छत्तीसगढ़

अनोखी है रामलला के ननिहाल की कहानी, यहां भांजे के रूप में पूजे जाते हैं श्री राम

रायपुर
 भगवान राम (Lord Rama) के जीवन मूल्यों और आदर्शों पर आधारित रामायण (Ramayan) के पात्रों का नाम सुनते ही मन श्रद्धा से भर उठता है. अगर इन पात्रों के साक्ष्य कहीं मिलते हैं तो वो जगह लोगों में आस्था का केन्द्र बन जाती है. ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के चंदखुरी (Chandkhuri) में. राजधानी रायपुर (Raipur) से तकरीबन 17 किलोमीटर दूर स्थित चंदखुरी गांव को भगवान राम की मां कौशल्या का जन्म स्थल माना जाता है. यानी की ये जगह भगवान राम का ननिहाल है. प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक महाकौशल के राजा भानुमंत की बेटी कौशल्या का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से हुआ था. विवाह में भेंट स्वरूप राजा भानुमंत ने कौशल्या को दस हजार गांव भेंट स्वरूप दिया गए थे, जिसमें कौशल्या का जन्म स्थान चंद्रपुरी भी शामिल था.

चंदखुरी का ही प्राचीन नाम चंद्रपुरी था. जिस तरह अपनी जन्मभूमि से सभी को लगाव होता है, ठीक उसी तरह माता कौशल्या को भी चंद्रपुर विशेष प्रिय था. कौशल्या मंदिर के पुजारी पंडित संतोष कुमार चौबे के मुताबिक राजा दशरथ से विवाह के बाद माता कौशल्या ने तेजस्वी और यशस्वी पुत्र राम को जन्म दिया. इसी मान्यता अनुसार सोमवंशी राजाओं द्वारा बनाई गई मूर्ती आज भी चंदखुरी के मंदिर में मौजूद हैं जिसमें भगवान राम को गोद में लिए हुए माता कौशल्या की मूर्ती स्थापित है. भगवान राम के वनवास से आने के बाद उनका राज्याभिषेक किया गया. इसके बाद तीनों माताएं कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी तपस्या के लिए चंदखुरी ही पहुंची और तीनों माताएं तालाब के बीच विराजित हो गईं. तपस्या के बाद माता सुमित्रा और कैकयी दूसरी जगह चली गईं लेकिन माता कौशल्या आज भी यहां विराजमान हैं.

कौशल्या मंदिर के पुजारी पंडित संतोष कुमार चौबे के मुताबिक वाल्मिकी रामायण अनुसार जब लक्ष्मण मेघनाद के बाण से घायल हुए थे तब विभिषण के कहने पर हनुमान भगवान लंका के प्रसिध्द वैद्य सुषेण को लेकर आए और वैद्य सुषेण ने हनुमान जी को द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी लाने को कहा. जब हनुमान जी पूरा द्रोणगिरी पर्वत उठा लाए तब वैद्य सुषेण ने संजीवनी बूटी से मुर्छीत लक्ष्मण का उपचार किया था. लंका के प्रसिद्द राज वैद्य सुषेण की समाधी भी माता कौशल्या के मंदिर के पास ही मौजूद है. वहीं यहां के लोगों में भगवान राम के प्रति ऐसी आस्था है जहां त्योहारों में रामायण की चौपायी गाकर खुशियां मनाई जाती है और बच्चों को भी ये सारे दोहे मुंह जुबानी याद हैं. यहां के लोग भगवान राम को अपना भांजा मानते हैं और भांजे के रूप में ही उनकी पूजा करते हैं.

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