नई दिल्ली
आर्थिक आंकड़ों में निराशा के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की मौद्रिक नीति समिति की बैठक के नतीजे आज यानी गुरुवार को आने वाले हैं. आरबीआई की ये बैठक कई मायने में खास है. दरअसल, बतौर गवर्नर शक्तिकांत दास लगातार 6वीं बार बैठक की अध्यक्षता कर रहे हैं. वहीं शक्तिकांत दास का 1 साल का कार्यकाल भी पूरा हो चुका है.
ऐसे में यह संभावना है कि आरबीआई धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए रेपो रेट में एक बार और कटौती कर सकता है. अगर ऐसा होता है तो लगातार छठी बार होगा जब रेपो रेट में कटौती की जाएगी. यहां बता दें कि इस साल अबतक पांच बार रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कुल 1.35 की कटौती की है. इसका मतलब ये हुआ कि इस साल हर दो महीने पर होने वाली मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो रेट की दर घटाई गई है. रेपो रेट में आखिरी कटौती 0.25 फीसदी की अक्टूबर 2019 में हुई थी. इस कटौती के बाद रेपो रेट 5.15 फीसदी पर पहुंच गया.
अब क्यों रेपो रेट कटौती की है संभावना?
केंद्रीय बैंक धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने और कैश फ्लो बढ़ाने के लिए रेपो रेट में कटौती का फैसला ले सकता है. दरअसल, मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्शन में 1 फीसदी की गिरावट के कारण जीडीपी वृद्धि दर जुलाई-सितंबर तिमाही में 4.5 फीसदी रही, जो छह साल का न्यूनतम स्तर है. चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में यह 5 फीसदी थी. ऐसे में आर्थिक वृद्धि को गति देने के इरादे से आरबीआई रेपो रेट पर एक बार फिर कैंची चला सकता है.
क्या है रेपो रेट?
रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर केंद्रीय बैंक आरबीआई, बैंकों को कर्ज देता है. इसी आधार पर बैंकों की ओर से ग्राहकों को कर्ज मुहैया कराया जाता है. दरअसल, रेपो रेट कटौती होने के बाद बैंकों पर ब्याज दर कम करने का दबाव बनता है. आरबीआई हर दो महीने पर होने वाली मौद्रिक नीति की बैठक में रेपो रेट की समीक्षा करता है.