मध्य प्रदेश

गांवों में मरीजों को बेहतर इलाज देने के लिए स्वास्थ्य विभाग का मास्टर प्लान

 

भोपाल. प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने और सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी को पूरा करने के तमाम कोशिशों के बावजूद हालत सुधर नहीं रहे हैं. ऐसे में अब स्वास्थ्य विभाग नई कोशिशों पर काम कर रहा है. प्रदेश में मरीजों को बेहतर इलाज दिलाने की खातिर स्वास्थ्य विभाग अब निजी अस्पतालों को बढ़ावा देने की तैयारी में है. विभाग ने स्वास्थ्य निवेश नीति  तैयार की है और निजी अस्पताल खोलने के लिए निवेशक को 50 फीसदी तक की सब्सिडी दी जाएगी.

बहरहाल, विभाग का मानना है कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी निजी अस्पताल खुल सकेंगे. इस नीति को मैग्नीफिसेंट एमपी  में पेश किया जाएगा.

अच्‍छी सेहत के लिए होगा ये काम
सेहत की दौड़ में पिछड़े मध्य प्रदेश में डॉक्टरों की समस्‍या से निपटने की स्वास्थ्य विभाग ने एक और कवायद शुरू की है. हेल्थ डिपार्टमेंट ने स्वास्थ्य निवेश नीति का प्रस्ताव तैयार किया है. इसके तहत ग्रामीण इलाकों में प्राइवेट हॉस्पिटल खोलने पर 50 फीसदी तक सरकारी फंड मिलेगा. बीते कई सालों से डॉक्टर्स के पद खाली रह जाते हैं. मौजूदा स्थिति में कुल रिक्त पदों पर आधे से भी कम डॉक्टर्स दिलचस्पी ले रहे हैं. विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक इस नीति के लिए सभी जिलों को तीन कैटेगरी ए, बी और सी में बांटा जाएगा.

ए कैटेगरी के जिलों में भोपाल, इंदौर जैसे विकसित जिलों को रखा गया है. यहां निजी अस्पताल खोलने पर विभाग द्वारा 30 फीसदी तक सब्सिडी दी जाएगी, तो वहीं बी कैटेगरी जिलों के लिए सब्सिडी 40 फीसदी और कमजोर जिलों में 50 फीसदी तक सब्सिडी दी जाएगी. सिर्फ अस्पताल ही नहीं, नई नीति के तहत स्पेशलाइज्ड यूनिट जैसे फिजियोथैरेपी यूनिट, डायलिसिस यूनिट या पैथोलॉजी लैब के लिए भी विभाग आर्थिक मदद करेगा. इसके अलावा विभाग इन उपक्रमों को जमीन के लिए भी सब्सिडी देने का खाका तैयार कर रहा है.

ये है मौजूदा हाल
इस वक्‍त प्रदेश में डॉक्‍टर्स के 3278 पद स्‍वीकृत हैं, जिसमें से 2249 रिक्‍त हैं. अगर मेडिकल ऑफिसर की बात करें तो 4896 पद स्‍वीकृत हैं, जिसमें से 1677 रिक्‍त हैं. दंत चिकित्सक के 162 पर स्‍वीकृत हैं और 43 रिक्‍त हैं. यही नहीं प्रदेश में 2017 में 89 विशेषज्ञ रिटायर हुए थे. जबकि 2018 में 102 रिटायर हुए थे.

बीते वर्षों के आकड़ों पर एक नजर
2010 में मेडिकल ऑफिसर्स के 1090 पदों के पर 570 डॉक्टर ही मिले थे. इसमें से भी 200 डॉक्टर नौकरी छोड़ गए.
2013 में 1416 पदों पर भर्ती हुई और सिर्फ 65 डॉक्टरों का चयन. करीब 200 आए ही नहीं. जबकि उतने ही बाद में नौकरी छोड़ गए.
2015 में 1271 पदों में 874 डॉक्टर मिले. इनमें भी 218 डॉक्टरों ने ज्वाइन नहीं किया और कुछ ने नौकरी छोड़ दी.
2015 में ही 1871 पदों के लिए भर्ती शुरू हुई थी, लेकिन बाद में अटक गई.
मार्च 2017 में साक्षात्कार के बाद रिजल्ट जारी किए गए. इसमें करीब 800 डॉक्टर मिल पाए हैं.
2018 में भी 1254 पदों के पर सिर्फ 865 ही मिले. इसमें से 320 छोड़ गए.

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