अंतरराष्ट्रीय वन मेला 2021 लघु वनोपज में दी जानकारी
भोपाल. राजधानी भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में चल रहे अंतरराष्ट्रीय वन मेला में कई देशों के साथ विभिन्न प्रदेशों से आए वैद्य और उनके द्वारा लाई गई जड़ी बूटियां को लोगों को निरोगी बना रही हैं। लोग निरोगी काया के लिए घर में उपयोग होने वाले कई प्रकार के मसालों के साथ ही आस पास पाए जाने वाले पेड़ पौधे, फल फूल, पत्यिों आदि का सही तरीके से सेवन करके निरोगी काया को पा सकते हैं। आप को ऐसे ही कुछ नुस्खे बता रहे हैं योग गुरु महेश अग्रवाल।
योग गुरु ने बताया कि हमारी संस्था आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड भोपाल द्वारा प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचार-प्रसार के लिए नियमित ऑनलाइन एवं ऑफलाइन नि:शुल्क प्रशिक्षण के साथ ही आयोजित होने वाले मेलों में स्टाल लगाकर मेला में आने वाले लोगों को नि:शुल्क प्रशिक्षण एवं नि:शुल्क स्वास्थ्य पत्रिका दी जाती है। योगाचार्य डॉ. फूलचंद जैन योगीराज, आरोग्य केन्द्र के डॉ. रमेश टेवानी, मधुमेह विषेशज्ञ डॉ. नरेन्द्र भार्गव, डॉ. रुपसिंग राजपूत, योग प्रशिक्षक नेहा शर्मा, अर्पित शर्मा, गुंजन अग्रवाल, पूर्णिमा सोनी, सीमा खत्री ने रहकर स्टाल पर आने वाले लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जा रहा है।
इन लघु वनोपज के उपयोग से मिलता है स्वास्थ्य लाभ
त्वचा रोग रोधी औषधीय वनस्पति चंदन: प्रयोज्य अंग काण्डसार।
नीम : प्रयोज्य अंग बीज, पत्र, त्वक, तैल।
पलाश: प्रयोज्य अंग बीज।
केशर: प्रयोज्य अंग पुष्प का कृक्षि भाग।
सारीवा: प्रयोज्य अंग मूल मंजिष्ठा
दमा रोग रोधी औषधीय वनस्पति तुलसी: प्रयोज्य अंग पत्र स्वरस।
वासा: प्रयोज्य अंग पत्र दमवेल। प्रयोज्य अंग पत। अदरक।
दालचीनी: प्रयोज्य अंग त्वक, पत्र, पिप्पली।
महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए औषधीय वनस्पति घृतकुमारी: प्रयोज्य अंग पत्र, उपयोग: दर्दयुक्त माहवारी, त्वचा, अग्निमांध। मुंनगा (सहजन) प्रयोज्य अंग- पत्ती, बीज, छाल उपयोग- मासिक धर्म नियामक, पोषक। शतावरी प्रयोज्य अंग जड़ उपयोग- बल्य, स्तन्य जनन। अशोक प्रयोज्य अंग- बीज, पत्तीयां उपयोग- रजोरोग।
मधुमेह निवारक औषधीय वनस्पति
दारूहरिद्रा: पैन्क्रियाज की कार्यक्षमता प्रयोज्य अंग-मूल काण्ड।
विजयसार: ब्लड शुगर के स्तर को सामान्य बनाकर कोशिकाओं को मजबूती प्रदान करती है।
मंजिष्ठा: एंटी ऑक्सीडेट, आंतरिक अंगों को स्वस्थ रखता है, प्रयोज्य अंग मूल।
गुडुची: शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धी करता है। प्रयोज्य अंग काण्ड।
