शुभ कर्म ही साथ होते हैं, इसलिए अभी भी वक्त है हमारे पास संभलने का और शुभ कर्म करने का
भोपाल. एक गांव था, वह ऐसी जगह बसा था जहां आने-जाने के लिए एक मात्र साधन नाव थी। क्योंकि बीच में नदी पड़ती थी और कोई रास्ता भी नहीं था। एक बार उस गांव में महामारी फैल गई और बहुत सी मौतें हो गयीं। लगभग सभी लोग वहां से जा चुके थे।
अब कुछ ही गिने चुने लोग बचे थे और वो नाविक गांव में बोलकर आ गया था कि मैं इसके बाद नहीं आऊंगा, जिसको चलना है वो आ जाये। सबसे पहले एक भिखारी आ गया और बोला मेरे पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। मुझे अपने साथ ले चलो, ईश्वर आपका भला करेगा। नाविक सज्जन पुरुष था, उसने कहा कि यहीं रुको यदि जगह बचेगी तो तुम्हें मैं ले जाऊंगा।
धीरे-धीरे करके पूरी नाव भर गई सिर्फ एक ही जगह बची। नाविक भिखारी को बोलने ही वाला था कि एक आवाज आयी रुको मैं भी आ रहा हूं। यह आवाज जमीदार की थी, जिसका धन-दौलत से लोभ और मोह देख कर उसका परिवार भी उसे छोड़कर जा चुका था। अब सवाल यह था कि किसे लिया जाए।
जमीदार ने नाविक से कहा- मेरे पास सोना चांदी है, मैं तुम्हें दे दूंगा और भिखारी ने हाथ जोड़कर कहा कि भगवान के लिए मुझे ले चलो। नाविक समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं। ऐसे में उसने फैसला नाव में बैठे सभी लोगों पर छोड़ दिया और वो सब आपस में चर्चा करने लगे।
इधर, जमीदार सबको अपने धन का प्रलोभन देता रहा और उसने उस भिखारी को बोला ये सबकुछ तू ले ले, मैं तेरे हाथ पैर जोड़ता हूं, मुझे जाने दे। इस पर भिखारी ने कहा- मुझे भी अपनी जान बहुत प्यारी है। अगर मेरी जिंदगी ही नहीं रहेगी तो मैं इस धन दौलत का क्या करूंगा, जीवन है तो जहान है।
तब तक सभी ने मिलकर ये फैसला किया कि ये जमीदार ने आज तक हमसे लूटा ही है। ब्याज पर ब्याज लगाकर हमारी जमीन अपने नाम कर ली। और माना कि ये भिखारी हमसे हमेशा मांगता रहा, पर उसके बदले में इसने हमें खूब दुआएं दी। और इस तरह भिखारी को साथ में ले लिया गया।
बस यही फैसला है, ईश्वर भी वही हमारे साथ न्याय करता है। जब अंत समय आता हैं तो वो सारे कर्मों का लेखा-जोखा हमारे सामने रख देता है। और फैसले उसी हिसाब से होते हैं। फिर रोना गिड़गिड़ाना काम नहीं आता। शुभ कर्म ही साथ होते है। इसलिए अभी भी वक्त है, हमारे पास सम्भलने का और शुभ कर्म करने का। बाद में कुछ नहीं होगा। शायद इसीलिए कहा गया है कि अब पछताय होत क्या जब चिडिय़ा चुग गयी खेत।