नई दिल्ली
केंद्र सरकार ने नगाओं के लिए अलग झंडा और संविधान की एनएससीएन-आईएम (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड) की मांग को नकार दिया है। सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि बंदूकों के साये में उग्रवादी समूह के साथ अंतहीन वार्ता स्वीकार्य नहीं है। नगा वार्ता के लिए वार्ताकार और नगालैंड के राज्यपाल आर. एन. रवि ने कहा कि केंद्र सरकार दशकों लंबी शांति वार्ता की प्रक्रिया को अविलंब निष्कर्ष पर पहुंचाएगी।
रवि ने बयान जारी कर कहा कि परस्पर सहमति से विस्तृत समझौते का मसौदा तैयार किया गया है जिसमें सभी महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं। बयान में कहा गया है, ‘दुर्भाग्य से इस समय एनएससीएन-आईएम ने देरी करने का रूख अपना रखा है और अलग नगा राष्ट्रीय झंडा और संविधान जैसे विवादास्पद मुद्दों को उठा रहा है जिस पर वे भारत सरकार के रूख से पूरी तरह अवगत हैं।’
कश्मीर में अब अलग झंडा और संविधान नहीं
बता दें केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को पांच अगस्त को समाप्त करने की घोषणा कर दी थी और राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों में बांट दिया था। विशेष दर्जा समाप्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और संविधान भी समाप्त हो गया। सत्तारूढ़ बीजेपी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई अवसरों पर स्पष्ट किया कि पूरे भारत के लिए वे केवल एक झंडे और एक संविधान में विश्वास करते हैं।
रवि ने कहा कि एनएससीएन-आईएम ने समझौते के प्रारूप को ‘शरारतपूर्ण तरीके’ से लंबा खींचा है और इसमें काल्पनिक विषय डाल रहा है। समझौते के प्रारूप पर तीन अगस्त 2015 को एनएससीएन-आईएम के महासचिव थुइंगलेंग मुइवा और सरकार के वार्ताकार रवि ने प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए थे।
रवि ने कहा कि एनएससीएन-आईएम के कुछ नेता विभिन्न मीडिया संगठनों के माध्यम से लोगों को ‘बेतुकी धारणाओं और पूर्व धारणाओं’ से गुमराह कर रहे हैं। और इस पर वे भारत सरकार के साथ पहले ही सहमत हो चुके हैं। एनएससीएन-आईएम के कुछ नेताओं के ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण रूख के कारण रवि ने 18 अक्टूबर को कोहिमा में नगा समाज के कुछ प्रमुख पक्षकारों के साथ लंबी बैठक की। बैठक में नगालैंड के 14 नगा जनजातियों, नगालैंड के सभी गैर नगा जनजाति, नगालैंड गांव बुढा संगठन, नगालैंड जनजाति परिषद्, गिरजाघर के नेताओं और नागरिक समाज संगठनों का शीर्ष नेतृत्व शामिल हुआ।
बयान में कहा गया है कि नगा नेताओं ने समझौते के पक्ष में जोरदार समर्थन जताकर जिस राजनीतिक परिपक्वता और बुद्धिमत्ता का परिचय दिया वह सराहनीय है। इसमें कहा गया है, ‘नगा लोगों की इच्छाओं का सम्मान करते हुए भारत की सरकार बिना किसी देरी के शांति प्रक्रिया को निष्कर्ष पर पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है। बंदूकों के साये में अंतहीन वार्ता स्वीकार्य नहीं है।’ बयान में कहा गया है कि भारत सरकार वार्ता में शामिल सभी पक्षों से उम्मीद करती है कि लोगों की इच्छाओं पर ध्यान दें और तय समय के अंदर नगा शांति प्रक्रिया को निष्कर्ष पर पहुंचाने में मदद करें।
18 साल के बाद आया समझौता प्रारूप
समझौता प्रारूप 18 वर्षों तक 80 दौर की वार्ता के बाद आया है। इसमें पहली सफलता 1997 में मिली थी जब नगालैंड में दशकों तक उग्रवाद के बाद संघर्षविराम समझौता हुआ था। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के तुरंत बाद नगालैंड में उग्रवाद की शुरुआत हुई थी। रवि ने कहा कि भारत सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी के गतिशील और निर्णायक नेतृत्व में नगा शांति प्रक्रिया को निष्कर्ष तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है जो पिछले 22 वर्ष से अधिक समय से चल रहा है। उन्होंने कहा कि परिणामस्वरूप नगा शांति प्रक्रिया पिछले पांच वर्षों में वास्तव में समग्र बन गई है और निष्कर्ष के चरण तक पहुंच चुकी है।