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फूलन देवी वाले बेहमई कांड पर फैसला आज!

कानपुर
उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के अंतर्गत आने वाले बेहमई में 39 साल पहले हुए नरसंहार ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। इस मामले में मुख्य आरोपी रहीं फूलन देवी की हत्या की जा चुकी है। आज यानी 18 जनवरी को एक बार फिर से इस मामले में सुनवाई होनी है। उम्मीद जताई जा रही है कि लंबे समय से चल रहे इस मामले में अब फैसला आ सकता है। दरअसल, बचाव पक्ष ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की कुछ नजीरें देने के लिए अर्जी दी थी। कोर्ट ने इसके लिए 16 जनवरी तक की मोहलत दी थी।

आरोप है कि अपने साथ हुए गैंगरेप का बदला लेने के लिए फूलन देवी और उनके गैंग के अन्य लोगों ने 14 फरवरी 1981 को बेहमई में 20 लोगों को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। मारे गए लोगों में से 17 लोग ठाकुर बिरादरी से थे। वारदात के दो साल बाद तक पुलिस फूलन देवी को गिरफ्तार नहीं कर पाई थी। 1983 में फूलन ने मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण कर दिया था।

फूलन देवी ने तय किया डकैत से सांसद तक का सफर
1993 में फूलन देवी जेल से छूटकर आईं। उन्हें समाजवादी पार्टी (एसपी) ने लोकसभा का टिकट दिया और मीरजापुर से चुनाव जीतकर वह लोकसभा भी पहुंचीं। साल 2001 में शेर सिंह राणा ने फूलन देवी के दिल्ली स्थित आवास पर उनकी हत्या कर दी थी। 2011 में स्पेशल जज (डकैत प्रभावित क्षेत्र) की कोर्ट में राम सिंह, भीखा, पोसा, विश्वनाथ उर्फ पुतानी और श्यामबाबू के खिलाफ आरोप तय होने के बाद ट्रायल शुरू हुआ। राम सिंह की जेल में मौत हो गई। फिलहाल पोसा ही जेल में है।

बेहमई हत्याकांड की मुख्य आरोपी फूलन देवी समेत कई आरोपियों की अलग-अलग कारणों से मौत हो चुकी है लेकिन अभी तक इस मामले में फैसला नहीं आ सका है। इस साल छह जनवरी को इस मामले में फैसला आना था लेकिन बचाव पक्ष की दलीलों के चलते 18 जनवरी की तारीख दे दी गई और मामला एक बार फिर से टल गया।

पीड़ित पक्ष की महज 8 विधवाएं ही जिंदा
इस हत्‍याकांड में मारे गए लोगों की विधवाएं न्‍याय की बाट जोहती रहीं। इनमें से आज महज 8 ही जीवित रह गई हैं। ये भी किसी तरह जानवरों को पालकर अपना जीवन-यापन कर रही हैं। उनसे विधवा पेंशन का वादा किया गया था लेकिन वह वादा ही रहा। गांव में बिजली कुछ समय ही आती है, रात में गांव अंधेरे में डूब जाता है। नजदीकी बस स्‍टैंड यहां से 14 किलोमीटर दूर है। प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र तक जाने में करीब दो घंटे लग‍ते हैं। 300 घरों के इस गांव में रह रही इन विधवाओं के पास गरीबी में जीने के अलावा कोई और रास्‍ता नहीं बचा।

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