नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि संरक्षण की लड़ाई में हमेशा ही बच्चों को नुकसान होता है और वे इसकी भारी कीमत चुकाते हैं। कोर्ट ने कहा कि बच्चे इस दौरान अपने माता-पिता के प्यार और स्नेह से वंचित रहते हैं जबकि इसमें उनकी कोई गलती नहीं होती है। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के अधिकारों का सम्मान करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि वे अपने माता-पिता दोनों के प्यार और स्नेह के हकदार होते हैं।
'तलाक से माता-पिता की जिम्मेदारी खत्म नहीं'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाक से माता-पिता की उनके प्रति जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती है। जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने कहा कि संरक्षण के मामले पर फैसला करते समय अदालतों को बच्चे के सर्वश्रेष्ठ हित को ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि संरक्षण की लड़ाई में वही पीड़ित है। बेंच ने कहा कि अगर मध्यस्थता की प्रक्रिया के माध्यम से वैवाहिक विवाद नहीं सुलझता है तो अदालतों को इसे जितना जल्दी हो सके, सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि इसमें लगने वाले हर दिन के लिए बच्चा बड़ी कीमत चुका रहा होता है।
'लड़ाई में मां जीते या पिता, लेकिन बच्चा हमेशा हारता है'
बेंच ने लंबे समय से वैवाहिक विवाद में उलझे एक दंपती के मामले में अपने फैसले में यह टिप्पणियां कीं। बेंच ने कहा, 'संरक्षण के मामले में इसका कोई मतलब नहीं है कि कौन जीतता है लेकिन हमेशा ही बच्चा नुकसान में रहता है और बच्चे ही इसकी सबसे बड़ी कीमत चुकाते हैं क्योंकि जब अदालत अपनी न्यायिक प्रक्रिया के दौरान उनसे कहती है कि वह माता-पिता में से किसके साथ जाना चाहते हैं तो बच्चा टूट चुका होता है।'
'बच्चों का हित सर्वोपरि'
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे के संरक्षण के मामले का फैसला करते हुए कहा , 'बच्चे की भलाई ही पहला और सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा होता है और यदि बच्चे की भलाई के लिए जरूरी हो तो तकनीकी आपत्तियां इसके आड़े नहीं आ सकतीं।' बेंच ने कहा, 'हालांकि, बच्चे की भलाई के बारे में फैसला करते समय माता-पिता में से किसी एक के दृष्टिकोण को ध्यान में नहीं रखना चाहिए। अदालतों को बच्चे के सर्वश्रेष्ठ हित को सबसे ऊपर रखते हुए संरक्षण के मामले में फैसला करना चाहिए क्योंकि संरक्षण की इस लड़ाई में पीड़ित वही है।'
'सबसे बड़ी कीमत चुकाते हैं बच्चे'
बेंच ने पेश मामले में कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले बच्चे के सर्वश्रेष्ठ हित को ध्यान में रखते हुए माता-पिता के बीच विवाद सुलझाने का प्रयास किया था, लेकिन अगर पति-पत्नी अलग होने या तलाक के लिए अड़े होते हैं तो बच्चे ही इसकी सबसे बड़ी कीमत चुकाते हैं और वे ही इसका दंश झेलते हैं।' कोर्ट ने कहा, 'ऐसे मामले में फैसला होने में विलंब से निश्चित ही व्यक्ति को बड़ा नुकसान होता है और वह अपने उन अधिकारों से वंचित हो जाता है जो संविधान के तहत संरक्षित हैं और जैसे-जैसे दिन गुजरता है तो वैसे ही बच्चा अपने माता-पिता के प्रेम और स्नेह से वंचित होने की कीमत चुका रहा होता है। इसमें उसकी कभी कोई गलती नहीं होती है लेकिन हमेशा ही वह नुकसान में रहता है।'
'माता-पिता के अहंकार में पिसे बच्चे'
बेंच ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विवाद का सर्वमान्य हल खोजने का प्रयास किया लेकिन माता-पिता का अहंकार आगे आ गया और इसका असर उनके दोनों बच्चों पर पड़ा। बेंच ने पति-पत्नी के बीच छिड़ी तलाक की जंग पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस दौरान उनके माता-पिता अपने बच्चों के प्रेम और स्नेह से ही वंचित नहीं हुए बल्कि वे अपने पोते-पोतियों के सानिध्य से भी वंचित होकर इस संसार से विदा हो गए। बेंच ने कहा कि बहुत ही थोड़े ऐसे भाग्यशाली होते हैं जिन्हें अपने जीवन के अंतिम क्षणों में जिनके बच्चों को अपने दादा-दादी का सानिध्य मिलता है।
कोर्ट का अंतरिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सितंबर, 2017 में उसके अंतरिम आदेश में की गई व्यवस्था और बाद के निर्देश जारी रहेंगे। कोर्ट ने इस अंतरिम आदेश में बताया था कि दशहरा, दिवाली और ठंडी की छुट्टियों में ये बच्चे किस तरह से अपने माता पिता के साथ रहेंगे। कोर्ट ने संबंधित पक्षकारों को नाबालिग बच्चे के संरक्षण के लिए अलग से सक्षम अदालत में कार्यवाही शुरू करने की छूट प्रदान की। बेंच ने कहा कि पति द्वारा संबंधित अदालत में दायर तलाक की याचिका पर 31 दिसंबर, 2020 तक फैसला किया जाए। इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मार्च, 2017 में आदेश दिया था कि बच्चों को बोर्डिंग स्कूल में रखा जाए क्योंकि उनका अपने माता-पिता में से किसी एक के पास रहना उनके लिए फायदेमंद नहीं है।