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अब भी प्रदूषण कम क्यों नहीं हो रहा दिल्ली-एनसीआर की हवा में

नई दिल्ली
पड़ोसी राज्यों में पराली जलना बंद हो चुका है। बावजूद इसके राजधानी दिल्ली की हवा साफ नहीं हुई है। गुरुवार को भी वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में रही। ऐसे में बड़ा सवाल है कि सबसे बड़े कारक (पराली) के न होने पर भी राजधानी और आसपास के इलाकों की हवा दमघोंटू क्यों होती जा रही है। डेटा बताता है कि बुधवार को दिल्ली में पीएम 2.5 का स्तर जो बढ़ा उसमें पराली की हिस्सेदारी कुल 5 प्रतिशत थी। बावजूद इसके एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का स्तर सामान्य से 5 गुना ज्यादा था।
बता दें कि पूरी सर्दी में जो प्रदूषण होता है उसमें पराली की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से कम ही होती है। नवंबर में यह सबसे ज्यादा (44 प्रतिशत) थी। यह डेटा एयर क्वॉलिटी ऐंड वेदर फॉरकास्टिंग ऐंड रिसर्च ने दिया है।

राजधानी में गुरुवार को लगातार दूसरे दिन वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में रही। वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) सुबह 428 रहा। एक्यूआई गाजियाबाद में 470, ग्रेटर नोएडा में 422, नोएडा में 426, फरीदाबाद में 398 और गुड़गांव में 390 दर्ज किया गया, जो कि गंभीर श्रेणी में है। बता दें कि वायु गुणवत्ता सूचकांक 0-50 श्रेणी में ‘खराब’, 51-100 में ‘संतोषजनक’, 101-300 में ‘मध्यम’, 201-300 में ‘खराब’, 301-400 में ‘बेहद खराब’ और 401-500 में ‘गंभीर’ माना जाता है। वहीं, 500 से ऊपर के एक्यूआई को ‘अति गंभीर’ श्रेणी में माना जाता है।

पराली कम, फिर भी पलूशन क्यों?
पराली कम जलने के बाद भी प्रदूषण कम क्यों नहीं हो रहा? एक्सपर्ट की मानें तो इसके पीछे मौसम संबंधी विभिन्न कारक हैं। जैसे नमी/कोहरे का बढ़ना। तापमान का गिरना और बाउंड्री लेयर का गिरना जो पलूशन फैलाने वाले तत्वों को दबाकर रखती है।

किस चीज से कितना प्रदूषण
साल 2018 का एक डेटा इसपर ज्यादा जानकारी देता है। ऊर्जा और संसाधन संस्थान और ऑटोमोटिव रिसर्च असोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) की स्टडी ने बताया है कि सर्दी में सबसे ज्यादा पलूशन इंडस्ट्रीज (30 प्रतिशत), ट्रांसपोर्ट सेक्टर (28 प्रतिशत), धूल के कण (17 प्रतिशत) से होता है। वहीं 10 प्रतिशत पलूशन डीजल जनरेटर, एयरपोर्ट, रेस्तरां, लैंडफिल आदि से होता है।

कहां से कितना पलूशन
स्टडी में पलूशन के लिए सिर्फ राजधानी को जिम्मेदार ठहराने को भी गलत बताया गया है। शहर से कुल 36 प्रतिशत पलूशन होता है। 34 प्रतिशत पलूशन के लिए एनसीआर, 30 प्रतिशत (एनसीआर के बाहर के शहर), 18 प्रतिशत के लिए राजधानी से ऊपर के राज्य और 12 प्रतिशत के लिए भारत के बाहर के कुछ देश भी जिम्मेदार हैं।

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