जयपुर
पद्मासन में बैठे छात्रों को संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण करते देखकर कोई भी इस भ्रम में पड़ सकता है कि यह स्कूल नहीं बल्कि एक प्राचीन गुरुकुल है। यह नजारा है राजस्थान की राजधानी जयपुर के राजकीय ठाकुर हरिसिंह शेखावत मंडावा प्रवेशिका संस्कृत विद्यालय का। इस सरकारी स्कूल की एक और खास बात यह है कि यहां पर पढ़ने वाले 80 फीसदी बच्चे मुस्लिम हैं।
इस राजकीय स्कूल में पढ़ने वाले 277 छात्रों में 222 मुस्लिम हैं। यहां के स्टूडेंट्स के लिए संस्कृत जीवन जीने का एक तरीका बन गया है। यह हालत तब है जब हाल ही में हाल ही में संस्कृत के प्रफेसर फिरोज खान की बीएचयू में नियुक्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। संस्कृत स्कूल में पढ़ने वाले कई छात्रों के लिए संस्कृत पढ़ाना करियर विकल्प है।
नौ साल की एक छात्रा ने अपना परिचय संस्कृत में कराते हुए कहा, 'मम नाम इल्मा कुरैशी।' इसके बाद उन्होंने अपने साथी स्टूडेंट्स के साथ मिलकर कई श्लोक सुनाए। इल्मा चौथी कक्षा में पढ़ती हैं और अपने परिवार के साथ किराए के घर में रहती हैं। उनका घर हनुमान मंदिर की बाउंड्री से सटा हुआ है। मंदिर में हर दिन हनुमान चालीसा का पाठ होता है और इल्मा को यह पूरा याद हो गया है।
'मुस्लिम बच्चों को चार भाषाओं पर कमांड'
इसी स्कूल में पढ़ने वाले उनके भाई रेहान कुरैशी भी संस्कृत के कठिनतम वाक्यों को मात्र कुछ मिनटों में याद कर डालते हैं। इल्मा कहती हैं, 'मैं संस्कृत को पसंद करती हूं और अपने परिवार के सभी बच्चों, रिश्तेदारों और हरेक को संस्कृत पढ़ाना चाहती हूं।' इल्मा हर दिन शाम को एक मदरसे में भी जाती हैं ताकि धार्मिक शिक्षा हासिल की जा सके। स्कूल के हेडमास्टर वेद निधि शर्मा कहते हैं कि इन मुस्लिम बच्चों को चार भाषाओं संस्कृत, अरबी, हिंदी और ऊर्दू पर कमांड है।
हेडमास्टर शर्मा ने कहा, 'चूंकि ये लोग कई भाषाएं जानते हैं, इसलिए इनका संस्कृत के कठिनतम शब्दों का उच्चारण बहुत अच्छा है। ये लोग संस्कृत में हमेशा अच्छे नंबर लाते हैं, इसकी वजह से हमारा स्कूल अन्य स्कूलों से बेहतर है। सभी बच्चे बहुत गरीब परिवार से हैं और ज्यादातर बच्चे पढ़ाई के बाद काम करके अपने परिवार की मदद करते हैं।' उन्होंने कहा कि चिंता की बात यह है कि स्कूल बीच में छोड़ने वाले बच्चों विशेषकर लड़कियों की संख्या यहां पर काफी ज्यादा है।