जगदलपुर
नेशनल हाईवे क्रमांक 16 पर स्थित डिलमिली में मां दंतेश्वरी के आने की खुशी में शनिवार और रविवार को लगे दो दिवसीय वार्षिक मेला सह मुर्गा बाजार लगा। इसमें 20 हजार से ज्यादा आदिवासी जुटे। मुर्गा लड़ाई के लिए प्रसिद्ध इस मेले में इसके लिए 15 जगह घेरे बनाए गए थे।
हर मैदान पर मुर्गों पर हजारों के दांव लगे। यहां दो दिन में आदिवासियों ने एक हजार मुर्गा जोड़ों की लड़ाई पर करीब एक करोड़ रुपए के दांव लगाए। मुर्गा लड़ाई में शामिल होने और दांव लगाने सीमावर्ती राज्य ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से भी शौकीन यहां पहुंचे थे। पुलिस सुरक्षा के मध्य यह पारंपरिक खेल रविवार शाम तक जारी रहा।
मुर्गा लड़ाई के लिए असील प्रजाति के मुर्गों को बेहतर माना जाता है। रंगों के आधार पर इन्हें कबरी, चितरी, जोधरी, लाली आदि नामों से पुकारा जाता है। असील प्रजाति खासकर आंध्र प्रदेश और बस्तर के सीमावर्ती क्षेत्र में पाई जाती है। लड़ाकू मुर्गों के पैर पर विशेष प्रकार का धारदार ब्लेड बांधा जाता है। इसे काती कहा जाता है। इसे बांधने वाले जानकार मुर्गा गाली के आसपास ही बैठे रहते हैं और काती बांधने का शुल्क भी वसूलते हैं।
डिलमिली मुर्गा बाजार स्थल में करीब 15 मुर्गा गाली (घेरे) बनाए गए थे। यहां प्रत्येक गाली में शनिवार दोपहर से रविवार शाम के मध्य कम से कम 100 जुड़े मुर्गों की लड़ाई हुई। अनुमानत15 मुर्गा गालियों में करीब एक हजार मुर्गा जोड़ों पर दांव लगाया गया। बताया गया कि एक मुर्गा गाली में एक बार में औसतन 10 हजार रुपये दांव पर लगे। यह मुर्गा बाजार करीब 16 घंटे चला और इस अवधि में लगभग एक करोड़ रुपये का दांव लगाया।