नई दिल्ली
बीते साल लगातार 5 बार रेपो रेट में कटौती करने के बाद अब रिजर्व बैंक से राहत की उम्मीद कम है. अर्थशास्त्रियों के मुताबिक आम बजट में राजकोषीय घाटा अनुमान बढ़ने और खुदरा महंगाई के आंकड़ों के दबाव की वजह से आरबीआई रेपो रेट में अब किसी भी कटौती के मूड में नहीं है. अगर ऐसा होता है तो आरबीआई लगातार दूसरी बार रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करेगा. दिसंबर की मौद्रिक नीति बैठक में भी रेपो रेट को लेकर कोई फैसला नहीं लिया गया था. हालांकि, कुछ अर्थशास्त्रियों का ये भी मानना है कि आरबीआई लंबे समय बाद रेपो रेट में बढ़ोतरी कर सकता है. बता दें कि चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के घटकर एक दशक के निचले स्तर 5 फीसदी पर आने का अनुमान है. ऐसे में नीति- निर्माताओं से वृद्धि को प्रोत्साहन के उपायों की मांग उठ रही है. वर्तमान में रेपो रेट 5.15 फीसदी पर बरकरार है.
राजकोषीय घाटा और महंगाई के आंकड़े
दरअसल, सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.8 फीसदी कर दिया है. इससे पहले राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.3 प्रतिशत रखा गया था. वहीं दिसंबर में खुदरा मुद्रास्फीति 7.3 फीसदी के उच्च स्तर पर रही. इसका कारण सब्जी खासकर प्याज और टमाटर का महंगा होना है. यह आरबीआई की उम्मीद से ज्यादा है.
क्या कहते हैं अर्थशास्त्री ?
डीबीएस ग्रुप रिसर्च की वरिष्ठ उपाध्यक्ष और अर्थशास्त्री राधिका राव की मानें तो रेपो रेट को यथावत रखा जा सकता है लेकिन आरबीआई नरम रुख बनाए रखेगा ताकि पूंजी की लागत स्थिर और अनुकूल बनी रहे.’’ वहीं एचडीएफसी बैंक के अर्थशास्त्रियों द्वारा तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि आगे चलकर मुद्रास्फीति अनुकूल होने पर स्थितियां वृद्धि की ओर झुकेंगी. रिपोर्ट कहती है कि मुख्य मुद्रास्फीति 7 फीसदी के ऊपर बनी रहेगी. यह रिजर्व बैंक के 6 फीसदी के लक्ष्य से अधिक है. हालांकि, आगे चलकर मुद्रास्फीति में कमी आएगी.