कहीं टमाटर को बनाया जा रहा है तीखा तो कहीं लैब में तैयार की जाएगी मछली, जानें खाने को लेकर अजीब शोध

देश में 1 सितंबर से 7 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जा रहा है। खाद्य पदार्थ को पौष्टिक बनाने के लिए कई प्रसिद्ध विश्विद्यालय काम कर रहे हैं। इसलिए हम आपको बताने जा रहे हैं उन खानों के बारे में जो अगले पांच-दस साल में बड़े स्तर पर आने वाला है।

ये टमाटर बिल्कुल हरी मिर्च की तरह तीखा होगा। टमाटर में कैपसाइसिनॉइड्स होता है और यही तत्व मिर्च को तीखा बनाता है। वैज्ञानिक इसे जीन एडिटिंग की मदद से टमाटर में सक्रिय कर रहे हैं। ब्राजील के फेडेरल यूनिवर्सिटी ऑफ विकोसा के शोधकर्ता अगस्टिन सोगोन कहते हैं कि कपसाइसिनॉइड्स वजन घटाने में भी मददगार है। मिर्च की तुलना में टमाटर को बड़े स्तर पर उगाना आसान होता है। ब्राजील और आयरलैंड दोनों देश इस पर काम कर रहे हैं। साल 2019 के अंत तक ये टमाटर उगा लिया जाएगा।

अमेरिका की कंपनी ब्लनालू और फिनलेस फूड्स सेल बेस्ट सीफूड पर काम कर रही है। इसका मतलब यह है कि किसी खास मछली या दूसरी जलीय जीव से कोशिका लेकर उसे लैब में विकसित किया जाएगा। ये है कि इस सी-फूड में सिर, पैर और हड्डी जैसी चीजें नहीं होंगी। ये एक प्लास्टिक की शीट की तरह होगा। हालांकि अभी तक यह नहीं बताया गया है कि लैब में तैयार होने वाला सी फूड कब तक आएगा।

सेब के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है कि यदि उसे काटने के बाद तुरंत नहीं खाया गया तो वो काला या भूरे रंग का हो जाता है। इससे सेब बर्बाद हो जाता है। लेकिन कैनेड की कंपनी ओकानागन ने ऐसा सेब तैयार किया है जो काटने के बाद भूरा नहीं पड़ता है। इस तरह का सेब अभी अमेरिका में मौजूद है। यूरोप में भी इसे अनुमति देने की बात चल रही है। ऐसा संभव है कि एक-दो साल में यूरोपियन और अन्य बाजारों में मौजूद है।

दुनिया के ढेर सारे स्टार्टअप इस वक्त लैब में मीट बनाने पर काम कर रहे हैं। ब्रिटेन के एडम स्मिथ इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता डॉ. मैडसन पाइरी ने बताया कि इससे कृषि में होने वाली ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 78 फीसदी से 96 फीसदी कम हो गया है। हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्युलर ऐंड मोलिक्यूलर बायोलॉजी और नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन मीट भी मीट का उत्पादन कर रहा है। साल 2013 में नीदरलैंड्स की मैसट्रिच्ट यूनिवर्सिटी ने पहली बार लैब में बर्गर बनाया। इस साल के अंत तक दूसरे अन्य देशों में इसके दाम बहुत कम होंगे।

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