दुर्लभ बीमारियों पर राष्ट्रीय नीति पर केंद्र की चुप्पी, जानें अन्य देशों में क्या है व्यवस्था

नई दिल्ली                                                                                                                                                                       
दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से की जा रही हीलाहवाली से दुर्लभ बीमारियों से ग्रस्त बच्चों की जिंदगी संकट में पड़ गई। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस साल फरवरी में केंद्र सरकार को नौ महीने में यह नीति बनाने का आदेश दिया था। यह समयसीमा बीत जाने के बाद भी मंत्रालय की ओर से अब तक 'नेशनल पॉलिसी फॉर ट्रीटमेंट ऑफ रेयर डिजजेस' (एनपीटीआरडी) का ड्राफ्ट भी जारी नहीं किया गया है।

देश में अब तक लीसर्जिक एसिड डाईएथिलेमाइड (एलएसडी), ऑटो इम्यून डिसऑर्डर जैसी 450 दुर्लभी बीमारियां देखी जा चुकी हैं। वर्तमान में लगभग 800 बच्चों में कोई न कोई इन बीमारियों से ग्रस्त हैं। इनके इलाज का खर्च कुछ लाख रुपयों से लेकर करोड़ रुपये सालाना तक आता है। ऐसे में किसी भी परिवार के लिए इस खर्च को उठाना असंभव मानते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को इन बीमारियों के इलाज के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने का आदेश दिया था। 

न्यायालय ने नौ महीने का समय दिया था  

न्यायालय के आदेश पर अमल करते हुए मई, 2017 में मंत्रालय ने दुर्लभ बीमारियों के इलाज की राष्ट्रीय नीति जारी कर दी थी। हालांकि, सरकार ने डेढ़ साल बाद इस नीति को खुद ही वापस ले लिया। इसके बाद इस साल आठ फरवरी को दिल्ली उच्च न्यायालय केंद्र सरकार को नौ महीने के भीतर नई राष्ट्रीय नीति जारी करने का आदेश दिया था। 

अध्यक्ष बोले, सरकार का रवैया असंवेदनशील  

दुर्लभ बीमारियों से ग्रस्त बच्चों के माता-पिता के संगठन लाइसोसोमल स्टोरेज डिस्ऑडर्स सपोर्ट सोसायटी (एलएसडीएसएस) के अध्यक्ष मंजीत सिंह ने कहा कि अदालत की ओर से दिया गया समय बीत जाने के बाद भी अब तक नई नीति का ड्राफ्ट तक जारी नहीं हुआ है। केंद्र की ओर से दुर्लभ बीमारियों से ग्रस्त मरीजों के प्रति असंवेदनशील रवैये से इन मरीजों की जिंदगी संकट में पड़ गई है। इस बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय का पक्ष जानने के लिए स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया। 

अन्य देशों में क्या व्यवस्था?

– यूरोप के देशों ने इन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम में शामिल कर रखा है। इससे उनके नागरिकों का मुफ्त इलाज होता है।
– अमेरिका में एफडीए द्वारा अनुमति देने के बाद बीमा में उन्हें शामिल कर लिया जाता है। खर्च बीमा कंपनियां उठाती हैं। 
– थाईलैंड, चिली, अर्जेंटीना, मलेशिया समेत आधा दर्जन देशों में दुर्लभ बीमारियों के इलाज का खर्च सरकार उठाती है। 

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