मुंबई
ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों और मरीजों की संख्या के बीच अंतर को कम करने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने 20% मेडिकल पोस्टग्रैजुएशन और 10% एमबीबीएस सीटें ऐसे डॉक्टरों के लिए रिजर्व करने का प्रस्ताव रखा है, जो अंदरूनी इलाकों में जाकर काम करने के इच्छुक हों। एमबीबीएस डॉक्टरों को पांच साल और पोस्ट ग्रैजुएट डॉक्टरों को सात साल के लिए काम करना होगा। हालांकि, इसके साथ की एक बड़ी शर्त भी रखी गई है कि कोर्स पूरा करने के बाद राज्य सरकार के अस्पतालों में काम नहीं करने पर पांच साल की जेल हो सकती है और डिग्री भी जा सकती है।
राज्य कैबिनेट ने सोमवार को इस फैसले को मंजूरी दे दी और अब महाराष्ट्र सरकार और महानगरपालिका मेडिकल कॉलेजों की सीटों के आवंटन नाम के बिल को कानून बनाने के लिए पेश किया जाएगा। आरक्षित सीटें राज्य और नगर निकायों के मेडिकल कॉलेजों में ऐसे छात्रों के लिए होंगी जो सरकारी केंद्रों में लंबे समय के लिए काम करना चाहते होंगे।
300-500 सीटें
शुरुआती अनुमान के मुताबिक करीब 450-500 एमबीबीएस और 300 पीजी सीटें आरक्षण के अंतर्गत आ सकती हैं। मेडिकल शिक्षा और शोध निदेशालय के अध्यक्ष डॉ. टीपी लहाने ने बताया है, 'यह फैसला इसलिए किया गया है ताकि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और दूसरी ग्रामीण, पहाड़ी और सुदूर इलाकों में चलने वाले सुविधा केंद्रों में तैनाती की जा सके। इस कोटा के अंतर्गत सीट पाने वाले स्टूडेंट्स को बॉन्ड भरना होगा जिसे तोड़ने पर पांच साल की सजा और डिग्री रद्द किए जाने की प्रावधान होगा। इस कोटा का इस्तेमाल सिर्फ राज्य के निवासी ही कर सकेंगे।'
'बॉन्ड का नहीं होता पालन'
इस प्रस्ताव पर एक्सपर्ट्स की मिली-जुली प्रतिक्रिया आई है। कइयों का कहना है कि राज्य मौजूदा बॉन्ड्स का क्रियान्वन ही प्रभावी तरीके से नहीं कर सकी है। पब्लिक मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले सभी एमबीबीएस और पीजी स्टूडेंट्स को डिग्री पूरी होने के बाद एक साल तक बॉन्ड पूरा करना होता है। ऐसे नहीं करने पर एमबीबीएस स्टूडेंट्स को 10 लाख रुपये, पीजी डॉक्टरों को 50 लाख रुपये और सुपर-स्पेशलिटी कैंडिडेट्स को 2 करोड़ रुपये भरने पड़ते हैं। हालांकि, आंकड़ों के मुताबिक 10% से भी कम स्टूडेंट बॉन्ड पूरा करते हैं या जुर्माना भरते हैं।