मुंबई
अपनी स्थापना के साथ ही हिंदुत्व की झंडाबरदार रही शिवसेना ने महाराष्ट्र में मुस्लिमों को सरकारी स्कूल-कॉलेजों 5 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव रखा है। यूं तो पिछले काफी वक्त से इसे लेकर राजनीतिक चर्चा चल रही थी लेकिन सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री नवाब मलिक के इस ऐलान के साथ ही शिवसेना की हिंदूवादी राजनीति को लेकर सवाल खड़े होते दिख रहे हैं। कभी सहयोगी रही भारतीय जनता पार्टी पहले ही इस मुद्दे को लेकर शिवसेना को घेरती रही है और सरकार में आने के लिए कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सामने झुकने का आरोप लगाती रही है।
बालासाहेब ने बनाई थी हिंदुत्ववादी छवि
बालासाहेब ठाकरे ने पार्टी के शुरुआती दिनों में ही बीजेपी के हाथ से हिंदुत्व का झंडा ले लिया था। उसके बाद से हमेशा पार्टी ने कट्टर हिंदुत्व की राजनीति की थी।पार्टी के सांसद और प्रवक्ता संजय राउत ने भी पिछले महीने ही कहा था कि विनायक दामोदर सावरकर के बाद बाल ठाकरे ने कट्टर हिंदुत्व की लौ जलाई थी। उन्होंने यहां तक कहा था कि अब कुछ लोग उसका अनुसरण करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन शिवसेना और बाल ठाकरे का कोई मुकाबला नहीं है।
बीजेपी से 'हेडमास्टर' की टक्कर
महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स में बीजेपी के मुकाबले शिवसेना का दबदबा इसलिए दिखता था कि वह 'मुसलमान', 'पाकिस्तान' जैसे मुद्दों पर खुलकर अपनी बात कहती थी, कोई ढकाव-छुपाव नहीं जबकि उस दौर की बीजेपी तोल-मोल कर बोलने में यकीन करती थी। उद्धव ठाकरे ने भी कहा था कि शिवसेना को अपना हिंदुत्व साबित करने के लिए किसी झंडे की जरूरत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी हिंदुत्व की झंडाबरदार नहीं है। राउत को शिवसेना को हिंदुत्व का हेडमास्टर भी बता चुके हैं।
कांग्रेस के साथ गठबंधन, हिंदुत्व पर रुख नरम
हालांकि, महाराष्ट्र में 2019 में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद इधर शिवसेना ने बीजेपी से अलग रास्ता पकड़ा और उधर कांग्रेस-एनसीपी के साथ गठबंधन करते ही उसे अपने हिंदुत्व की छवि को नरम करना पड़ा। सरकार के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत भी हिंदुत्व के मुद्दे को बाहर कर दिया गया। इसकी झलक साफतौर पर संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक के पारित होते वक्त भी देखी गई जब लोकसभा में बिल का समर्थन करने के बाद राज्यसभा में वोटिंग के दौरान पार्टी को वॉकआउट करना पड़ा था।
मुस्लिम आरक्षण को लेकर था दबाव
मुस्लिम आरक्षण को लेकर भी शिवसेना को कांग्रेस-एनसीपी के सामने नरम रुख अपनाना पड़ा है। इससे पहले साल 2014 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले जून महीने में प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार ने मुस्लिमों के लिए पांच फीसदी के आरक्षण की व्यवस्था की थी और इस संबंध में अध्यादेश भी जारी किया था। 6 साल बाद सरकार में आने के बाद से कांग्रेस ने फिर साफ कर दिया था कि वह सरकार पर इस मुद्दे को लेकर दबाव बनाएगी।