नई दिल्ली
अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में तथाकथित मध्यस्थता के प्रयासों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। पांच जजों की संविधान पीठ अब इस मामले में विस्तृत फैसला सुनाएगी। एक बात तय है कि संविधान पीठ का यह फैसला इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की तरह भूमि के बंटवारे का नहीं होगा। उच्च न्यायालय ने विवादित स्थल को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी बोर्ड में बांटने का आदेश दिया था। सुनवाई के आखिरी दिन बुधवार को सुबह 10.30 बजे कार्यवाही शुरू होने से पहले अदालत में इस बारे में कई अर्जी रखी गई थीं। लेकिन पीठ ने कहा कि अब किसी अर्जी पर विचार नहीं किया जाएगा और सुनवाई शुरू कर दी। सर्वोच्च अदालत के सूत्रों के अनुसार, अर्जियों में से एक अर्जी मध्यस्थता पैनल की ओर से भी थी। इसमें कहा गया था कि समझौते के लिए तैयार पक्ष 18 अक्तूबर को बैठेंगे और चर्चा कर सर्वमान्य हल निकालेंगे। न्यायालय को उन्हें एक मौका देना चाहिए। लेकिन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, अब कुछ नहीं होगा, हम पांच बजे तक सुनवाई करेंगे और उसके बाद मामला खत्म। हालांकि, अदालत ने उसके बाद एक घंटा पहले ही चार बजे सुनवाई समाप्त कर दी और फैसला सुरक्षित रख लिया।
सूत्रों ने बताया कि मध्यस्थता की यह अर्जी भी उचित फार्मेट में नहीं थी, इसमें मध्यस्थता समिति के अध्यक्ष जस्टिस एमआई कलीफुल्ला और सदस्य श्रीश्री रविशंकर के हस्ताक्षर नहीं थे। अर्जी, मध्यस्थता समिति के एक सदस्य और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू की ओर से दी गई थी। पंचू ने ही तीन दिन पूर्व अदालत से आग्रह किया था कि यूपी सुन्नी बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारूकी को सुरक्षा दी जाए। दिलचस्प बात यह है कि बुधवार को फारूकी ने अदालत के अंदर जाने का पूरा प्रयास किया लेकिन उन्हें कोर्ट में जाना तो दूर परिसर के लिए भी प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। सुनवाई खत्म होने के बाद वह अपने सुरक्षाकर्मी के साथ स्वयं रुखसत हो लिए।
पिछले माह भी हुआ था प्रयास
गौरतलब है कि मध्यस्थता का ऐसा ही एक प्रयास सुनवाई के जारी रहते पिछले माह भी हुआ था। उस समय अदालत ने कहा था कि हमें कोई आपत्ति नहीं है, मध्यस्थता जारी रह सकती है पर हम सुनवाई करते रहेंगे। उस समय भी एक दो पक्ष ही इसके लिए राजी थे। मुख्य पक्षकार रामलला विराजमान तथा निर्मोही अखाड़ा मध्यस्थता के खिलाफ थे।
जमीन छोड़ने की शर्त:
सुन्नी वक्फ बोर्ड के एक वकील ने गुरुवार को नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हम राम जन्मस्थान को हिन्दुओं के लिए छोड़ सकते हैं लेकिन हमारी कुछ शर्तें हैं। उन्होंने कहा कि ये शर्तें सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद लागू हो सकती हैं।
हिन्दुओं को 1991 के पूजा के अधिकार कानून का पालन करना होगा। इस कानून में प्रावधान है कि अगस्त 1947 से पहले की स्थिति में बने पूजा स्थलों पर किसी का कोई दावा नहीं होगा और जो जिसके पास है वह बना रहेगा। वहीं, अयोध्या में लगभग 22 मस्जिदों की मरम्मत सरकार करवाए। पुरातत्व विभाग के कब्जे वाले स्मारकों में देशभर में बनी मस्जिदों को नमाज के लिए खोला जाए।
कार्यवाही नहीं रोकी :
सर्वोच्च अदालत ने गत आठ मार्च को सभी पक्षों से मध्यस्थता कर स्थायी समाधान निकालने के लिए कहा था लेकिन यह विफल रहा। शायद अदालत को इसके विफल होने का इल्म था। यही वजह थी कि संविधान पीठ ने मुकदमे की कार्यवाही नहीं रोकी और दस्तावेजों के अनुवाद तथा जवाब आदान-प्रदान का काम जारी रखा। इसके बाद कोर्ट ने छह अगस्त से रोजाना सुनवाई शुरू कर दी।