विदेश

विद्रोह का अंत नहीं देख हॉन्गकॉन्ग वासियोंं में मची विदेशों में बसने की होड़

 
हॉन्गकॉन्ग

हॉन्गकॉन्ग में गर्मियों के दिनों में शुरू हुआ विद्रोह पतझड़ के मौसम में प्रवेश कर चुका है, लेकिन इसके समझौते का कोई संकेत नहीं मिल रहा है। चीन के इस विशेष प्रशासित क्षेत्र में निकट भविष्य में शांति बहाली की गुंजाइश नहीं देख कई स्थानीय विदेशों में बसने की संभावना तलाशने लगे हैं। यही कारण है कि दूसरे देशों में जाने की अनुमति मांगने वाले आवेदनों में वृद्धि दर्ज की जा रही है।

पासपोर्ट से संबंधित कागजी-कार्रवाई में, स्थानीय लोगों, माइग्रेशन एजेंट्स और दुनियाभर के रियल एस्टेट ब्रोकर्स के साथ किए गए इंटरव्यूज में संकेत मिल रहे हैं कि हॉन्गकॉन्ग से इंसानों और पूंजी का पलायन बढ़ने वाला है। हॉन्ग-कॉन्ग में जिन पर मुकदमा चल रहा है, उनका चीन प्रत्यर्पण किए जाने का प्रावधान किया गया तो पूरा हॉन्गकॉन्ग इसके विरोध में उठ खड़ा हुआ। चीन के खिलाफ विद्रोह पिछले तीन महीनों से थमने का नाम नहीं ले रहा है। उधर, चीन अपनी दमनकारी कार्रवाइयों को लगातार कठोर करता जा रहा है। दमन और निराशा के इसी माहौल में कई हॉन्गकॉन्ग वासी अब पलायन करने पर उतारू हैं। यही वजह है कि वहां इमिग्रेशन सेमिनारों में भीड़ बढ़ने लगी है।

मलयेशिया, ऑस्ट्रेलिया और ताइवान में संबंधित विभाग महसूस कर रहे हैं कि उनके यहां बसने को लेकर पूछताछ बढ़ रही है। वहीं, मेलबॉर्न से लेकर वैंकुवर तक प्रॉपर्टी एजेंट्स के फोन भी लगातार बज रहे हैं। एक निवेशक ने कहा, 'हॉन्गकॉन्ग में कई तरह की अनिश्चितताएं है। 40-50 वर्ष की उम्र के लोग अपने बच्चों के भविष्य के प्रति चिंतित हैं।' उन्होंने कहा, 'हम विकल्प के तौर पर एक अस्थाई निवास चाहते हैं।'

वकीलों और बैंकरों ने जून महीने में कहा था कि हॉन्गकॉन्ग के अमीर लोग अपनी संपत्ति सिंगापुर जैसे देशों में शिफ्ट कर रहे हैं। अब माइग्रेशन एजेंट्स का कहना है कि मध्यवर्गीय परिवार भी देश के बाहर निवास के सस्ते विकल्प की तलाश कर रहे हैं। हॉन्गकॉन्ग में यूनी इमिग्रेशन कंसल्टंसी के सेल्स डायरेक्टर पेगी लाउ बताते हैं, 'इनकी संख्या हाल के वर्षों के मुकाबले सबसे ज्यादा है, 2014 से भी ज्यादा।' उनके पास जून में विरोध-प्रदर्शन शुरू होने से अब तक पलायन को लेकर पूछताछ में सात गुना वृद्धि हुई है।
 

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