अध्यात्म

कलाम साहब के ये तीन किस्से कइयों के लिए प्रेरणा हो सकते हैं और आईना भी

राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जब राष्ट्रपति भवन से जा रहे थे, तो उनसे विदाई संदेश देने के लिए कहा गया। इस पर उनका कहना था, ‘विदाई कैसी, मैं अब भी एक अरब देशवासियों के साथ हूं

एक बार पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के कुछ रिश्तेदार उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन आए। कुल 50-60 लोग थे। स्टेशन से सब को राष्ट्रपति भवन लाया गया, जहां उनका कुछ दिन ठहरने का कार्यक्रम था। उनके आने-जाने और रहने-खाने का सारा खर्च कलाम ने अपनी जेब से दिया। संबंधित अधिकारियों को साफ निर्देश था कि इन मेहमानों के लिए राष्ट्रपति भवन की कारें इस्तेमाल नहीं की जाएंगी।

यह भी कि रिश्तेदारों के राष्ट्रपति भवन में रहने और खाने-पीने के सारे खर्च का ब्यौरा अलग से रखा जाएगा और इसका भुगतान राष्ट्रपति के नहीं, बल्कि कलाम के निजी खाते से होगा। एक हफ्ते में इन रिश्तेदारों पर हुआ तीन लाख चौवन हजार नौ सौ चौबीस रुपये का कुल खर्च देश के राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने अपनी जेब से भरा था।

इसी तरह एक बार राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आईआईटी (बीएचयू) के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि बनकर गए थे। वहां मंच पर जाकर उन्होंने देखा कि जो पांच कुर्सियां रखी गई हैं, उनमें बीच वाली कुर्सी का आकार बाकी चार से बड़ा है। यह कुर्सी राष्ट्रपति के लिए ही थी और यही इसके बाकी से बड़ा होने का कारण भी था। राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने इस कुर्सी पर बैठने से मना कर दिया। उन्होंने वाइस चांसलर (वीसी) से उस कुर्सी पर बैठने का अनुरोध किया। वीसी भला ऐसा कैसे कर सकते थे? आम आदमी के राष्ट्रपति के लिए तुरंत दूसरी कुर्सी मंगाई गई, जो साइज में बाकी कुर्सियों जैसी ही थी।

कलाम से जुड़ा तीसरा किस्सा तब का है, जब राष्ट्रपति बनने के बाद वे पहली बार केरल गए थे। उनका ठहरना राजभवन में हुआ था। वहां उनके पास आने वाला सबसे पहला मेहमान कोई नेता या अधिकारी नहीं, बल्कि सड़क पर बैठने वाला एक मोची और एक छोटे से होटल का मालिक था। एक वैज्ञानिक के तौर पर कलाम ने त्रिवेंद्रम में काफी समय बिताया था। इस मोची ने कई बार उनके जूते गांठे थे और उस छोटे से होटल में कलाम ने कई बार खाना खाया था।

अपना कार्यकाल पूरा करके राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जब राष्ट्रपति भवन से जा रहे थे, तो उनसे विदाई संदेश देने के लिए कहा गया। इस पर उनका कहना था, ‘विदाई कैसी, मैं अब भी एक अरब देशवासियों के साथ हूं।

आज राष्ट्रपति अब्दुल कलाम नहीं हैं, फिर भी वे एक अरब देशवासियों के साथ हैं। उनके ये किस्से आज भी कइयों को प्रेरणा देने का काम कर रहे हैं। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम सादगी, मितव्ययिता और ईमानदारी जैसे उन गुणों की मिसाल थे, जो आज के राजनीतिक परिदृश्य में दुर्लभ हो चले हैं।

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