भोपाल
मुख्यमंत्री कमल नाथ ने सरदार सरोवर परियोजना में मध्यप्रदेश से संबंधित मुद्दों को तत्काल मैत्रीपूर्वक हल करने के लिए नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की बैठक बुलाने का आग्रह किया है। कमल नाथ ने केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को लिखे पत्र में मध्यप्रदेश के हितों की अनदेखी होने की विस्तार से जानकारी दी है।
मुख्यमंत्री ने पत्र में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का हवाला देते हुए लिखा कि भारत सरकार ने 1969 में नर्मदा जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन किया था। इस ट्रिब्यूनल ने सात दिसंबर 1979 को एक अंतरिम आदेश पारित किया था। ट्रिब्यूनल ने भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय के अधीन नर्मदा नियंत्रण अथॉरिटी नाम की एजेंसी का भी गठन इस उद्देश्य से किया था कि जो आदेश पारित किया गया, उसका ठीक से अमल करवाना। इसमें जितने भी सहभागी राज्य शामिल थे, उनके द्वारा इस अथॉरिटी के खर्चों को बराबर वहन करना था । बाद के साल में नर्मदा कन्ट्रोल अथॉरिटी, जिसका गठन किया गया, वह कई अवसरों पर अपने काम को ठीक से करने में असफल साबित हुई। मुख्यमंत्री ने कहा कि जल संविधान के अनुच्छेद सात में समवर्ती सूची का विषय है । संविधान की संघीय व्यवस्था में जो निर्णय महत्वपूर्ण हैं, उनमें एजेंसी ने निष्पक्षता के सिद्धांत पर अमल नहीं किया।
कमल नाथ ने केन्द्रीय मंत्री को अवगत कराया कि मध्यप्रदेश सरकार का मत है कि नर्मदा कन्ट्रोल अथॉरिटी, जिसका गठन अवार्ड का अमल करवाने के लिए हुआ था, वह अपने कर्तव्यों का पालन करने और सहभागी राज्यों के हितों की रक्षा करने में असफल साबित हुई है । उसने ऐसे निर्णय लिए हैं, जिनसे प्रदेश के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। उन्होंने इसके उदाहरण भी दिये हैं।
मुख्यमंत्री ने बताया कि वर्ष 2018-19 में गुजरात सरकार ने सरदार सरोवर परियोजना के रिवर बेड पावर हाउस के माध्यम से विद्युत उत्पादन नहीं किया, जिसमें मध्यप्रदेश की भी जल की हिस्सेदारी थी। उसने इसे परियोजना में जल भरने के लिए सुरक्षित रखा। नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी के अध्यक्ष ने 15 अप्रैल 2019 को रिवर बेड पावर हाउस को संचालित नहीं करने का एकतरफा निर्णय लिया, जिससे सरदार सरोवर परियोजना जलाशय को आने वाले मानसून में भरा जा सके।
कमल नाथ ने कहा कि प्रदेश के मुख्य सचिव ने 27 मई 2019 को नर्मदा कन्ट्रोल अथॉरिटी के अध्यक्ष से उनके निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए आग्रह किया कि जलाशय रेगुलेट करने का प्रस्ताव जल्दी से जल्दी नर्मदा कन्ट्रोल अथॉरिटी के सामने रखा जाए। इसके बाद 12-6-19 को मध्यप्रदेश की ओर से स्मरण दिलाया गया कि 30 जून 2019 के पहले अत्यावश्यक रुप से इस पर कार्रवाई करें क्योंकि इस महीने 2018-19 के वर्तमान जल वर्ष का समापन हो रहा है ताकि इसमें आगे कानूनी अड़चन नहीं आ पाए । राज्य के इस आग्रह को नकार दिया गया। नर्मदा कन्ट्रोल अथॉरिटी ने ट्रिब्यूनल के आदेश के उल्लंघन की अनदेखी की। सरदार सरोवर प्रोजेक्ट के डाउनस्ट्रीम में पानी रोकने की मेड बना दिया, ताकि रिवर बेड पावर हाउस के संचालन में मदद मिले। ट्रिब्यूनल द्वारा गुजरात सरकार के रिवर बेड पावर हाउस के पंपिंग संचालन के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया गया। पंपिंग ऑपरेशन के कारण यूनिट 3 (पावर) में मध्यप्रदेश की हिस्सेदारी की लागत ट्रिब्यूनल द्वारा तय लागत से काफी कम होती।
मुख्यमंत्री ने लिखा कि मध्यप्रदेश द्वारा नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी के समक्ष कई बार आग्रह किया गया कि इस मुद्दे को नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी की बैठक में रखा जाए, जिस पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया। वर्ष 2017-18 में गुजरात सरकार को भागीदार राज्यों और मध्यप्रदेश सरकार ने इस शर्त पर मिनिमम ड्रा डाउनलेवल के नीचे इरीगेशन बायपास टनल के माध्यम से अपने हिस्से का उपयोग करने देने पर राजी हुए कि इससे बिजली का जो नुकसान होगा और ट्रिब्यूनल के आदेश के मुताबिक अत्यधिक उपयोग होगा, उसकी भरपाई की जाएगी। बाँध स्तर के नियमन के लिए बनी कमेटी ने प्रावधानों के विरुद्ध जाकर 2018-19 में गुजरात सरकार द्वारा ज्यादा पानी के उपयोग को संज्ञान में नहीं लिया। इससे मध्यप्रदेश के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा । तटबंध और लिंक चैनल निर्माण की लागत का भार इकाई-2 से वसूला जाना चाहिए था क्योंकि ये संरचनाएँ वाटर कैरियर सिस्टम की अभिन्न अंग हैं, जो कैनाल हेड पावर हाउस के माध्यम से मुख्य नियमन से संबंधित हैं। इसका भुगतान यूनिट- 3 से वसूला जा रहा है, जिससे मध्यप्रदेश को अनावश्यक वित्तीय भार का सामना करना पड़ता है।
मुख्यमंत्री ने मध्यप्रदेश का मत बताते हुए यह भी लिखा कि पिछले दो दशकों में ट्रिब्यूनल द्वारा तय राहत और पुनर्वास की लागत देने में गुजरात सरकार असफल साबित हुई है। इसे सुप्रीम कोर्ट के 18/10/2000 के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। इससे मध्यप्रदेश के वित्तीय हितों पर कुठाराघात हुआ है। गुजरात सरकार और नर्मदा कन्ट्रोल अथॉरिटी को तत्काल प्रभाव से इन मुद्दों पर विचार करना चाहिए और राहत एवं पुनर्वास के लिए मध्यप्रदेश को पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराना चाहिए ताकि मध्यप्रदेश को अनावश्यक रूप से वित्तीय भार नहीं उठाना पड़े।
ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट के आदेश 18/10/2000 के अनुसार गुजरात सरकार को राहत एवं पुनर्वास का पूरा खर्च देना होगा, हालांकि गुजरात को अभी खर्च देना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट ने 8/2/2017 के आदेश में परियोजना प्रभावित परिवारों को 60 लाख रुपए उन्हें देना है। उन्होंने राहत एवं पुनर्वास पैकेज नहीं लिया था। उन्होंने विशेष पुनर्वास अनुदान की केवल पहली किश्त ली थी। निर्णय के समय करीब 681 प्रकरण ऐ