नई दिल्ली
अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर देश की स्थिति सुधरते नहीं दिखाई दे रही है। देश में बुनियादी क्षेत्र के आठ उद्योगों का उत्पादन अक्तूबर में 5.8 प्रतिशत घटा है जो आर्थिक नरमी के गहराने की ओर इशारा करता है। सरकार ने शुक्रवार को आधिकारिक आंकड़े जारी किए। आठ प्रमुख उद्योगों में से छह में अक्तूबर में गिरावट दर्ज की गई।
देश में कोयला उत्पादन अक्तूबर में 17.6 प्रतिशत, कच्चा तेल उत्पादन 5.1 प्रतिशत और प्राकृतिक गैस का उत्पादन 5.7 प्रतिशत गिरा। इस दौरान सीमेंट उत्पादन 7.7 प्रतिशत, स्टील 1.6 प्रतिशत और बिजली उत्पादन 12.4 प्रतिशत गिर गया। समीक्षावधि में सिर्फ उवर्रक क्षेत्र में सालाना आधार पर 11.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वहीं रिफाइनरी उत्पादों की वृद्धि दर घटकर 0.4 प्रतिशत पर आ गई जो पिछले साल इसी माह में 1.3 प्रतिशत थी। अक्तूबर 2018 में बुनियादी क्षेत्र के इन आठ उद्योगों के उत्पादन में 4.8 प्रतिशत की बढ़त रही थी। सितंबर 2019 में यह आंकड़ा 5.1 प्रतिशत गिरावट में था। लगातार दूसरे महीने गिरावट आई है। पिछले माह सितंबर में बुनियादी क्षेत्र के आठ उद्योगों का उत्पादन सालाना आधार पर 5.1 प्रतिशत गिरा था जो एक दशक का सबसे सुस्त प्रदर्शन था। आंकड़ों के बारे में रेटिंग एजेंसी इक्रा ने कहा कि बुनियादी क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के आधार पर अक्तूबर 2019 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में और संकुचन हो सकता है।
राजकोषीय घाटा अनुमान का 102 प्रतिशत पहुंचा
देश का राजकोषीय घाटा अक्तूबर के अंत में 7.2 लाख करोड़ रुपये था जो चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान के 102.4 प्रतिशत के बराबर है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 7.03 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया है जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.3 प्रतिशत तक रहेगा। उल्लेखनीय है कि सरकार ने सितंबर महीने में कंपनियों के लिये कर की दर को कम करने का निर्णय किया था। इससे राजस्व के मोर्चे पर 1.45 लाख करोड़ रुपये का असर होगा। एंजेल कमोडिटी के डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट (एनर्जी एवं करेंसी) अनुज गुप्ता ने बताया कि जीडीपी गिरने और राजकोषीय घाटे बढ़ने से भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ेगा। डॉलर के मुकाबले रुपया 72 के पार जल्द जा सकता है।
जीडीपी वृद्धि दर अस्वीकार्य, चिंताजनक : मनमोहन सिंह
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की 4.5 प्रतिशत की वृद्धि दर को नाकाफी और चिंताजनक बताया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से समाज में गहराती आशंकाओं को दूर करने और देश को फिर से एक सौहार्दपूर्ण तथा आपसी भरोसे वाला समाज बनाने का आग्रह किया जिससे अर्थव्यवस्था को तेज करने में मदद मिल सके। अर्थव्यवस्था पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन में सिंह ने कहा कि आपसी विश्वास हमारे सामाजिक लेनदेन का आधार है और इससे आर्थिक वृद्धि को मदद मिलती है। उन्होंने कहा, हमारा समाज गहरे अविश्वास, भय और निराशा की भावना के विषाक्त संयोजन से ग्रस्त है। यह देश में आर्थिक गतिविधियों और वृद्धि को प्रभावित कर रहा है।
आरबीआई कर सकता है कटौती
अर्थव्यवस्था की रफ्तार और धीमी होने के बाद आर्थिक विकास को रफ्तार देने के लिए आरबीआई 3 से 5 दिसंबर को होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में रेपो रेट में फिर से 0.25% कटौती कर सकता है। ऐसा हुआ तो यह रेपो रेट में लगातार छठी बार कटौती होगी। इससे घर और कार खरीदने के लिए लोन लेना सस्ता हो जाएगा।
क्या है जीडीपी का आंकड़ा?
किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का सबसे अहम पैमाना जीडीपी के आंकड़े होते हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि देश की आर्थिक स्थिति क्या है और आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था की क्या दिशा होगी। भारत में जीडीपी आंकड़ों की गणना हर तीसरे महीने यानी तिमाही के आधार पर होती है।
आप पर क्या असर
जीडीपी के आंकड़ों में गिरावट की वजह से नौकरी के अवसर में कमी आती है। इससे आम लागों की आय कम हो जाती है। वहीं लोगों का बचत और निवेश भी कम हो जाता है। इन हालातों में लोग खरीदारी कम कर देते हैं तो कंपनियां उत्पादन घटा देती हैं। उत्पादन घटने की वजह से छंटनी की आशंका बढ़ जाती है।
तुरंत कदम उठाने की जरूरत
विकास दर छह साल के निचले स्तर पर आने के बाद आर्थिक विशेषज्ञों ने सरकार से तुरंत कदम उठाने की अपली की है। अर्थशास्त्री प्रणब सेन ने हिन्दुस्तान को बताया कि मौजूदा जीडीपी के आंकड़ों को देखते हुए सरकार को इसे आर्थिक आपातकाल जैसा देखना चाहिए। सरकार को इस बात का इंतजार नहीं करना चाहिए कि अर्थव्यवस्था में आगे सुधार शुरू होगा। सरकार को अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए तुरंत रणनीति बनाकर कदम उठाना चाहिए। वहीं, आर्थिक मामलों के जानकार देवेंद्र कुमार मिश्रा के मुताबिक जीडीपी के आंकड़े अनुमान के हिसाब से हैं। उन्होंने कहा कि जिस हिसाब से औद्योगिक गतिविधियां जुलाई से सितंबर महीने के बीच में रही हैं उनसे देश की अर्थव्यवस्था में रफ्तार की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। उन्होंने उम्मीद जताई है कि पिछले दिनों सरकार की तरफ से अर्थव्यवस्था को दिए गए प्रात्सोहन पैकेज का असर आने वाले महीनों में देखने को मिलेगा। अगली दो तिमाहियों में अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी।
चार चुनौतियां
1-उपभोक्ता खर्च
चार दशक के सबसे निचले स्तर पर उपभोक्ता खर्च 2017-18 में
1446 रुपये प्रति व्यक्ति औसतन मासिक खर्च, 1501 था 2011-12 में
2- बेरोजगारी दर
03 साल के सबसे उच्चतम स्तर पर बेरोजगारी दर
8.5 फीसदी बेरोजगारी दर, शहरों में 8.9 फीसदी शहरों में बेरोजगारी दर
3- बिक्री लुढ़की
11 माह लगातार गिरी कारों व ट्रैक्टरों की बिक्री, विमान यात्री कम हुए
0.28% ही बढ़ी यात्री वाहनों की थोक बिक्री अक्तूबर के त्योहारी माह में
4- महंगाई में उछाल
4.62 फीसदी पर खुदरा महंगाई अक्तूबर में, 16 माह में उच्चतम
7.89 फीसदी पर खाद्य महंगाई रही, सब्जियों और फलों के दाम बढ़े
पांच राहत
1. रेपो दर 5.15% के साथ नौ साल के निचले स्तर पर, दिसंबर में फिर कटौती की उम्मीद
2. बाजार 41 हजार के अंक को छू गया नवंबर के आखिरी हफ्ते में
3. डॉलर के मुकाबले रुपया 71.79 के स्तर पर, नियंत्रण के स्तर पर
4. कच्चा तेल 62.77 डॉलर प्रति बैरल पर, व्यापार घाटा कम
5. विदेशी मुद्रा भंडार 447 अरब डॉलर के स्तर पर, व्यापार घाटा 11 अरब डॉलर पर
पांच हालिया मजबूत फैसले
1. बीपीसीएल समेत 5 पीएसयू में विनिवेश से 78500 करोड़ जुटाएगी सरकार, एयर इंडिया के विनिवेश पर भी 15 दिसंबर तक फैसला
2. कॉरपोरेट टैक्स में दस फीसदी कमी की रोजगार व निजी निवेश को प्रोत्साहन के लिए, 1.45 लाख करोड़ का राजस्व कम होगा इससे
3. 81,700 करोड़ का ऋण वितरित किया सरकारी बैंकों ने अक्तूबर में चले नौ दिन के लोन मेले में
4. 70 हजार करोड़ रुपये की मदद बैंकों को, एनबीएफसी और आवास वित्त कंपनियों को भी राहत
5. अधूरी आवासीय परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 25 हजार करोड़ रुपये की मदद का ऐलान किया छह नवंबर को