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जिनकी तालीम भी मशकूफ संद भी मशकूफ, वो विजारत का कलमदान संभाले हुए हैं


हिंदी भवन में ‘यादें शफक तनवीर के अंतर्गत मुशायरा और सम्मान समारोह

भोपाल. हिंदी भवन में ‘यादें शफक तनवीर के अंतर्गत मुशायरा और सम्मान समारोह आयोजित किया गया। मुशायरे के शुरू में अनिल मयंक ने पढ़ा ‘इतना तो प्यासा कोई सागर नहीं देखा, आंखों में रहा, दिल में उतरकर नहीं देखा। कवि रमेश नंद ने कहा ‘उजला-उजला तन का दर्पण, लेकिन मैला मन का दर्पण। शायर कमलेश ‘गुल ने अपनी बात कुछ इस तरह व्यक्त की ‘मत पत्थरों में आज मुहब्बत तलाश कर, दिल को किसी के प्यार में वीरां किये हुए।

सूर्य प्रकाश सूरज ने कहा कि ‘दे इरादों को बुलंदी, हौसलों पर धार रख, देख फिर किस तरह हर मुश्किल से टकराता है दिल। शायर शिवराज सिंह आजाद ने पढ़ा ‘जिसकी किस्मत हबीब होती है, कामयाबी नसीब होती है। कार्यक्रम में मरहूम उस्ताद शायर शफक तनवीर को याद करते हुए खालिदा सुल्ताना ने कहा ‘शफक थे यकीनन अदब के सफीर, फलक पर हो जैसे चमकता मुनीर।

कलम के सिपाही थे वह खालिदा, नहीं मिलती जिसकी कहीं भी नजीर। मुख्य अतिथि के रूप में पधारे वरिष्ठ शायर जफर सेहबाई ने कहा ‘जिनकी तालीम भी मशकूफ संद भी मशकूफ, वो विजारत का कलमदान संभाले हुए हैं।

शायर फारूक अंजुम ने पढ़ा कि ‘खेती, जमीन, महनतें गिरवी हुए सभी, कब्जे में गैर के गई फिर अपनी रोटियां। सीमा नाज ने कहा कि ‘हमने बख्षा है इन आईनों को एहसासे जमाल, हम न होंगे तो ये आईने किधर जाएंगे। शोएब अली खां ने पढ़ा कि ‘आशिक बनाके रख दिया बस लफ्ज चार ने इख्लास ने, वफा ने, मोहब्बत ने, प्यार ने।

कार्यक्रम की अध्यक्षता महेश प्रसाद ने की तो संचालन विजय शाइर ने किया। उस्ताद शायद मलिक नवेद अहमद के सारस्वत आतिथ्य में शायरा खालिदा सिद्दीकी को शफक तनवीर सम्मान से नवाजा़ गया।

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