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चांद पर गिरा जरूर है, लेकिन टूटा नहीं है विक्रम

बेंगलुरु
चंद्रयान- 2 को लेकर बड़ी खुशखबरी आई है। इस मिशन से जुड़े इसरो के एक ऑफिसर ने बताया कि विक्रम लैंडर पूर्व निर्धारित जगह के करीब ही पड़ा है। बड़ी बात यह है कि उसमें कोई टूट-फूट नहीं हुई है और पूरा भाग चांद की सतह पर थोड़ा टेढ़ा पड़ा है। उन्होंने सोमवार को बताया, 'विक्रम ने हार्ड लैंडिंग की है और ऑर्बिटर के कैमरे ने जो तस्वीर भेजी है, उससे पता चलता है कि वह निर्धारित स्थल के बिल्कुल करीब पड़ा है। विक्रम टूटा नहीं है और उसका पूरा हिस्सा सुरक्षित है।'

संपर्क की 60 से 70% उम्मीद: पूर्व इसरो चीफ
इसरो के पूर्व चीफ माधवन नायर ने यह जानकरी मिलने पर कहा कि विक्रम से दोबारा संपर्क साधे जाने की अब भी 60 से 70 प्रतिशत संभावना है। उन्होंने हमारे सहयोगी चैनल टाइम्स नाउ से बात करते हुए यह उम्मीद जताई। वहीं, वैज्ञानिक और डीआरडीओ के पूर्व संयुक्त निदेशक वीएन झा ने भी कहा कि किसी भी दिन इसरो सेंटर का विक्रम से संपर्क जुड़ सकता है।

अब तक की स्थिति अच्छी: इसरो ऑफिसर
हालांकि, इसरो के ही एक अन्य ऑफिसर का
मानना है कि विक्रम का एक भी पुर्जा खराब हुआ होगा तो संपर्क साधना संभव नहीं हो पाएगा, लेकिन उन्होंने भी अब तक की स्थिति को 'अच्छा' बताया। उन्होंने कहा, 'जब तक विक्रम का एक-एक पुर्जा सही नहीं रहेगा, तब तक उससे संपर्क साधना बहुत मुश्किल होगा। उम्मीद बहुत कम है। अगर इसने सॉफ्ट-लैंडिंग की हो और सही तरह से काम कर रहा हो, तभी संपर्क साधा जा सकता है। अभी तक कुछ कहा नहीं जा सकता है।' उन्होंने कहा, 'हालांकि, अब तक की स्थिति अच्छी है।'

एंटिना के रुख पर बड़ी निर्भरता
उन्होंने कहा कि अगर विक्रम का एंटिना का रुख सही दिशा में हो तो काम आसान हो जाएगा। उन्होंने कहा, 'एंटिना का रुख अगर ग्राउंड स्टेशन या ऑर्बिटर की तरफ हो तो काम आसान हो जाएगा। इस तरह का ऑपरेशन बहुत कठिन होता है। लेकिन, अच्छी उम्मीद है। हम प्रार्थना कर रहे हैं।' उन्होंने कहा, 'हमारी सीमाएं हैं। हमें जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में खोए एक स्पेसक्राफ्ट को ढूंढने का अनुभव है। लेकिन, चांद पर उस तरह की ऑपरेशन फ्लेक्सिबिलिटी नहीं है। यह चांद पर पड़ा हुआ है और हम उसे हिला-डुला नहीं सकते।' उन्होंने बताया कि विक्रम ऊर्जा खपत कर रहा है जिसकी कोई चिंता नहीं है क्योंकि उसमें सोलर पैनल लगे हैं। साथ ही, उसके अंदर की बैट्री भी बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं हुई है।

गौरतलब है कि 6-7 सितंबर की दरम्यानी रात जब विक्रम लैंडर पूर्व निर्धारित प्रक्रिया के तहत चांद की सतह पर बढ़ रहा था तभी अचानक उसका इसरो से संपर्क टूट गया। उस वक्त चांद की सतह से विक्रम की दूरी 2.1 किलोमीटर बची थी। इसरो विक्रम से दोबारा संपर्क जोड़ने की कोशिश में जुटा हुआ है।

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