रांची
वे पहले आम नागरिक हैं, फिर विधायक और मंत्री अंत में। बात चाहे शहरी विकास से जुड़े कार्यक्रमों की हो अथवा अन्य आयोजनों की, रांची के विधायक सीसी सिंह डंके की चोट पर यह कहते पाए गए हैं। जनता की एक आवाज पर हर छोटे-मोटे आयोजनों पर सशरीर उपस्थिति उनकी खासियत है। अविभाजित बिहार से ही रांची विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में कमल खिलाते आए सीपी ने जब 2014 में भी रांची सीट फतह की, भाजपानीत गठबंधन सरकार ने उन्हें नगर विकास एवं आवास विभाग के अलावा परिवहन विभाग की बागडोर सौंप दी।
एक विधायक के तौर पर स्थानीय मुद्दों के समाधान को लेकर भागदौड़ करने वाले विधायक को बड़े फलक पर काम करने का मौका मिला। डबल इंजन की इस सरकार में विधायक के साथ-साथ मंत्री के रूप में इन्हें डबल शक्ति मिली। राजधानी किसी भी राज्य का मुखौटा होता है, बाहर के प्रदेशों और विदेशों से आने वाले लोग इसकी सूरत देखकर पूरे राज्य की परिकल्पना करते हैं। लिहाजा उन्होंने राजधानी रांची पर कुछ खास ही फोकस किया।
यह कहना कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पिछले डेढ़ दशक की तुलना में विगत पांच वर्षों में राजधानी के विकास की रफ्तार अपेक्षाकृत तेज रही। शहरी जलापूर्ति, सिवरेज-ड्रेनेज/सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, आवास, सड़क निर्माण, यातायात प्रबंधन आदि के क्षेत्रों में इस अवधि में काम हुए। इससे इतर यह कहना कि विधायक के पांच वर्षों के कार्यकाल में राजधानी की सूरत पूरी तरह से बदल गई, ऐसा नहीं हुआ।
झारखंड की भौगोलिक संरचना की बात करें तो राज्य की कुल आबादी का लगभग 24 फीसद हिस्सा शहरों में निवास करता है। इसमें सालना 2.4 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है। शहरीकरण के कारण हाल के वर्षों में राजधानी आसपास के क्षेत्रों में दर्जनों नए मुहल्ले बस गए, अनगिनत बस्तियां बस गईं। आबादी बढ़ी तो आधारभूत संरचनाओं के साथ-साथ बुनियादी सुविधाओं की डिमांड भी बढ़ी। जनता की इन मांगों को पूरा करने के कुछ सफल प्रयास हुए तो बहुत मामलों में जनता को निराश भी होना पड़ा।