भोपाल
लगता है मध्यप्रदेश (madhya pradesh) की राजधानी भोपाल (bhopal) में होने वाली ऑल इंडिया वॉटर स्पोर्टस प्रतियोगिता (All India Water Sports Competition) के लिए पुलिस मुख्यालय (Police headquarters) के पास पैसा नहीं है. मुख्यालय ने वॉटर स्पोटर्स की स्मारिका (Souvenir) छपवाने के लिए प्रदेश के सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को कम से कम डेढ़ लाख रुपए लाने टारगेट दिया है.आदेश मिलते ही एसपी अपने काम में जुट गए हैं.
भोपाल की बड़ी झील में 19वीं अखिल भारतीय पुलिस वॉटर स्पोर्टस प्रतियोगिता-12 से 16 दिसंबर तक होने वाली है. इस प्रतियोगिता की मेजबानी मध्यप्रदेश पुलिस कर रही है.इसमें देश के सभी राज्यों की पुलिस और केन्द्रीय पुलिस संगठनों के लगभग 600 खिलाड़ी भाग लेंगे.प्रतियोगिता में कयाकिंग, केनाइंग और रोइंग प्रतियोगिता होंगी. प्रतियोगिता की व्यवस्था के लिए पुलिस महानिदेशक विजय कुमार सिंह के संरक्षण में 20 समितियां बनायी गयी हैं. सभी को अपना काम समय पर पूरा करने की हिदायत है. उन्हीं में से एक काम स्मारिका के लिए विज्ञापन जुटाने का है.
डीजीपी की तरफ से निर्देश दिया गया है उसके मुताबिक, प्रदेश के सभी एसपी को प्रतियोगिता के लिए प्रकाशित होने वाली स्मारिका के लिए कम से कम डेढ़-डेढ़ लाख रुपए जुटाने की जिम्मेदारी दी गई है.विज्ञापन के नाम पर मिलने वाले पैसे को सातवीं बटालियन के नाम से बने बैंक खाते में जमा कराया जाएगा.विज्ञापन के एवज में मिलने वाले डिमांड ड्राफ्ट या फिर चैक को इसी खाते में जमा कराया जाएगा. पीएचक्यू से सभी जिलों के एसपी को जारी किए गए पत्र में कहा गया है कि किसी भी आपराधिक या फिर विवादित व्यक्ति से विज्ञापन के नाम पर पैसा नहीं लिया जाए.
स्मारिका के लिए विज्ञापन के रेट तय कर दिए गए हैं.इसी रेट के तहत एसपी अपने जिले से डेढ़ लाख रुपए का कलेक्शन करेंगे. तय रेट के अनुसार फुल पेज कलर्ड विज्ञापन के लिए पचास हजार, हॉफ पेज कलर्ड के लिए तीस हजार, क्वार्टर पेज कलर्ड के लिए 17 हजार, कवर पेज सैकंड कलर्ड के लिए अस्सी हजार, सेकंड लास्ट कवर पेज के लिए 70 हजार और बैक कवर लॉस्ट पेज के लिए एक लाख रुपए तय किया गया है.
सभी जिलों से पीएचक्यू को पैसा मिलता है. विज्ञापन के नाम पर पचास लाख से ज्यादा का फंड जुटेगा.उसी पैसे से स्मारिका छपवायी जाएगी. बाकी पैसा प्रतियोगिता की दूसरी गतिविधियों में लगाया जाएगा.लेकिन फंड जुटाने के इस तरीके से पुलिस मुख्यालय की व्यवस्था और उसके बजट पर सवाल खड़े हो रहे हैं.