मध्य प्रदेश

इंदौर में घातक रसायन से बनायी जा रही हैं नकली दवा, सरकारी अस्पताल में सप्लाई

इंदौर
इंदौर में नकली दवा (Fake medicine) बनाने वाली फैक्ट्री (factory) पकड़ी गयी. इस कारखाने में सोनामिंट और सोडामिंट टेबलेट्स सोडियम बायकार्बोनेट जैसे घातक रसायन (chemicals) से बनाई जा रही थीं. ये दवाइयां प्रदेश के सरकारी अस्पतालों (Government hospitals) और इंदौर के दवा बाज़ार में खपाई जा रही थीं. ये गोरख़धंधा 20 साल से चल रहा था. फैक्ट्री चाचा-भतीजा मिलकर चला रहे थे. क्राइम ब्रांच, आयुष विभाग, ड्रग्स विभाग की संयुक्त टीम ने फैक्ट्री संचालक और कर्मचारी को गिरफ्तार (arrest) कर कारखाना सील कर दिया है.

प्रदेश भर में चलाए जा रहे शुद्ध के लिए युद्ध अभियान के तहत यह बड़ी कार्रवाई की गयी. क्राइम ब्रांच इंदौर की टीम को मुखबिर से सूचना मिली थी कि मकान नंबर 35 शिक्षक नगर में एक व्यक्ति मिलावटी दवाई बनाने का काम करता है. उसी जगह फैक्ट्री भी है. इस पर कार्रवाई के लिए इंदौर पुलिस क्राइम ब्रांच, आयुष विभाग,ड्रग्स विभाग, थाना हातोद, थाना एरोड्रम पुलिस की एक संयुक्त टीम बनायी गयी. टीम ने मौके पर पहुंचकर दबिश दी. मौके पर दो लोग मिले जिनसे नाम पता पूछने पर उन्होंने अपना नाम संतोष पिता साहिबराव पाटिल उम्र 38 साल निवास 102 धर्मराज कॉलोनी इन्दौर और फैक्ट्री का संचालक नरेन्द्र जैन पिता एस.एल. जैन उम्र 54 साल निवासी कालानी नगर इंदौर बताया.

टीम ने जब फैक्ट्री का जायज़ा लिया तो कारखाने में सोनामिन्ट नाम से दवाई बना कर होल सेल में बेची जा रही थी. कारखाने पर सोनामिन्ट नाम की दवाई की लाखों टेबलेट खुले में कंटेनर्स में रखी मिलीं. ये दवाइयां नरेन्द्र जैन की इसी फैक्ट्री में बनायी जा रही थीं. सोनामिन्ट टेबलेट मे सोडियम बायकार्बोनेट 250 एमजी, मेनथाल.03 एमजी,जींजर 10 एमजी , पिपरमेंट ऑईल .0024 एमएल, शक्कर और कलर मिलाकर बनाया जा रहा था.

एक डिब्बे में 1000 टेबलेट पैक की जाती थीं. एक डिब्बा नरेन्द्र जैन 17 रुपए में बेचता था जो मार्केट में 60 रुपए में बिकता था. संचालक नरेन्द्र जैन इस फैक्ट्री में जो दवाई बना रहा था उसमें जो सोडियम बायकारबोनेट उपयोग किया जाता है वो मेडिकल में उपयोग करने लायक नहीं है. कारखाने में कुल 27 बोरियां मिलीं जो हानिकारक सोडियम बायकारबोनेट की थीं. इससे नरेन्द्र जैन दवाई बनाकर मार्केट मे बेच रहा था. पुलिस ने सारा माल ज़ब्त कर लिया है.

चचा-भतीजे का काला धंधानरेन्द्र जैन ने अपने भतीजे राजू बंबोरिया के नाम से फार्माकेम नाम से लायसेंस ले रखा था जो आयुर्वेदिक दवाई बनाने का लाइसेंस था.लेकिन उसके कारखाने पर 2009 के पहले की कई एलोपेथिक दवाइयों की 30 बोरी रखी मिलीं, जिनकी एक्सपायरी डेट निकल चुकी थी. नरेन्द्र जैन टेबलेट बनाने के लिए दो मशीनों का उपयोग करता था.

आयुष विभाग के अधिकारियों ने अनुपयुक्त रॉ मटेरियल का सैंपल लेने के बाद एक रिपोर्ट मय प्रतिवेदन के थाना एरोड्रम में पेश की. इसमें स्पष्ट किया गया की संचालक नरेन्द्र जैन, मालिक राजू बंबोरिया और कर्मचारी संतोष पाटिल द्वारा दवाई बनाने के लिये अनुपयुक्त सोडियम बायकार्बोनेट का उपयोग कर दवाई की बड़ी खेप तैयार की जा रही है. इस प्रकार से धोखाधड़ी कर करोड़ों रुपए मुनाफा कमाया जा रहा है.इस रिपोर्ट के आधार पर थाना एरोड्रम पुलिस ने आईपीसी की धारा 420 ,274 , 275 के तहत फैक्ट्री संचालक नरेन्द्र जैन, मालिक राजू बंबोरिया, कर्मचारी संतोष पाटिल के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है. आरोपी नरेन्द्र जैन और संतोष पाटिल को गिरफ्तार कर लिया है.

आरोपी नरेन्द्र जैन ने पुलिस पूछताछ में बताया कि वह करीब 20 साल से दवाई बनाने का काम कर रहा है. पहले वो 2000 से 2009 तक एलोपेथी दवाई बनाना था. उसके बाद 2009 से वो आयुर्वेदिक दवाइयां भी बनाने लगा. उसके भतीजे राजू बंबोरिया के नाम से उसने फार्माकेम नाम से लाइसेंस ले रखा था नरेन्द्र जैन ने बताया कि वो दवाई बनाने के बाद इन्दौर शहर की कई फार्मा कम्पनियों को दवाई सप्लाई करता था. वो सुगन फार्मा,जैनम फार्मा , शाह फार्मा ,माताश्री फार्मा,ममता मेडिकोज जैसे कई फार्मा एजेंसियों को दवा बाजार में होलसेल में दवाई सप्लाई करता था.

उसने खुलासा किया कि हातोद मे पालिया रोड पर उसके भतीजे राजू बंबोरिया का एक और कारखाना है. उसमें एलोपेथिक दवाइयां बनाई जाती हैं. कारखाने पर भी क्राइम ब्रांच की दूसरी टीम ने ड्रग्स विभाग की टीम के साथ दबिश दी तो वहां पर भी लाइसेंस की शर्तो का उल्लंघन और अनियमितता पायी गयीं. यहां भारतीय ड्रग एवं कास्मेटिक एक्ट के अन्तर्गत बनाए गए कई नियमो की अनदेखी कर जानबूझकर निम्नगुणवत्ता की एलौपेथिक दवाइयां बनायी जा रही थीं.

फैक्ट्री में अकुशल औऱ बुजुर्ग महिला श्रमिक काम कर रही थीं. जहां दवाई बनायी जाती थीं वो जगह गंदगी से पटी हुई थी. दवाइयों में ना तो सही अनुपात में मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता था और ना ही लेबोरेटरी में उनका टेस्ट किया जा रहा था. एक ही कैंपस के भीतर कैप्सूल, टेबलेट्स, सीरप बनाया जा रहा था. इस प्रकार की बड़ी अनियमितता पाये जाने पर ड्रग्स विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों ने एरो फार्मा की पालिया स्थित फैक्ट्री को सील कर दिया.

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