नई दिल्ली
देश की सबसे प्रतिष्ठित मानी जाने वाली सिविल सर्विस परीक्षा में पिछले साल हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं ने दमदार वापसी की है। पिछले 30 साल में पहली बार 50 प्रतिशत से अधिक परीक्षार्थी इन भाषाओं से हैं। यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन की ओर से जारी सालाना आंकड़ों में यह बात सामने आई है। इसे इस परीक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं की वापसी का ट्रेंड माना जा रहा है। इसके बाद इन भाषाओं से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स की संख्या में भी तेजी से बढ़ोतरी के संकेत मिलने लगे हैं।
बात सिर्फ इन भाषाओं के माध्यम से परीक्षा देकर सफलता पाने की नहीं है, बल्कि इन्हें बतौर एक वैकल्पिक विषय के साथ भी पास करने का ट्रेंड बढ़ा है। पिछले साल सिविल सेवा परीक्षा में सफल हुए 812 स्टूडेंट्स में 485 ने हिंदी या क्षेत्रीय भाषा के माध्यम से सफलता पायी। यह कुल स्टूडेंट्स का लगभग 60 प्रतिशत है। 2017 में 1056 में 533 स्टूडेंट्स ने हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में सफलता पाई थी। जानकारों का मानना है कि हालिया उठे विवादों के बाद इस परीक्षा में दोबारा इन भाषाओं के स्टूडेंट्स को जब राहत दी गई तब दोबारा यह ट्रेंड शुरू हुआ है।
झुकना पड़ा था सरकार को
बता दें कि चार साल पहले यूपीएसीसी की तरफ से संचालित सिविल सर्विस परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा में सी-सैट पेपर को लेकर छात्रों का उग्र आंदोलन हुआ था। इसमें आरोप लगा था कि हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं के स्टूडेंट्स को बहुत दिक्कत का सामना करन पड़ रहा है। परिणाम में इस आरोप के संकेत मिलते थे। क्षेत्रीय और हिंदीभाषी स्टूडेंट्स इस पेपर को हटाने की मांग पर दो साल तक आंदोलन करते रहे। संसद तक में यह मामला जोरदार तरीके से उठा था। सरकार लंबे समय तक इस मुद्दे पर उलझन की स्थिति में रही। आखिरकार स्टूडेंट्स की मांगों के सामने सरकार को झुकना पड़ा।
सुधारों पर आएगी रिपोर्ट
उधर, सिविल सर्विस परीक्षा में लंबे समय से लंबित सुधारों को लेकर भी हलचल तेज हो गई है। यूपीएससी सूत्रों के अनुसार पीएमओ ने इसके तमाम लंबित प्रस्तावों पर विचार के लिए नीति आयोग की टीम को रिपोर्ट बनाने का जिम्मा दिया है।