मध्य प्रदेश

STF का बड़ा खुलासा- गृह मंत्री अमित शाह का फर्जी पीए बन VIP नंबर से लगाया था गवर्नर को फोन

भोपाल
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) के प्राइवेट असिस्टेंट (PA) के नाम से मध्य प्रदेश के राज्यपाल (Governor) को फोन करने के मामले में एसटीएफ (STF) ने बड़ा खुलासा किया है. STF ने बताया कि आरोपी डेंटल डॉक्टर चंद्रेश शुक्ला (Chandresh Shukla) ने जिस नंबर से मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन (Governor Lal Ji Tandon) को फोन लगाया था, वह VIP नंबर है. यह नंबर अति महत्वपूर्ण व्यक्ति को भारत सरकार मुहैया कराती है. इस नंबर को हासिल करने के लिए लोकल इंटेलिजेंस (Local intelligence) की रिपोर्ट लगती है. नंबर लेने के लिए किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का नाम होना चाहिए. साथ ही नंबर क्यों लिया जा रहा है, इसकी वजह भी बतानी पड़ती है. आरोपी चंद्रेश ने इस नंबर को गुवाहाटी (Guwahati) के फर्जी दस्तावेज (Fake document) से हासिल किया था. इस मामले में निजी टेलीकॉम कंपनी के अधिकारियों, कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है.

गुवाहाटी के ईपिक कार्ड से लिया था सिम कार्ड
एसटीएफ की जांच में सामने आया कि आरोपी चंद्रेश ने गुवाहटी के ईपिक कार्ड के जरिए सिम कार्ड लिया था. हालांकि, VIP नंबर लेने की एक व्यवस्था है, जो भारत सरकार ने बनाई है. हर किसी को VIP नंबर नहीं मिलता है. सिर्फ VIP और VVIP व्यक्ति को ही यह नंबर मिलता है. एसटीएफ एडीजी अशोक अवस्थी ने बताया कि इसी VIP नंबर के जरिए राज्यपाल लालजी टंडन को फोन कर चंद्रेश शुक्ला को कुलपति बनाने की सिफारिश की गई थी. यह सिफारिश चंद्रेश के साथी आरोपी विंग कमांडर कुलदीप ने की थी. कुलदीप ने खुद को गृहमंत्री अमित शाह और चंद्रेश ने खुद को शाह का पीए बताया था.

एसटीएफ को गुवाहाटी के अफसरों ने दिया सर्टिफिकेट
एसटीएफ एडीजी अशोक अवस्थी ने बताया कि यह नंबर किस व्यक्ति के नाम पर लिया गया था. इसका खुलासा होने पर तमाम आरोपियों के ऊपर कार्रवाई की जाएगी. अधिकारियों की एक टीम गुवाहाटी गई थी. उसने सिम कार्ड के बारे में पता किया, तो वहां के रिटर्निंग अधिकारी ने चंद्रेश के गुवाहाटी की वोटर आईडी यानी ईपिक कार्ड को फर्जी बताया. इसका सर्टिफिकेट भी एसटीएफ को दिया गया है. यह नंबर आंध्रप्रदेश में चालू था, जबकि चंद्रेश शुक्ला भोपाल में रहता है. इस VIP नंबर को भारत सरकार की सिक्योरिटी विंग जारी करती है. लोकल इंटेलिजेंस संबंधित व्यक्ति की जानकारी जुटाकर अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को भेजता है. इसी रिपोर्ट के आधार पर भारत सरकार फैसला लेती है. इस नंबर पर कॉल बैक नहीं किया जा सकता है. यह नंबर हाई रैंक के अफसरों और जन प्रतिनिधियों को ही सभी प्रक्रिया पूरी करने के बाद मिलता है. इस नंबर को हासिल करना आसान नहीं है, लेकिन चंद्रेश को यह नंबर कैसे मिला, इसकी जांच की जा रही है. आने वाले समय में कई बड़े खुलासे हो सकते हैं.

निजी टेलिकॉम कंपनी के अफसरों की भूमिका संदिग्धइस मामले में अब निजी टेलिकॉम कंपनी की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है. अवस्थी ने बताया कि वीआईपी नंबर में प्राइवेट कॉलिंग की सुविधा है. लोकल इंटेलिजेंस की रिपोर्ट पर सिम की सहमति दी जाती है. रिपोर्ट के आधार पर नंबर जारी किया जाता है. यह रिपोर्ट सर्विस प्रोपराइटर से नहीं मिली है. हर महीने सर्विस प्रोपाइटर इसकी रिपोर्ट सरकार को भेजता है. तीन दिन हो गए हैं, लेकिन सर्विस प्रोपराइटर ने रिपोर्ट नहीं दी है. एसटीएफ को पूरा शक है कि इस मामले में टेलिकॉम कंपनी के सर्विस प्रोपराइटर और जिम्मेदारों की संदिग्ध भूमिका है. ऐसे में अब एसटीएफ एक्शन लेगी और टेलीकॉम कंपनी के कर्मचारियों से पूछताछ कर सकती है.

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