गुड़मार: ब्लड शुगर के स्तर को सामान्य बनाकर कोशिकाओं को मजबूती प्रदान करती है।
मैथी: विटामिन व मिनरल का स्त्रोत, शरीर के अंगों की कार्यक्षमता बढ़ाती है। प्रयोज्य अंग पंचांग-बीज।
कैंसर रोधी औषधीय वनस्पति: तालिस पत्र (थोना/गिरमी)- प्रयोज्य अंग पत्ती, फल, भिलावा/भल्लातक प्रयोज्य अंग: फल।
बन ककड़ी: प्रयोज्य अंग: मूल तथा रेजिन। सदाबहार प्रयोज्य अंग जड़, पत्र।
चित्रक प्रयोज्य अंग: मूल त्वक।
स्थानीय वनस्पतियां एवं उनका औषधीय उपयोग
गूलर उपयोग: मुख रोग रक्त स्त्राव, प्रदर रोग।
सेमल उपयोग: गुदा रोग रक्तातिसार।
शंखपुष्पी: उपयोग बुद्धिवर्धक।
गोखरू उपयोग गर्दा रोग, पथरी। अर्क उपयोग: उदर रोग, कैंसर रोग।
बेल उपयोग: आमातिसार, पेट के छाले।
कैथ उपयोग: ताप घा अतिसार, क्षय नाशक।
खैर उपयोग: रक्त स्त्राव श्वेत प्रदर रक्त प्रदर।
पलाश उपयोग: मुख रोग रसायन, वयस्थापन।
सीताफल उपयोग: पोषक कृमि रोग।
अग्निमंथ उपयोग: सूजन, दर्द नाशक।
आम उपयोग: पोषक रक्त अतिसार, मुख रोग।
नींबू उपयोग: रुचि बर्धक लू, उल्टी।
अडूसा उपयोग: खासी, श्वास रोग क्षय रोग, रक्तस्त्राव।
पुनर्नवा उपयोग: सूजन लीवर रोग।
अमरूद उपयोग: मुख छाले।
दुर्बा प्रदर रोग रक्त स्त्राव।
अमलतास उपयोग: कब्ज। अपामार्ग उपयोग मोटापा सिर के रोग, उदर रोग। एरड उपयोग दर्द कब्जी। ना ही उपयोग मलेरिया।
धनिया उपयोग: दाह विष नाशक।
हल्दी उपयोग: मधुमेह रक्त शोधक, कैंसर।
अनार उपयोग: मुख रोग रक्तस्त्राव।
नीम उपयोग: दातून, फोड़ा-फुंसी, घाव।
पौदीना उपयोग: उल्टी, लू, पेट दर्द, गैस।
इमली उपयोग: तापघात अतिसार।
तुलसी उपयोग सर्दी: जुकाम, खांसी-बुखार।
मीठा नीम उपयोग: नेत्र रोग, अपचन, पेट रोग।
बबूल: दातून, फोड़ा-फुंसी, घाव।
ग्वारपाठा उपयोग: जलना, त्वचा रोग, निखार।
गिलोय उपयोग: बुखार, जलन, दर्द, गुर्दा रोग।
आंवला उपयोग: मुख रोग रसायन, वयस्थापन
महुआ उपयोग: पोषक।
जलजमनी उपयोग: विष नाशक, श्वेत प्रदर।
जामुन उपयोग: मधुमेह।
अर्जुन उपयोग: हृदय रोग, बल वर्धक।
सौंफ उपयोग: पेट दर्द, मरोड़, उल्टी।
लाजवंती उपयोग: प्रदर रोग, रक्त स्त्राव।
अजवाइन उपयोग: पेट दर्द, गैस, कृमि।
अदरक उपयोग: खांसी जुकाम, दर्द।
लहसून उपयोग: जुकाम, जोड़ों का दर्द।
शतावरी उपयोग: कुपोषण दुग्धवर्धक, शक्तिवर्धक।
नागरमोथा उपयोग: उदर रोग, अतिसार।
बथुआ उपयोग: पोषक शुक्रवर्धक।
भृंगराज उपयोग: केश वर्धक।
वट उपयोग: मुख रोग रक्त स्राव।
पीपल उपयोग: मुख रोग, रक्त स्राव।
अश्वगंध उपयोग: रसायन, बलवर्धक।
निर्गुडी उपयोग: वातरोग तथा सिंकाई में।
भूम्यामलय उपयोग: अग्निमांध अम्लपित्त।
बला: उपयोग वात विकार पक्षाघात।
परिजात उपयोग: सियाटिका, लीवररोग।
करेला उपयोग: मधुमेह ज्वर, मेदोरोग।
हींग उपयोग: अग्मिांद्य, फेफड़े के रोग।
