छत्तीसगढ़

संस्कार का बीज रोपने में जैन आचार्यों की बड़ी भूमिका – उइके

रायपुर
मेरे जीवन में संस्कार का बीज रोपने में जैन आचार्यों के प्रवचनों और आशीर्वाद की बड़ी भूमिका है। मैं गोलगंज छिंदवाड़ा में रहीं, वहां अनेक जैन समाज की लड़कियां मेरी मित्र थीं। उनके परिवारों के साथ मुझे भी जैन समाज के आचार्यों का आशीर्वाद मिला और मैं उनके प्रवचनों से लाभान्वित हुईं। उन्होंने मेरे जीवन में संस्कार का बीज रोपने में अहम भूमिका निभाई। यह बात आज दुर्ग में आयोजित भगवती जिन दीक्षा महोत्सव में राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उईके ने अपने उद्बोधन में कही।

सुश्री उइके इस अवसर पर आचार्य विमर्श सागर जी का आशीर्वाद भी लिया। सुश्री उईके ने इस अवसर पर कहा कि मेरा सौभाग्य है कि छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के रूप में पदग्रहण से पूर्व भी मैंने जैन आचार्यों का आशीर्वाद लिया। सुश्री उईके ने कहा कि महावीर स्वामी का संदेश जियो और जीने दो का संदेश है। यह पूरी दुनिया में शांति का संदेश है। महावीर स्वामी का जीवन हमारे सामने बड़ा आदर्श प्रस्तुत करता है। वे राजपरिवार में पैदा हुए लेकिन समाज को सच्ची राह दिखाने सांसारिक सुखों का पूरी तरह से परित्याग कर दिया। सुश्री उईके ने कहा कि जब मैं जैन भिक्षुओं का जीवन देखती हूँ तो उनके प्रति श्रद्धा और बढ़ जाती है। सांसारिक सुखों का पूरी तरह परित्याग कर वे हमें संयम की सीख देते हैं। अहिंसा का पाठ पढ़ाते हैं। अत्यंत संयम और कठिन जीवन बिताने वाले जैन भिक्षु समाज के लिए आदर्श हैं। जैन भिक्षु केवल अपने समाज को राह नहीं दिखा रहे, उनके आदर्शों से पूरे समाज को नई दिशा मिल रही है।

राज्यपाल ने कहा कि मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है और मोक्ष प्राप्त करने के लिए दीक्षा बहुत आवश्यक है। दीक्षित व्यक्ति ही महावीर स्वामी के बताये मार्ग पर चलने में समर्थ होता है। गुरु का आत्मदान और शिष्य का आत्मसमर्पण, एक की कृपा व दूसरे की श्रद्धा के मेल से ही दीक्षा संपन्न होती है। उन्होंने कहा कि इस दीक्षा महोत्सव में मैं शामिल हुई, उसकी मुझे गहरी खुशी है। संतों द्वारा बताये मार्ग पर चलकर ही विश्व कल्याण का मार्ग खुलता है। आचार्य विमर्श सागर महाराज के इतने सुंदर वचन सुनकर मन बहुत हर्षित हुआ है। हर बार इन सुंदर प्रवचनों को सुनकर मन में शुभ संकल्प मजबूत होते हैं। जैन समाज से मेरा गहरा जुड़ाव रहा है। आप लोगों में गहरा सेवा भाव है और आपके बीच आकर, त्याग की, दीक्षा की इस परंपरा को देखकर बहुत सुख मिलता है। इस अवसर पर दुर्ग महापौर श्रीमती चंद्रिका चंद्राकर तथा समाज के अन्य गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे।

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