदेशों में जहां सरकारें स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य खर्च खुद वहन करती हैं, वहीं पर टैक्स देने वाले व्यक्ति को भारत में किसी तरह की सरकारी मदद स्वास्थ्य, शिक्षा, नौकरी जाने पर खर्चा या फिर दुर्घटना होने पर नहीं मिलती है।

 

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