छत्तीसगढ़

ऐश्वर्य का दिखावा गुरु और भगवान के सामने न करें – जया किशोरी

रायपुर
अवधपुरी मारूति मंगलम भवन गुढि?ारी में श्रद्धालुओं ने कथा प्रसंग के दौरान झांकियों के दर्शन किए, झांकियां इतनी जीवंत रहीं कि श्रद्धालु भाव विभोर हो गए और एक अवसर ऐसा भी आया जब वे अपने आंसूओं को भी नहीं रोक पाए। कथा प्रसंगों के दौरान कथा वाचक जया किशोरी दीदी ने अपने सुरमयी भजनों के साथ जो दृष्टांत दिए वह आज के दौर में सार्थकता को लिए हुए थे। रविवार को कथा स्थल पर इतनी भीड़ उमड़ी की कथा स्थल पर लगे चारो तरफ के पंडाल खोल दिए गए और लोगों से विनम्रतापूर्वक निवेदन किया गया कि वे जहां के तहां बैठ जाएं और लोगों ने जमीन पर बैठकर की कथा श्रवण किया।

जड़-भरत प्रसंग पर जया किशोरी ने कहा कि मनुष्य को ज्ञान का होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इसी ज्ञान से वह अच्छे-बुरे का अंतर महसूस कर सकता है। ज्ञान की प्राप्ति केवल शिक्षा से ही हो सकती है और शिक्षा वर्तमान समय में काफी आवश्यक हो गई है क्योंकि आज का जो दौर चल रहा है उसमें केवल छल और मुर्ख बनाने के अलावा और कुछ नहीं है। शिक्षा से जब ज्ञान की प्राप्ति होती है तो मनुष्य अपने कर्मो को भी देख और समझ सकता है। वर्तमान समय में समाज की जो दुर्दशा हो रही है उसका मुख्य कारण यही है कि लोगों में ईमानदारी, दया, प्रेम सब कुछ समाप्त होते जा रहा है। अच्छी भावनाएं नही है, अवसरवादिता, अशिक्षा, भोलेपन और मुर्खता का लाभ उठा रही है। जड़-भरत आज्ञाकारी थे उन्हें किसी भी प्रकार का कोई ज्ञान नहीं था और ज्ञान नहीं होने के कारण उन्हें जड़-भरत कहा गया। क्योंकि उनमें सोचने और समझने की दृष्टि और बुद्धि नहीं थी, वह दूसरों के कहने पर ही चलते थे और स्वयं कभी निर्णय नहीं ले पाते। भगवती की कृपा होने पर उन्हें जब ज्ञान की प्राप्ति हुई तो इस ज्ञान से भी उन्होंने राजा का भला किया।

किशोरीजी ने कहा कि क्रोध हमेशा नहीं रहता वह समय पर आता है और किसी का क्रोध किसी पर नहीं उतारना चाहिए क्योंकि इसका दुष्परिणाम ही उसे प्राप्त होता है। गुरु और भगवान के सामने कभी भी अपने ऐश्वर्य का दिखावा नहीं करना चाहिए, इनकी यदि कृपा प्राप्त करनी है तो इनके सामने दिनहीन बनकर ही जाना चाहिए और वैसे ही सदैव रहना चाहिए। राजा भरत के वंश के प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि गया नामक राजा हुए लेकिन गलती से एक तीर पशु को लगने के बजाए ब्राह्मण को लग गया और उनके श्राप से वे राजा से गयासुर हो गए। लेकिन उनकी बुद्धि वैसी ही पवित्र बनी हुई थी और अंत समय तक उन्होंने भगवान का साथ नहीं छोड़ा। अपने तप और भक्ति से गयासुर ने भगवान को प्रसन्न किया और जो वरदान उन्होंने मांगे वे पूरे भी हुए लेकिन इससे अनिष्ट भी होने लगा ऐसे में गयासुर ने भगवान से अंत में दो वरदान मांगे पहला मेरे निवास में यज्ञ हो और दूसरा मेरे धाम में श्राप से लोगों को मुक्ति मिल जाए। ये दो वरदान मिलते ही गयासुर ने स्वयं की प्राण त्याग दिए। वही गयासुर आज पवित्र गया बनी हुई है जहां लोग अपने पित्रों की मुक्ति करते है।

उन्होंने कहा कि दान, पुण्य और अच्छे कर्म ही मनुष्य के साथ जाते है। संसार में जितने भी रिश्ते है वह केवल स्वार्थ के है, संकट के समय में कोई भी आपका साथ देने नहीं आता, लेकिन मनुष्य है कि बड़े से बड़े उच्च लोगों के साथ इसलिए संबंध बनाता है कि कभी किसी समय वे संकट में काम आएंगे। संकट छोटा हो तो वे साथ देते है लेकिन बड़ा संकट आने पर वे अपना पल्ला झाड़ लेते है। भगवान से संबंध मनुष्य नहीं बनाता जो हमेशा उससे संबंध बनाने के लिए तत्पर खड़े रहते है, केवल संकट के समय में ही उन्हें भगवान की याद आती है और संकट न टलने पर वे भगवान को कोसने से भी बाज नहीं आते। संकट टल गया तो भगवान भी उनके हृदय से टल जाते है।

भद्रकाली अवतार : कथा प्रसंग के दौरान आज भद्रकाली अवतार का जीवंत चित्रण झांकी और जया किशोरी जी के भजन से श्रद्धालुओं को देखने मिला और वे इस प्रसंग पर भाव विभोर हो गए। इस प्रसंग पर उन्होंने कहा कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते है उन्हें कभी निराश नहीं करते। जब-जब वह संकट में होता है तो वे उसे उस संकट से बाहर निकाल लेते है।

ऐतिहासिक भीड़ पहुंची कथा स्थल-
अवधपुरी मारूति मंगलम भवन गुढि?ारी में आज भक्तों का रेला पहुंचा था जो दोपहर 12 बजे से ही अपनी जगह तय करने पहुंच चुके थे। जब कथा शुरू हुई तो कोई भी जगह खाली नहीं बचा। अगल बगल में लगे कपड़ें के परदों को भी हटाना पड़ा और सभी कथा में सहभागिता दिखाने खाली जमीन पर ही बैठकर कथा श्रवण करते रहे।

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