मुंबई
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में जब कैंपेन अपने चरम पर था तब सीएम देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी चीफ शरद पवार का मजाक उड़ाते हुए उनकी तुलना साल 1975 में आई सुपरहिट फिल्म 'शोले' के कैरक्टर जेलर से की थी। पवार पर तंज करते हुए फडणवीस ने असरानी का मशहूर डायलॉग मारा था कि 'आधे इधर जाओ, आधे उधर जाओ, बचे वो मेरे पीछे आओ।' भले ही एक बार फिर बीजेपी, शिवसेना के साथ सरकार बनाने जा रही हो लेकिन इस बार के महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली परफॉर्मेंस शरद पवार की पार्टी एनसीपी की रही। मुकाबले में सबसे कमजोर कही जा रही एनसीपी ने सभी को चौंकाते हुए कुल 54 सीटों पर कब्जा कर लिया।
चुनावों से पहले बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन ने कहा था कि उनके मुकाबले में कोई नहीं है। भले ही इस गठबंधन ने सबसे ज्यादा सीटें जीती हों लेकिन यह कहना गलत होगा कि सत्ता की इस दौड़ में कोई था ही नहीं। बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन ने इस बार विधानसभा चुनावों में 220 सीटों से ज्यादा का टारगेट रखा था लेकिन ये दोनों पार्टियां कुल 201 सीट ही जीत सकी हैं। इस बार बीजेपी की सीटें भी पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में कम हुई हैं। इस तरह देखा जाए तो 'हारी' हुई कांग्रेस और एनसीपी दोनों ही जश्न मना रही हैं।
एनसीपी की 54 सीटों के अलावा कांग्रेस ने भी 44 सीटें महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में जीती हैं। इस तरह देखा जाए तो भले ही ये दोनों पार्टियां सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हों लेकिन खुद को मजबूत विपक्ष के तौर पर देख रही हैं। कांग्रेस और एनसीपी के इतनी सीटें जीतने के बाद भगवा खेमे का वह दावा भी गलत साबित हो गया है जिसमें उसने कहा था कि उनके मुकाबले महाराष्ट्र चुनाव में कोई है ही नहीं।
विधानसभा चुनावों से पहले शरद पवार के कई सहयोगियों ने तेजी से एनसीपी का दामन छोड़कर बीजेपी और शिवसेना का दामन थाम लिया था। भले ही बीजेपी ने ऐसे दलबदलुओं को अपने साथ जोड़ लिया हो लेकिन इससे जनता के बीच उसकी भ्रष्टाचार विरोधी पार्टी की छवि को काफी नुकसान पहुंचा। इसी बीच पार्टी में से ही फडणवीस के खिलाफ भी आवाजें उठने लगीं जिसे अनसुना कर दिया गया क्योंकि फडणवीस ने भी यह सोच लिया था कि जो साथ नहीं देगा उसे उसकी 'जगह' दिखा दी जाएगी।
फडणवीस सरकार ने मराठाओं को लुभाने के लिए 30 पर्सेंट मराठा आरक्षण का भी दांव चला लेकिन पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाड़ा के लोग फिर भी चुनाव प्रचार के दौरान शायद कहीं न कहीं बीजेपी द्वारा शरद पवार को टारगेट किए जाने को भी देख रहे थे। पश्चिम महाराष्ट्र में किसानों की बुरी हालत, ग्रामीण अर्थव्यवस्था का हाल और बाढ़ के बाद के हालात ने भी बीजेपी की इमेज को धक्का पहुंचाया और इसका सीधा फायदा शरद पवार ने उठाया और उन्होंने बीजेपी को टारगेट करना शुरू कर दिया। ठीक ऐसे ही आरोप एनसीपी के द्वारा मराठवाड़ा इलाके में भी उठाए गए।
हालांकि यह कहना भी सही नहीं है कि बीजेपी के राष्ट्रवाद के मुद्दे का कोई असर नहीं रहा है। जहां तक शहरी इलाकों की बात की जाए तो उन्होंने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन में अपना विश्वास जताया है। ऐसा फडणवीस के होमटाउन और संघ के गढ़ नागपुर के अलावा मराठवाड़ा और कोंकण के शहरी इलाकों में भी देखा गया है। कोंकण के तटीय इलाकों में भी गठबंधन में शिवसेना के होते हुए भी उसका वोट शेयर बीजेपी से लगभग 20 पर्सेंट कम रहा है। मुंबई और आसपास के इलाकों में भी बीजेपी ने शिवसेना से ज्यादा सीटें जीती हैं जबकि गठबंधन में उसे सेना से कम सीटें मिली थीं। इन इलाकों में बीजेपी ने 16 सीटों पर जबकि शिवसेना ने 14 सीटों पर जीत दर्ज की है।
चुनावों से पहले एनसीपी के सफाए की बातें उछाली जा रही थीं लेकिन हालिया विधानसभा चुनावों के नतीजों ने पार्टी में नई लीडरशिप के लिए उम्मीदें बढ़ा दी हैं। शरद पवार और प्रफुल पटेल पर हुई प्रवर्तन निदेशालय की सख्ती ने पार्टी लीडरशिप और मराठी जनता में सहयोग की भावना को बढ़ावा दिया है। एक समय पर मराठियों के बीच इसी भावना को बढ़ा कर शरद पवार केवल 38 साल की उम्र में महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने थे। हालिया नतीजों से साफ है कि मराठा वोटर्स के बीच बीजेपी और एनसीपी सीधे मुकाबले में रहीं और शरद पवार के वफादार वोटर्स एक बार फिर उनके सपॉर्ट में आ गए हैं। इन मराठा वोटर्स का फायदा एनसीपी से हाथ मिलाने के कारण कुछ हद तक कांग्रेस को भी हुआ है। कुल मिलाकर देखा जाए तो बीजेपी को मराठा वोटर्स के बारे में अपने देखने के नजरिए पर एक बार फिर 'चिंतन' करने की जरूरत है।