नई दिल्ली
औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक लोकसभा में पेश किया गया। इसमें औद्योगिक संस्थानों में हड़ताल करने को कठिन और बर्खास्तगी को आसान बनाया गया है। सरकार इसी सत्र में विधेयक पारित करना चाहती है, लेकिन विपक्ष इसे स्थायी समिति को भेजने के पक्ष में है।
नियत अवधि का रोजगार
विधेयक में श्रमिकों की नई श्रेणी बनाई गई है। इसमें फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट यानी एक नियत अवधि के लिए रोजगार भी है। इस अवधि के समाप्त होने पर कामगार का रोजगार अपने आप खत्म हो जाएगा। इस श्रेणी के कामगारों को भी ग्रेच्युटी, बोनस, पीएफ का फायदा देना जरूरी होगा।
कर्मचारी और कंपनी दोनों की जवाबदेही
अगर कोई कर्मचारी अवैध हड़ताल करता है तो उस पर 1000 से 10000 तक जुर्माना व एक महीने की सजा भी हो सकती है। वहीं कंपनी श्रम कानून का उल्लंघन करती है तो उस पर 10 हजार से 10 लाख तक जुर्माना और छह महीने की जेल भी हो सकती है।
* 44 श्रम कानूनों को चार संहिता में बांटने की तैयारी श्रम सुधारों के तहत।
* 10 लाख रुपये तक जुर्माना, छह माह जेल संभव कंपनी प्रबंधन पर कानून तोड़ने पर।
75% समर्थन जरूरी
किसी भी संस्थान में श्रमिक संघ को तभी मान्यता मिलेगी जब उस संस्थान के कम से कम 75 प्रतिशत कामगारों का समर्थन उस संघ को हो। इससे पहले यह सीमा 66 प्रतिशत थी।
सामूहिक आकस्मिक अवकाश भी हड़ताल
सामूहिक आकस्मिक अवकाश को हड़ताल की संज्ञा दी जाएगी और हड़ताल करने से पहले कम से कम 14 दिन का नोटिस देना होगा।
मुआवजे में कमी
नौकरी जाने पर किसी भी कर्मचारी को उस संस्थान में किए गए हर वर्ष काम के लिए 15 दिनों की तनख्वाह का मुआवजा मिलेगा। पहले के विधेयक में 45 दिन के मुआवजे का प्रावधान था।
ये भी अहम प्रावधान
1. नौकरी से निकाले जा रहे कर्मचारी को नए कौशल अर्जित करने का मौका मिलेगा। इसका खर्च पुराना संस्थान ही उठाएगा।
2. कर्मचारी उसे माना जाएगा जिसका कम से कम 15000 रुपये वेतन हो अभी यह 10000 रुपये है।
3. कर्मचारी को निकालने से पहले एक महीने पहले और अगर कंपनी बंद होती है तो दो महीने का नोटिस देना होगा, साथ ही मुआवज़ा भी देना होगा।
सुधारों का फायदा
* श्रम कानून लागू करने में बेहद आसानी होगी।
* कानूनी विवादों के निपटारे में कम समय लगेगा।
* सरल कानूनों से विदेशी कंपनियां आकर्षित होंगी।
* श्रम बाजार वैश्विक अर्थव्यवस्था के मुताबिक होगा।
* भारत में कारोबार में सुगमता आने से निवेश बढ़ेगा।