नई दिल्ली
अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष पर बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि हिंदुओं ने विवादित जगह पर भगवान राम की मूर्तियां चोरी-चुपके से रखी थीं। बता दें कि आज सुनवाई का 18वां दिन है। फिलहाल मुस्लिम पक्ष अपनी दलीलें रख रहा है। सुनवाई की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के एक सरकारी कर्मचारी को नोटिस भेजा। उनपर मुस्लिम पक्ष की दलीलें रख रहे राजीव धवन को धमकियां देने का आरोप है। राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद में क्या दलीलें रखी जा रही हैं, यहां पढ़ें
सरकारी कर्मचारी को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस: सुनवाई की शुरुआत में मुस्लिम पक्ष की तरफ से पेश राजीव धवन ने उन्हें मिली धमकियों का जिक्र किया। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के पूर्व प्रफेसर षणमुगम को नोटिस जारी किया। प्रफेसर पर धवन को धमकी देने का आरोप। कोर्ट ने प्रफेसर से जवाब मांगा है। वह चेन्नै में रहते हैं। उन्होंने राजीव को धमकी दी थी और कहा था कि उन्हें सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से पेश नहीं होना चाहिए।
(चोरी से रखी गईं मूर्तियां) राजीव धवन, सुन्नी वक्फ बोर्ड: देश के आजाद होने की तारीख और संविधान की स्थापना के बाद किसी धार्मिक स्थल का परिवर्तन नहीं किया जा सकता। राजीव धवन ने कहा महज स्वयंभू होने के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि अमुक स्थान किसी का है। सुप्रीम कोर्ट से मैं चाहूंगा कि वह इस मामले के तथ्यों के आधार पर फैसला दे। उन्होंने यह भी कहा कि मूर्ति चोरी से रखी गई थीं।
(फिर न निकले कोई रथयात्रा) राजीव धवन, सुन्नी वक्फ बोर्ड: अयोध्या विवाद पर विराम लगना चाहिए। अब राम के नाम पर फिर कोई रथयात्रा नहीं निकलनी चाहिए। उनका इशारा बीजेपी द्वारा 1990 में निकाली गई रथयात्रा की ओर था जिसके बाद बाबरी विध्वंस हुआ था।
विवादित जमीन के ढांचे के मेहराब के अंदर के शिलालेख पर 'अल्लाह' शब्द मिला। धवन साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि विवादित जगह पर मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद थी। राजीव धवन ने कहा कि बाबरी मस्जिद में भगवान रामलला की मूर्ति स्थापित करना छल से हमला करना है।
धवन ने हिन्दू पक्ष की दलील का हवाला देते हुए कहा कि मुस्लिम पक्ष के पास विवादित जमीन के कब्जे के अधिकार नहीं है क्योंकि 1934 में निर्मोही अखाड़ा ने गलत तरीके से अवैध कब्जा कर लिया था। धवन के मुताबिक, इसके बाद नमाज अदा नहीं की गई।
17वें दिन क्या हुआ?
इससे पहले सुनवाई के 17वें दिन मुस्लिम पक्षों ने मस्जिद पर हमले का जिक्र किया। कहा गया कि हिन्दुओं ने 1934 में बाबरी मस्जिद पर हमला किया, फिर 1949 में अवैध घुसपैठ की और 1992 में इसे तोड़ दिया और अब कह रहे हैं कि संबंधित जमीन पर उनके अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।
बता दें कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं। पूरा विवाद 2.77 एकड़ की जमीन को लेकर है।
नवंबर तक आ सकता है फैसला
राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील इस मामले पर नवंबर में अंतिम फैसला आने की संभावना बढ़ गई है। मामले की SC में सुनवाई 6 अगस्त से शुरू हुई थी। ऐसे में देखें तो 25 दिन में आधी सुनवाई पूरी हो चुकी है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में कोर्ट के गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि बेंच सीजेआई के रिटायर होने से पहले ही फैसला सुना सकता है। विवादित जमीन का दो तिहाई हिस्सा, जिसे मिला उसकी सुनवाई 25 दिनों में ही पूरी होने से अब जल्द फैसला आने की संभावना बढ़ गई है।
हिंदू पक्ष ने रखीं दिलचस्प दलीलें
16 दिन की सुनवाई में हिंदू पक्ष (रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा) के वकीलों ने अपनी बात को पूरी प्रमाणिकता के साथ रखने की भरसक कोशिश की है। सुनवाई के दौरान दिलचस्प दलीलें भी रखी गईं। कभी रामलला को नाबालिग बताया गया तो कभी मालिकाना हक के सबूत डकैती में लुटने की बात भी सामने आई। सुप्रीम कोर्ट ने भी राम के वंशजों के बारे में पूछकर हलचल मचा दी। सुनवाई के पहले दिन ही हिंदू पक्ष ने यह दलील रखी। निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने कहा कि विवादित भूमि पर 1949 के बाद से नमाज नहीं हुई इसलिए मुस्लिम पक्ष का वहां दावा ही नहीं बनता है। उन्होंने कहा कि जहां नमाज नहीं अदा की जाती है, वह स्थान मस्जिद नहीं मानी जा सकती है।