राजनीति

अध्यक्ष न चुनना कांग्रेस पर पड़ रहा भारी, दिल्ली दफ्तर का बिजली बिल भरने के नहीं पैसे

नई दिल्ली
प्रदेश अध्यक्ष के बिना चल रही कांग्रेस पार्टी के पास ऑफिस का बिजली का बिल भरने के पैसे नहीं हैं। बकाया राशि जमा नहीं करने की वजह से बिजली कंपनी ने प्रदेश कांग्रेस ऑफिस की बिजली शुक्रवार को काट दी। मान-मनौव्वल के बाद बिजली कंपनी ने कुछ दिन का समय दिया और बिजली की सप्लाई शुरू कर दी, वरना दिवाली से पहले प्रदेश कांग्रेस के दफ्तर में अंधेरा छा जाता।
प्रदेश कांग्रेस दफ्तर में काम करने वाले स्टाफ की दिवाली खराब होनी तय मानी जा रही है। कई स्टाफ को सैलरी नहीं मिली है। हर साल दिवाली के मौके पर मिलने वाले बोनस की तो दूर-दूर तक संभावना नहीं है। कांग्रेस दफ्तर में काम करने वाले एक स्टाफ का कहना है, 'हमारी दिवाली तो काली ही समझो, हमें इस बार कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। न अध्यक्ष है और न ही कोई ऐसा नेता जिन्हें हमारी फिक्र हो।'

20 जुलाई को शीला दीक्षित के निधन के बाद से प्रदेश कांग्रेस की स्थिति खराब होती जा रही है। प्रदेश ऑफिस का संचालन पूरी तरह प्रभावित हो गया है। हालात यह है कि ऑफिस बिजली बिल नहीं दे पा रहा है। दफ्तर में काम करने वाले स्टाफ को पूरी सैलरी नहीं मिल पा रही है। बकाया बिल की वजह से शुक्रवार को कांग्रेस दफ्तर की बिजली काट दी गई। सूत्रों का कहना है कि समय तो मिल गया, लेकिन दो से ढाई लाख रुपये का बिजली बिल भरने के लिए पैसे कहां से आएंगे।

प्रदेश कांग्रेस में 15 से 18 लोग काम करते हैं, जिसमें सफाई कर्मचारी भी शामिल हैं। ऑफिस के एक महीने का खर्च औसतन 5-6 लाख रुपये है। आमतौर पर यह खर्च प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी होती है। अध्यक्ष के पास पैसे का एकमात्र जरिया डोनेशन ही है। अध्यक्ष के बिना यह काम भी रुका हुआ है। दिल्ली में कांग्रेस के पास न तो एक सांसद है और न ही कोई विधायक। कांग्रेस की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से खराब है।

सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के अंदर पार्टी से ज्यादा लोगों को अपनी चिंता है। नेता अपने हितों को ज्यादा तवज्जो देते हैं। अब भी प्रदेश कांग्रेस में तीन-तीन वर्किंग प्रेजिडेंट हैं। अगर प्रदेश अध्यक्ष नहीं हैं, तो उन तीनों को सब काम संभालना चाहिए।

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