गुडहल उपयोग: खालित्य, प्रदर।
कांचनार उपयोग: शरीर का कोई भी गांठ, स्थूलता नाशक।
मकोय उपयोग: यकृत विकार, चर्मरोग, मूत्ररोग।
मुनगा उपयोग कृमि, पोषक, विबंध, पक्षाघात।
मण्डूकपर्णी उपयोग: मेध्य, स्मरण शक्ति वर्धक, अग्लिदीपक।
आपकी रसोई आपकी सहेली चिकित्सकीय उपादेयता
आपकी रसोई में प्रयोग होने वाले मसाले, आपकी नित्यप्रति होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में सहायक है, जैसे मेथी डायबिटीज, ज्वर, भूख न लगना, खांसी, रजोनिवृत्ति स्तन्यजनन में लाभदायक। सौंफ उल्टी सिरदर्द जलन। दालचीनी अपच, फ्लू खांसी जोड़ों का दर्द। यीस्ट इन्फेक्शन मधुमेह, बुद्धिवर्धक में लाभदायक। अदरक ज्वर, खांसी, माइग्रेन, गर्भावस्था के दौरान मिचली, माहवारी में दर्द में लाभदायक। लहसुन कोलेस्ट्रोल घटाने में सहायक, खून को पतला करने में सहायक, मधुमेह, एंटीफंगल, वायरल बुखार में लाभदायक। काली मिर्च प्रतिश्याय, खासी, श्वास, अजीर्ण (खाना न पचना) दन्तशूल, दन्तकृमि में मञ्जन, धर्म रोगों में लेप या तेल में मिलाकर लेप, फुंसियों पर लेप, वात विकास, शीत ज्वर, रजोरोध, मूत्र कृच्छ। लौंग अम्लपित्त, हर्दि, तृष्णा, कास, स्वास हिक्का, धर्म विकार में लौंग का तैल, आमवात, कटिशूल में मालिश, दन्तशूल में, दन्तकृमि में लंवगोदक में।
धनिया: गैस, प्यास की अधिकता माईग्रेन, मिचली मुंह के छालों में लाभदायक।
सोवा: एसिडिटी, कब्ज, प्रवाहिका, जुकाम इन्फ्लुएन्जा, स्तन्यजनन, माहवारी के दर्द में।
हींग गैस: वायरल बुकार, स्वाइन फ्लू, (बैक्टीरियल इन्फेक्शन में लाभदायक।
हल्दी: शोधहर, गैस, वसा पचाने में सहायक, खून को पतला करने में, दर्द में लाभदायक।
अजवाइन: पेट दर्द, खांसी फ्लू जोड़ दर्द, दर्द में लाभदायक।
जीरा: उल्टी, अजीर्णखाना, आध्मान उदरशूल ग्रहणी, अर्श कृमि रोग में जीरा भूनकर चूर्ण मधु से मूत्राघात, अश्मरी में जीरे का चूर्ण चीनी या मिश्री से स्तन्यवर्धनार्थ गुड़ के साथ, श्वेत प्रदर में गर्भाशय विशोधन के लिए के रोगों में लेप।
राई (राजिका): अरुचि, अजीर्ण, उदरशूल, वातव्याधि मे बीजों का लेप चर्म रोगों में लेप, गलशोथ, दन्तमूल।
ब्राह्मी पंचांग: मेध्य, तुलसी प्रतिश्याय, कास, (सर्दी, खांसी), भूम्यामलकी पंचांग यकृत लिवर।
हरीतकी फल: दीपन, पाचन, रसायन, अस्थि श्रृंखला, काण्ड (स्वरस)-अस्थि भग्न।
घृतकुमारी पत्र स्वरस: मांसपेशी शक्ति वर्धक।
जीवन्ती मूल: दृष्टि शक्ति वर्धक।
अर्जुन छाल: हृदय रोग।
बिल्व फल, पत्र: आंत्र, पाचन संबंधी रोग।
पर्णबीज: वृक्क अश्मरी।
निर्गुण्डी पत्र: संधि शोथ।
इन औषधीय वनस्पति के साथ ही नियमित आहार-विहार एवं तनाव रहित जीवन शैली अपनाकर मधुमेह से बचा जा सकता है।