नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से तमिलनाडु के प्राचीन शहर महाबलीपुरम में अनौपचारिक मुलाकात की थी. इन दो दिनों के दौरान उन्होंने चीन के राष्ट्रपति के साथ न केवल लंबी बातचीत की बल्कि इस ऐतिहासिक जगह से उन्हें परिचित भी कराया.
कल महाबलीपुरम में सवेरे तट पर टहलते-टहलते सागर से संवाद करने में खो गया।
ये संवाद मेरा भाव-विश्व है।
इस संवाद भाव को शब्दबद्ध करके आपसे साझा कर रहा हूं-
प्रधानमंत्री ने रविवार को महाबलीपुरम में लिखी अपनी एक कविता साझा की है. उन्होंने लिखा, 'कल महाबलीपुरम में सवेरे तट पर टहलते-टहलते सागर से संवाद करने में खो गया. ये संवाद मेरा भाव-विश्व है.' प्रधानमंत्री ने लिखा कि इस संवाद भाव को शब्दबद्ध करके आपसे साझा कर रहा हूं. उनकी कविता इस तरह है.
हे… सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!
तू धीर है, गंभीर है,
जग को जीवन देता, नीला है नीर तेरा।
ये अथाह विस्तार, ये विशालता,
तेरा ये रूप निराला।
हे… सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!
पीएम मोदी की इस कविता को जानेमाने भजन गायक पंकज उधास ने सराहा है. उन्होंने लिखा, 'अद्भुत संदेश के साथ अद्भुत अभिव्यक्ति.'
लिखते रहे हैं कविता
बहरहाल, बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी पहले भी कविताएं लिखते रहे हैं. 2007 में 'आंख आ धन्य छे' नाम से गुजराती के संकलन उनकी कुल 67 कविताएं छपीं थीं. सात साल बाद वे हिंदी में आईं. अंजना संधीर ने इनका अनुवाद किया और 'आंख ये धन्य है' नाम से यह छपीं.
आलोचकों ने इन कविताओं को जिंदगी की आंच में तपे हुए मन की अभिव्यक्ति माना और कहा कि मोदी की कई कविताएं काव्य कला की दृष्टि से अच्छी हैं. उनकी अधिकतर कवितायें देशभक्ति और मानवता से तो जुड़ी ही थीं, उनमें आदर्शों को समर्पित एक वीतरागी मन का भी आभास हुआ. इन कविताओं में वह एक आत्मविश्वास से लबालब एक ऐसी शख्सियत के रूप में उभरते हैं, जो ईश्वर पर भरोसा रखने के लिए ही पैदा हुआ है.