वायु प्रदूषण से दृष्टिबाधित होने का बढ़ रहा खतरा

ज्यादा प्रदूषित इलाके में रहने से अंधे होने का खतरा बढ़ सकता है। एक शोध में यह दावा किया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि ज्यादा प्रदूषित इलाकों में रहने वाले लोगों में स्वच्छ इलाकों में रहने वालों की तुलना में ग्लूकोमा (आंख से संबंधित बीमारी) होने का खतरा छह फीसदी तक बढ़ जाता है।

रक्त धमनियां हो जाती हैं संकुचित
दुनियाभर में छह करोड़ लोग ग्लूकोमा की बीमारी से ग्रस्त है। इनमें से दस फीसदी की दृष्टि जा चुकी है। यह बीमारी रेटिना में मौजूद कोशिकाओं के मृत होने से होती है।

यूके में पांच लाख  और अमेरिका में 27 लाख लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि वायु प्रदूषण के कारण रेटिना के पीछे मौजूद रक्त धमनियों के संकरे होने से कोशिकाओं मृत हो जाती हैं या किसी जहरीले रसायन के सीधा आंखों में जाने से नसें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।

सूक्ष्म प्रदूषक तत्व जो वाहनों से निकलते हैं सांस के जरिए फेफड़ों में जाते हैं और रक्त में मिल जाते हैं। रक्त में मौजूद प्रदूषक रक्त धमनियों और तंत्रिकाओं  को संकरा कर देते हैं और इससे रक्तचाप बढ़ जाता है।

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने 111,370 प्रतिभागियों के डाटा का विश्लेषण किया। यह डाटा यूके बायोबैंक से लिया गया था और इन प्रतिभागियों की आंखों की जांच 2006 से लेकर 2010 के बीच में की गई थी। फिर प्रतिभागियों के निवास स्थान की जानकारी के आधार पर वायु प्रदूषण के स्तर की तुलना की गई। जो सबसे प्रदूषित इलाके में रहते थे उनमें ग्लूकोमा होने का खतरा छह फीसदी ज्यादा था।

बढ़ रहे ग्लूकोमा के मरीज
50 में से एक व्यक्ति में 40 साल की उम्र में ग्लूकोमा के संकेत दिखाई दे रहे हैं। इस स्तर पर इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। वहीं, 75 साल की उम्र में 50 में से 10 लोग ग्लूकोमा के शिकार हो जा रहे हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि बूढ़ी होती जनसंख्या के कारण आने वाले कुछ सालों में ग्लूकोमा के मरीजों की संख्या बढ़ेगी।

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