राजनीति

राज्यसभा में नागरिकता संशोधन बिल पर चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने गांधी, सावरकर, जिन्ना और पटेल का किया जिक्र

 

नई दिल्ली
लोकसभा से पास होने के बाद राज्यसभा में इस समय नागरिकता संशोधन बिल पर चर्चा चल रही है। इस दौरान राज्यसभा में कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने बिल का विरोध करते हुए बीजेपी सरकार को महात्मा गांधी के चश्मे से भारत को देखने की नसीहत दे डाली। यही नहीं उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि अगर आज पटेल मोदी से मिलते तो बहुत नाराज होते। विधेयक के विरोध पर आनंद शर्मा ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि टू नेशन थिअरी का प्रस्ताव हिंदू महासभा ने पारित किया था और वी. सावरकर ने ही जिन्ना के विचारों पर सहमति दी थी।

सावरकर ने जिन्ना के विचारों का समर्थन किया था
विधेयक का विरोध करते हुए आनंद शर्मा ने कहा कि कांग्रेस नहीं बल्कि हिंदू महासभा ने एक अधिवेशन में टू नेशन थिअरी का प्रस्ताव पारित किया था और उस वक्त उसकी अध्यक्षता सावरकर ने की थी। उन्होंने कहा, 'टू नेशन थिअरी जो बंटवारे की है, वह कांग्रेस नहीं लाई, वह 1937 में अहमदाबाद में हिंदू महासभा ने प्रस्ताव पारित किया था। उसकी अध्यक्षता सावरकर जी ने की थी। उसके एक साल बाद 1938 में मुस्लिम लीग का अधिवेशन हुआ, इसमें पार्टिशन ऑफ इंडिया प्रस्ताव पेश किया गया।'

बता दें कि इतिहासकारों का कहना है कि टू नेशन थिअरी का सिद्धांत सबसे पहले अल्लामा इकबाल ने दिया, मुस्लिम लीग ने इसे स्वीकार कर लिया और फिर अंग्रेजों के सहयोग से जिन्ना ने इसे लागू करा दिया। इतिहासकारों का कहना है कि सावरकर ने अगस्त 1943 में नागपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जिन्ना के टू नेशन थिअरी के सिद्धांत से सहमति जताई थी। इतिहासकारों अनुसार, तब सावरकर ने कहा था, 'मुझे जिन्ना के टू नेशन थिअरी से कोई आपत्ति नहीं है। हम हिंदू खुद में एक राष्ट्र हैं और यह एक ऐतिहासिक फैक्ट है कि हिंदू और मुस्लिम दो राष्ट्र हैं।'

'गांधी के चश्मे से भारत को देखने की जरूरत'
आनंद शर्मा ने यहां महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए भी कहा कि गांधी का चश्मा सिर्फ विज्ञापन के लिए नहीं है बल्कि उनके चश्मे से भारत को देखने की जरूरत है। बता दें कि महात्मा गांधी मुहम्मद अली जिन्ना की टू नेशन थिअरी के बिल्कुल खिलाफ थे। 1944 में गांधी और जिन्ना के बीच इस विषय को लेकर बातचीत भी हुई थी लेकिन यह पूरी तरह विफल होने के कगार पर आ गई थी। इसके बाद गांधी ने इस मसले पर जिन्ना से अपील करते हुए दो पत्र भी लिखे थे लेकिन इस पर भी जिन्ना नहीं माने।

यही नहीं जब भारत को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली तो गांधी कोलकाता (तब कलकत्ता) में हिंदू-मुस्लिम दंगे के विरोध में उपवास में थे। आजादी से करीब एक महीने उन्होंने कहा था, 'आजादी तो मिल गई है लेकिन मेरी अपनी राय है कि वह दिन खुशी मनाने के लिए नहीं है. …मैं तो उस दिन आजादी मिली समझूंगा जिस दिन हिंदू और मुसलमानों के दिलों की सफाई हो जाएगी।

'…तो मोदी से मिल सरदार पटेल बहुत नाराज होंगे'
बहस के दौरान आनंद शर्मा ने तंज कसते हुए कहा, 'अगर सरदार पटेल कभी आपके प्रधानमंत्री जी (नरेंद्र मोदी) को मिल लिए तो बहुत नाराज होंगे। यह मैं कह सकता हूं।' दरअसल यह सरदार पटेल ही जिन्होंने विभाजन की आग में झुलसे देश को एकता की सूत्र में पिरोया। आजादी के बाद देश में 500 ऐसी रियासतें थीं जो भारत या पाकिस्तान या अगल रहने का फैसला कर सकती थी। यह देश की अखंडता के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द था और बतौर गृहमंत्री पटेल ने जिस सूझबूझ से इन रियासतों को भारतीय गणतंत्र में शामिल होने के लिए मनाया, उसकी सराहना आज भी की जाती है।

लियाकत अली और नेहरू के बीच हुआ था समझौता
इससे पहले विधेयक पर चर्चा के दौरान लियाकत अली का नाम भी लिया गया। बता दें कि भारत और पाकिस्तान के बीच चली छह दिनों की बातचीत के बाद 8 अप्रैल, 1950 को दिल्ली पैक्ट हुआ था। दरअसल, 1947 में भारत के विभाजन के बाद जो लोग अपना देश छोड़कर कहीं नहीं गए, उन्हें संदेह की नजरों से देखा जाने लगा था। लोगों के बीच डर का माहौल पैदा हो गया था।

इस समस्या के समाधान के लिए दोनों देशों के तत्कालीन प्रधानमंत्री यानी भारत की ओर से जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान की ओर से लियाकत अली खान ने कदम उठाया था। उनके बीच 2 अप्रैल 1950 को बातचीत हुई थी। उन्होंने दोनों देशों में रहने वाले अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य धार्मिक अल्पसंख्यकों का भय कम करना, सांप्रदायिक दंगों को समाप्त करना और शांति का माहौल तैयार करना था।

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