राजनीति

सत्ता का सूखा खत्म नहीं कर पाई BJP, इंतजार के 22 साल में 5 और जुड़े

दिल्ली
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस पर झाड़ू लगा दिया है। कुल पड़े मतों का 50 परसेंट से ज्यादा हिस्सा हासिल कर केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली का ताज पहनेंगे। ताजा रुझानों के मुताबिक आम आदमी पार्टी (आप) 45 से 55 सीटें जीतने की ओर बढ़ रही है। दिल्ली के दंगल ने कई राजनैतिक संदेश दिए हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश , पंजाब के बाद दिल्ली ने साबित किया है कि विधानसभा चुनाव में जनता स्थानीय मुद्दों को तरजीह देती है। शाहीनबाग का मुद्दा भले ही गले नहीं उतरा हो लेकिन बीजेपी ने अपनी स्थिति मजबूत ज़रूर की है।

बीजेपी दिल्ली के दंगल में लेट से कूदी। शाहीनबाग से माहौल बदलने की कोशिश हुई। शुरुआत में केजरीवाल की हवा तेज थी लेकिन अमित शाह के आक्रामक प्रचार ने हालात बदल दिए लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। केजरीवाल ने बेहद चालाकी से दिल्ली के मुद्दों पर फोकस करना जारी रखा। ये आप के पक्ष में गया। दूसरी ओर कांग्रेस ने मानो शुरू से ही हार मान ली थी। ये तो उनके उम्मीदवार मुकेश कुमार के ट्वीट से ही पता चलता है। उन्होंने काउंटिग शुरू होने से पहले ही हार मान ली।

दिल्ली के दंगल में सीधी जंग बीजेपी और केजरीवाल के बीच हुई। चुनवा की घोषणा के समय तो ये लड़ाई भी एकतरफा मानी जा रही थी। बाद में बीजेपी ने वापसी की। इस वापसी का इंजन बना राष्ट्रीय मुद्दे, पीएम नरेंद्र मोदी का चेहरा और शाहीनबाग। दूसरी ओर अऱविंद केजरीवाल बिजली – पानी जैसे बुनियादी मुद्दों को उठाते रहे।

स्थानीय बनाम राष्ट्रीय मुद्दे

दिल्ली की पब्लिक ने स्थानीय मुद्दों पर वोट दिया, ऐसा लगता है। ताजा रुझानों के मुताबिक स्लम, अनियमित कालोनियों और ग्रामीण इलाकों में केजरीवाल की पार्टी जबर्दस्त प्रदर्शन कर रही है। उदाहरण के लिए बुराड़ी सीट लीजिए। विकास के मामले में ये पीछे है। यहां बिहार – उत्तर प्रदेश के लोगों की तादाद काफी है। मुकाबला आप के संजीव झा और नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के कैंडिडेट के बीच है। ट्रेंड के मुताबिक संजीव झा काफी अंतर से आगे हैं और शायद जीत जाएँ।

ये संकेत देता है कि केजरीवाल सरकार ने जिस तरह से 200 यूनिट तक बिजली फ्री कर दी, पानी का बिल कम कर दिया, सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने के लिए काम किया और मोहल्ला क्लिनिक खोले, ये जनता को भा गया। धारा 370, एनआरसी और राम मंदिर जैसे मुद्दे जमीनी हकीकत में दफन हो गए। एक आम दिल्ली वाले को आप का झाड़ू अपना लगा। भावनात्मक मुद्दों से वो प्रभावित नहीं हो पाए।

दूसरी ओर बीजेपी ने वोट प्रतिशत बढ़ाने में सफलता हासिल की है। अभी ये लगता है कि कांग्रेस की खस्ताहाली से बीजेपी की झोली भरी है। नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC), नागरिकता संशोधन कानून ( CAA ) जैसे मुद्दों को बीजेपी ने ज़ोर शोर से उठाया। दिल्ली का शाहीनबाग सीएए विरोध की धुरि बना तो बीजेपी ने बिना कोई संकोच किए इस पर जम कर हमला बोला। अमित शाह और पीएम मोदी ने भी चुनाव प्रचार में इसका जिक्र किया। अमित शाह ने तो यहां तक कहा कि वोटर इतने जोर से कमल पर बटन दबाए कि करंट शाहीनबाग में महसूस हो।

पर ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। शाहीनबाग जिस ओखला विधानसभा क्षेत्र में आता है वहां भी आप जीत की तरफ बढ़ रही है। इससे स्पष्ट है कि वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश फेल हो गई है।

केजरीवाल के चेहरे का जादू

अरविंद केजरीवाल की व्यक्तिगत छवि का फायदा भी आप को मिला। जैसे केंद्र में नरेंद्र मोदी की छवि है वैसे ही आप कार्यकर्ताओं ने केजरीवाल की छवि पेश की। उन पर भ्रष्टाचार के कोई बड़े आरोप नहीं है। जो थे वो साबित नहीं हो पाए। आम लोगों तक उनकी आसान पहुंच ने भी आप की लोकप्रियता बनाए रखी. उन्होंने मैनिफेस्टो में जो वादे किए हैं उस पर दिल्ली ने ज्यादा भरोसा जताया। शीला दीक्षित से भी उनकी तुलना की जा सकती है। जिस तरह शीला ने स्थानीय विकास के मुद्दे पर तीन बार सत्ता हासिल की , उसी तर्ज पर केजरीवाल बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं.

दूसरी ओर बीजेपी के पास कोई चेहरा नहीं था। नरेंद्र मोदी के चेहरे पर 2014 से 2018 के बीच बीजेपी ने कई विधानसभा चुनाव जीते लेकिन 2018 से ट्रेंड बदल गया। गुजरात में कांग्रेस ने बीजेपी को टफ फाइट दी. राजस्थान – मध्य प्रदेश में पार्टी को शिकस्त मिली। स्थानीय नेतृत्व को उभारने और प्रमुखता देने के बदले मोदी पर निर्भरता ने बीजेपी का नुकसान किया।

दिल्ली में मनोज तिवारी बीजेपी के अध्यक्ष हैं, लेकिन कभी भी उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार नहीं बताया गया। पार्टी ने मोदी के चेहरे पर ही भरोसा किया क्योंकि कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों सीटें उसकी झोली में गई। मतलब साफ है कि पार्टी ने स्थानयी चुनावों के ट्रेंड को नहीं समझा।

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