मध्य प्रदेश

संघ का मास्टर स्ट्रोक- क्या जनगणना में हिंदू धर्म को अपनाएंगे आदिवासी?

भोपाल
पिछले चार दशक से आदिवासियों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) ने जनगणना शुरू होने से पहले हिंदू धर्म से जोड़ने का मास्टर स्ट्रोक लगाने की कोशिश की है. संघ की भोपाल में आयोजित समन्वय बैठक में आदिवासियों (tribal) से अपील की गई कि वे प्रस्तावित जनगणना (census) में अपना धर्म हिंदू दर्ज कराएं. संघ की मुख्य चिंता देश में हिंदुओं की घटती जनसंख्या है. वहीं दूसरी ओर आदिवासी वर्ग जनगणना के फार्म में अपने लिए अलग कोड की मांग कर रहा है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अगर आदिवासियों से धर्म के कॉलम में हिंदू लिखाने में सफल हो जाता है तो यह देश की राजनीति में बड़ा असर डालने वाला कदम होगा.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत एक फरवरी से मध्यप्रदेश के प्रवास पर थे. गुना में तीन दिन के युवा संकल्प शिविर के समापन के बाद मोहन भागवत ने भोपाल में संघ की समन्वय बैठक ली. मध्यप्रदेश, भारतीय जनता पार्टी और संघ का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है. संघ पिछले कई सालों से यहां आदिवासी इलाकों में सक्रिय है. मजबूत पैठ भी आदिवासियों के बीच बनाने में सफलता मिली है. पंद्रह साल की भाजपा सरकार में संघ ने शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी काफी काम किया है. मध्यप्रदेश के अलग-अलग अंचलों में अलग-अलग धर्म विधियों को मानने वाले आदिवासी निवास करते हैं. महाकौशल में गोंड और बैगा आदिवासी, मालवा-निमाड में भील- भीलाला और ग्वालियर-चंबल संभाग में सहरिया आदिवासी हैं. कुल 43 जनजातिय समूह निवासरत हैं. ये समूह एक या एक से अधिक उप जातियों में पृथक-पृथक सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूपों में विभक्त हैं. देश में लगभग 8.1 प्रतिशत आदिवासी हैं. देश में सबसे ज्यादा आदिवासियों की जनसंख्या लगभग 15 प्रतिशत मध्यप्रदेश में है.

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, मध्यप्रदेश में आदिवासियों की कुल आबादी 21.9 प्रतिशत अर्थात डेढ़ करोड़ से अधिक हैं. इनमें सहरिया आदिवासियों की संख्या तेजी से घट रही है. आदिवासियों की जनसंख्या अधिक होने के कारण ही संघ ने मध्यप्रदेश को अपनी रणनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण माना. देश के केन्द्र में होने के कारण भी मध्यप्रदेश को प्राथमिकता में रखा गया. संघ पिछले एक दशक से राज्य के आदिवासियों को हिन्दू धर्म से जोड़ने की कवायद भी कर रहा है. इसके तहत गौंड आदिवासियों के आराध्य बड़ा देव को भगवान महादेव का ही रूप बताने की कोशिश भी चल रही है.

संघ की समन्वय बैठक में अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने बताया कि वर्ष 1991 की जनगणना में हिंदुओं की जनसंख्या 84 प्रतिशत थी. वर्ष 2011 की जनगणना में यह घटकर 69 प्रतिशत रह गई. संघ का मानना है कि यह कमी भील एवं गौंड आदिवासियों द्वारा धर्म के कॉलम में अन्य लिखवाने के कारण हुआ. सरकार अब जनगणना फॉर्म से अन्य का कॉलम हटा चुकी है. अब सिर्फ छह विकल्प इस फार्म हैं. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन. आदिवासी वर्ग जनगणना फॉर्म अपने लिए अलग धर्म के कॉलम की मांग भी लंबे समय से कर रहा है. पिछले साल मार्च में देशभर के आदिवासी दिल्ली में एकत्रित हुए थे. उनकी मांग थी कि जनगणना फॉर्म में आदिवासियों को ट्राइबल या अबॉरिजिनल चुनने का विकल्प दिया जाना चाहिए.

जनगणना के दौरान आदिवासियों को हिंदू धर्म से जोड़ने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने व्यापक रणनीति भी तैयार की है. इस रणनीति के तहत संघ के स्वयं सेवक हर आदिवासी के घर जाकर धर्म के कॉलम में हिंदू धर्म लिखने का आग्रह भी करेंगे. संघ के स्वयं सेवक आदिवासियों के सामने वे तथ्य भी रखेंगे, जो उनके हिंदू होने का प्रमाण हैं. दूसरी और शुक्रवार को भोपाल में गोंड राजाओं के वंशजों का दो दिवसीय अधिवेशन शुरू हुआ है. इस अधिवेशन में भी आदिवासियों के धर्म का मुद्दा छाया हुआ है. इस अधिवेशन में 266 रियासतों के गोंड राजाओं के वंशजों ने हिस्सा लिया. इस कार्यक्रम में राज्य के आदिम जाति कल्याण मंत्री ओंकार सिंह मरकाम भी मौजूद थे. कार्यक्रम में मरकाम का जोर आदिवासियों के सरनेम पर था. मरकाम कहते हैं कि जनगणना में धर्म से ज्यादा जरूरी है कि आदिवासी अपना सरनेम लिखाने पर ज्यादा ध्यान दें. मरकाम कहते हैं कि सरनेम लिखने की चूक के कारण आदिवासियों की पहचान खतरे में पड़ सकती है.

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