बिलासपुर
गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सहयोग से डॉ. विक्रम साराभाई जन्म शताब्दी वर्ष कार्यक्रम का उद्घाटन हुआ। समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. प्रकाश चौहान, निदेशक, इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ रिमोट सेंसिग, इसरो, देहरादून थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अंजिला गुप्ता ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. राजश्री बोथेल, महाप्रबंधक, आऊटरीच फेसिलिटी, एनआरएससी, हैदराबाद एवं डॉ. संजय अलंग जिलाधीश उपस्थित थे।
इस मौके पर डॉ. प्रकाश चौहान ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक, देश के महान वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई की प्रतिभा एवं कार्य को याद करने के लिए उनकी जन्म शताब्दी पर कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। आज भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में अग्रणी देश के रूप में उभर रहा है। विश्व में अंतरिक्ष की पांच बड़ी ताकतें हैं, जिनमें से एक भारत है। इसी साल इसरो की स्थापना के भी 50 साल पूरे हो रहे हैं। जीएसएलवी, पीएसएलवी सहित विभिन्न राकेटों की लांचिग कर इतिहास रचने के लिए इसरो को जाना जाता है। इन बुलंदियों की बुनियाद रखने के लिए डॉ. साराभाई के जीवन देश के युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है।
कुलपति प्रो. गुप्ता ने कहा कि इस आयोजन का होना विश्वविद्यालय के लिए गर्व का विषय है। यहां लगाई गई प्रदर्शनी व मॉडल्स न केवल विश्वविद्यालय बल्कि स्कूल के विभिन्न छात्रों के लिए रुचिकर एवं उपयोगी है। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में डॉ. विक्रम साराभाई द्वारा किया गया कार्य अनूठा है। इसीलिए उन्हें भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। यहां लगाई गई रॉकेट लॉन्चर व अन्य मॉडल्स की प्रदर्शनी से छात्र प्रेरणा लेंगे एवं उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होगा।
डॉ. अलंग ने कहा कि यह मस्ती हमेशा बनी रहनी चाहिए। यह आयोजन छात्र-छात्राओं के लिए है। उन्होंने कहा कि एनआरएससी की महाप्रबंधक डॉ. राजश्री बोथले छत्तीसगढ़ की रहने वाली हैं। यहीं से पढक? वे वैज्ञानिक पद तक पहुंची है। मेरी कल्पना है कि भविष्य में आप भी मंच पर बैठें। यह गर्व का क्षण है कि हम अपने देश के रीयल हीरो डॉ. विक्रम साराभाई का जन्म शताब्दी वर्ष मना रहे हैं। उन्होंने जो भी हासिल किया, पढ़ाई के माध्यम से। छात्रों के लिए पढऩे से बढ़ कर कुछ भी नहीं है, खासकर मध्यम वर्ग के छात्रों के लिए। जन्म शताब्दी वर्ष पर आयोजित कार्यक्रम पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमेशा प्यासा कुआं के पास आता है। आज कुआं प्यासे के पास है।