अध्यात्म देश मध्य प्रदेश

भोपाल के लघु वनोपज प्रसंस्करण केंद्र में आज भी मौजूद हैं रामायण कालीन वृक्ष

  • सीता अशोक, कपूर और रुद्राक्ष का है औषधीय व धार्मिक महत्व

भोपाल (रोहित वर्मा). लघु वनोपज प्रसंस्करण केंद्र (Minor Forest Produce Processing Center), बरखेड़ा पठानी में ने केवल हर्बल उत्पाद (Herbal Products) उपलब्ध हैं बल्कि यहां तमाम औषधीय पौधों की नर्सरी के साथ-साथ रामायणकालीन वृक्षों (Ramayana Tree) का भी संरक्षण किया जा रहा है। यहां की नर्सरी में मध्य प्रदेश के जंगलों में मिलने वाले औषधीय गुणों से भरपूर पौधों के अलावा धार्मिक महत्व और देवी-देवताओं से जुड़े पौधे भी उपलब्ध हैं।

सीता अशोक (Saraca Asoca): जिस पेड़ के नीचे बैठने से शोक नहीं होता, उसे अशोक कहते हैं। रामायण में इस अशोक वाटिका का भी जिक्र है। जहां माता सीता को रखा गया था। कहते हैं सीता अशोक को घर के आसपास लगाना शुभ होता है। यह ओडिशा का राजकीय वृक्ष भी है। इसका वनस्पतिक नाम सराका इंडिका है। इसे जोनेशिया अशोका के नाम से से जानते हैं। बंगाल और असम की खासी पहाडिय़ों और मुंबई के आसपास सीता-अशोक के वृक्ष काफी मात्रा में पाए जाते हैं। पौराणिक कथाओं में अशोक के पुष्प को कामदेव के पंच-पुष्पी तूरीण (तरकश) का एक पुष्प माना गया है। लुंबिनी में बुद्ध का जन्म भी सीता-अशोक के वृक्ष के नीचे ही हुआ था। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने अपना प्रथम उपदेश सीता-अशोक के नीचे बैठ कर ही दिया था। भेल क्षेत्र में इसके पेड़ लगे हैं।

रुद्राक्ष (Elaeocarpus Ganitrus): इसका भी आध्यात्मिक महत्व है। रुद्राक्ष संस्कृत भाषा के रुद्र और अक्सा शब्द से मिलकर बना है। रुद्र भगवान शिव के वैदिक नामों में से एक है। अक्सा का अर्थ है आंसू की बूंद। इसलिए इसे भगवान रुद्र यानी भगवान शिव के आंसू के रूप में भी याद किया जाता है। जनश्रुति है कि इसकी उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है। माना जाता है कि इसके धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। भारत और नेपाल में कार्बनिक आभूषणों और माला के रूप में इसका उपयोग होता है। भारतीय चिकित्सा में विभिन्न बीमारियों के इलाज के भी इसका उपयोग होता है। भोपाल में नर्सरी के अलावा भेल क्षेत्र में इसके पेड़ लगे हैं।

कपूर (Camphora Officinarum): यह एक विशालकाय, बहुवर्षायु सदाबहार वृक्ष है। यह भारत, श्रीलंका, चीन, जापान, मलेशिया, कोरिया, ताइवान, इंडोनेशिया आदि देशों में पाया जाता है। कपूर को संस्कृत में कर्पूर उडऩशील वानस्पतिक द्रव्य बताया गया है। यह तीन प्रकार का होता है। जापानी कपूर जिसके वृक्ष देहरादून, सहारनपुर, नीलगिरि तथा मैसूर आदि में होते हैं। भीमसेनी कपूर जो सुमात्रा तथा बोर्निओ आदि में होता है। जबकि पत्री कपूर भारत में कंपोजि़टी कुल की कुकरौंधा प्रजातियों से प्राप्त किया जाता है। इन प्रजातियों की पौध यहां की नर्सरी में उपलब्ध हैं।

”भविष्य की पीढ़ी के लिए इन पौधों को संरक्षित कर रहे हैं। ताकि स्कूल, कॉलेज और विभिन्न संस्थानों के वनस्पति विज्ञान के विद्यार्थी यहां आकर पौधों को पहचानें, इनके गुण, औषधीय उपयोग आदि की जानकारी प्राप्त कर सकें।” – केबीएस परिहार,नर्सरी प्रभारी विंध्या हर्बल बरखेड़ा पठानी

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