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कोविड काल में महिला हिंसा की रोकथाम में पंचायतों व समुदाय की भूमिका अहम

महिला हिंसा रोकने के लिए सोच में बदलाव जरूरी

भोपाल. कोविड-19 के कारण की गई तालाबंदी के दौरान पारिवारिक जिम्मेदारी में बढ़ोतरी, बाहर आने-जाने की बंदिशें और कमजोर सुरक्षा प्रणाली ने महिलाओं को बेहद तनावग्रस्त किया है। इस दौरान महिला हिंसा संबंधी अपराधों में भी बढ़ोतरी हुई है। क्वारंटाइन केंद्रों पर भी महिलाओं को सुरक्षा और निजता संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

इस चुनौतीपूर्ण समय में पंचायतों एवं सामुदायिक संगठनों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह न केवल महिला के खिलाफ हिंसा को रोक सकते हैं, बल्कि वे महिलाओं को मानसिक एवं भावनात्मक सहयोग भी दे सकते हैं। महिलाओं के साथ हो रही हिंसा को रोकने में कानून में बदलाव से ज्यादा सोच में बदलाव जरूरी है।

उक्त बातें बीते दिनों विभिन्न वक्ताओं ने महिला हिंसा को रोकने में ग्राम पंचायत एवं सामुदायिक संगठनों की भूमिका को लेकर यूएनएफपीए और स्वयंसेवी संस्था समर्थन ने संयक्त रूप आयोजित एक वेबिनार में व्यक्त किया। वेबिनार में मध्यप्रदेश की विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं, प्रशिक्षण संस्थानों, महिला पंचायत प्रतिनिधियों, स्वयं सहायता समूह की महिलाओं और प्रवासी महिला श्रमिकों ने भाग लिया।

वेबिनार की शुरुआत में समर्थन के निदेशक डॉ. योगेश कुमार ने महिलाओं और बच्चों के साथ हिंसा में बढ़ोतरी पर चिंता जताते हुए कहा कि महिला हिंसा की रोकथाम के लिए एकजुटता से जिम्मेदारी निभानी होगी। महिला पंचायत प्रतिनिधियों ने कहा कि शुरुआत में उन्हें अपनी भूमिका निभाने में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा।

प्रवासी श्रमिक रचना बाई टीकमगढ़ ने कहा कि उनका परिवार कोविड-19 की तालाबंदी के कारण गांव लौटकर आया, तो पंचायत से किसी तरह का सहयोग नहीं मिला। वेबिनार में जागोरी संस्था की सुनीता घर, महिला जागृति मंच की अफसर जहां, प्रिया संस्था की नंदिता दास, सेंटर फॉर हेल्थ एंड सोशल जस्टिस के डॉ. अभिजीत दास, एमजीएसआईआरडी के संजय सराफ और शोभना बॉयल ने अपने विचार व्यक्त किए।

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