नई दिल्ली
कर्मचारी की मौत के बाद सरकार को उनके परिजनों की मदद करना चाहिए ताकि उन्हें भुखमरी की स्थिति से बचाया जा सके। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने नीति आयोग से एक युवक को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने पर विचार करने का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की है। हालांकि, न्यायाधिकरण ने फैसले में यह भी कहा कि अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाना अधिकार नहीं है।
न्यायाधिकरण के सदस्य प्रदीप कुमार ने नंदन सिंह कोरंगा की ओर से दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए यह फैसला दिया। वर्ष 2001 में पिता की सड़क हादसे में मौत के बाद से ही नंदन नीति आयोग में नियमित नौकरी पाने के लिए अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। इसके साथ ही न्यायाधिकरण ने याचिकाकर्ता की उस मांग को ठुकरा दिया जिसमें कहा गया था कि अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने के लिए आरक्षित पांच फीसदी के कोटे को खत्म नहीं किया सकता।
न्यायाधिकरण ने कहा कि अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाना अधिकार का विषय नहीं है। लेकिन, सरकार को तत्काल पीड़ित परिवार की मदद करनी चाहिए। पिता की मौत के बाद नंदन को योजना आयोग ने 2003 में दैनिक वेतनभोगी के तौर पर नौकरी दी थी।
वर्ष 2001 में पिता की सड़क हादसे में मौत हो गई थी
याचिकाकर्ता नंदन सिंह के पिता योजना आयोग में बतौर वरिष्ठ चपरासी के पद पर कार्यरत थे। वर्ष 2001 में एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई। याचिकाकर्ता कि मां ने योजना आयोग (अब नीति आयोग) में अर्जी दाखिल कर बेटे को नियमित नौकरी देने की मांग की। योजना आयोग ने 2003 में नियमित नौकरी देने के बजाए याचिकाकर्ता को दैनिक वेतन भोगी की नौकरी दे दी। लेकिन, नियमित नौकरी देने की मांग को टालता रहा।