मध्य प्रदेश

गांव वालों ने बरसते पानी में अंतिम संस्कार से पहले सुधारा शेड फिर दी मुखाग्नि


राजधानी भोपाल के अमरावदखुर्द में सरकारी आश्वासन के भरोसे बीते कई साल

भोपाल. राजधानी की नगर निगम सीमा में आने वाले गांव अमरावदखुर्द में गांव के रहने वाले 100 वर्षीय रामदयाल परमार का बीते दिनों निधन हो गया। उनके दाह संस्कार के लिए परिजन सहित ग्रामीण विश्रामघाट पर पहुंचे। इस दौरान तेज बारिश होने के कारण जर्जर विश्रामघाट में अंतिम संस्कार करना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में गांव वालों ने खुद से पहल करते हुए अपने घरों से लोहे की चादर लेकर श्मशान घट पहुंचे और जर्जर हो चुके टीन शेड को सुधारा। इसके बाद अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की।

बता दें कि यहां पर नगर निगम ने इतना भी इंतजाम नहीं किया है कि बारिश के मौसम में लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार कर सकें। कहने के लिए करीब तीन वर्ष पहले नगर निगम वार्ड 60 की सीमा में आने वाले इस विश्रामघाट के जीर्णोद्धार लिए करीब 35 लाख रुपए से विकास कार्य की फाइल भी तैयार की गई थी, लेकिन बजट के अभाव में आज भी इसका काम अधर में है। गांव के लोगों का कहना है कि सरकारी तंत्र के आश्वासन के चलते अब तक अमरावदखुर्द का श्मशान बदहाली की तस्वीर बयां कर रहा है।

अमरावदखुर्द में रहने वाले भगवान सिंह परमार ने बताया कि उनके पिता रामदयाल परमार, जो कि 100 वर्ष के थे। उनके निधन के बाद कल जब अंतिम संस्कार के लिए पार्थिव देय को गांव के श्मशान पर लेने जाने लगे, तो गांव वासियों ने कहा कि बारिश हो रही है, वहां पर क्या व्यवस्था है, देख आएं। ग्रामीणजन जब यहां आए तो नजारा बहुत ही खराब था। गांव के विश्रामघाट के शेड पर न तो चादर थी और न ही कोई सुविधा।

भगवान सिंह परमार ने अपने घर से लोहे की चादर दी, जिसे शेड पर गांव वालों ने चढ़ाई, इसके बाद अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को पूरा कराया गया। अमरावदखुर्द में विश्रामघाट की बदहाली के लिए सरकारी सिस्टम को जिम्मेदार ठहराया गया है। शहर की नगर निगम सीमा में आने वाले विश्रामघाट की ऐसी स्थिति है, तो फिर आसपास के गांवों में श्मशान कैसे होंगे, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है।

तीन साल पहले हो चुका है सर्वे
तत्कालीन महापौर आलोक शर्मा ने अमरावदखुर्द गांव का दौरा किया था। उसके बाद उन्होंने यहां पर करीब 35 लाख रुपए की लागत से इस अव्यवस्थित विश्रामघाट को संवारने की बात कही थी। घोषणा के बाद लगभग तीन साल पहले नगर निगम द्वारा इस कार्य के लिए सर्वे कर फाइल तैयार की गई, लेकिन आज तक काम शुरू ही नहीं किया जा सका है। काम न होने से आज भी गांव का पुस्तैनी विश्रामघाट जर्जर अवस्था में है।

काम नहीं हुआ तो गांव के लोग उठाएंगे बीड़ा
स्थानीय ग्रामीणजनों ने बताया कि सरकारी सिस्टम ने गांव वालों को लंबे समय से संकट में डाल रखा है। बार-बार यही कहा जाता रहा है कि जल्द ही काम कराया जाएगा, लेकिन तीन साल में कोई कार्य नहीं हो पाया। बारिश के दिनों में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में शेड के अभाव में बेहद परेशानी होती है। अब बारिश थमने के बाद गांव के रहवासी ही यहां जनसहयोग से विश्रामघाट का कायाकल्प करेंगे।

पहुंच मार्ग भी हुआ बदहाल
अमरावदखुर्द से श्मशानघाट की ओर जाने वाले मार्ग भी बदहाली का शिकार हैं। लगभग 500 मीटर तक की सड़क का नगर निगम के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों ने पांच वर्षीय कार्यकाल में नहीं बनाया। अंतिम संस्कार के लिए बारिश के दिनों में यहां से आने-जाने में लोगों को परेशानी से जूझना पड़ रहा है।

अमरावदखुर्द गांव के विश्रामघाट को नगर निगम के पास बजट अभाव के कारण नहीं बनाया जा सका। बजट मिलने के बाद इस कार्य को प्राथमिकता के आधार पर पूरा कराया जाएगा।
आलोक शर्मा, पूर्व महापौर

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