भोपाल
सूबे की आर्थिक स्थिति सुधारने की खातिर लिए जा रहे कमलनाथ सरकार (Kamal Nath government) के फैसले क्या वाकई उसके लिए मददगार साबित हो रहे हैं? या इन फैसलों का असर उल्टा हो रहा है? सितंबर के आखिर में पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) पर 5 फीसदी वैट (VAT) बढ़ाने का फैसला लेने वाली कमलनाथ सरकार को आखिर इसका कितना फायदा मिला है. आंकड़े बताते हैं कि इस फैसले से सरकार की आय बढ़ने के बजाए कम हो रही है. आय कम होने की वजह मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में पेट्रोल-डीजल के दाम अन्य प्रदेशों के मुकाबले ज्यादा होना है, लिहाजा ट्रांस्पोर्टर्स (Transporters) एमपी के बजाए पड़ोसी राज्यों से डीजल लेना ज्यादा पसंद करते हैं. ऐसे में अब सवाल ये है कि आखिर इन हालात में सरकार की वित्तीय स्थिति सुधरेगी तो कैसे?
सरकार ने सितंबर में पेट्रोल-डीजल पर 5 फीसदी वैट बढ़ाया था. इसके अगले महीने यानी अक्टूबर में प्रदेश में डीजल की खपत कम हो गई. अक्टूबर महीने में प्रदेश भर में डीजल की खपत करीब 25 करोड़ लीटर हुई. जबकि बीते साल इसी महीने में खपत का ये आंकड़ा 32 करोड़ लीटर था. इस हिसाब से देखें तो सरकार की आमदनी भी बीते साल की तुलना में 60 करोड़ कम रही. अक्टूबर 2018 में सरकार को डीजल बिक्री से 400 करोड़ रुपए आय हुई थी. वहीं अक्टूबर 2019 में डीजल बिक्री से आमदनी 340 करोड़ ही हुई. खपत कम होने की वजह ट्रांस्पोर्टर्स का पड़ोसी राज्यों से डीजल लेना बताया जा रहा है.
एमपी की कमलनाथ सरकार ने वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए पेट्रोल और डीजल पर 5 फीसदी वैट बढ़ाने का फैसला लिया था. इस फैसले से पहले सरकार बाजार से कई बार कर्ज ले चुकी थी. आइए आपको बताते हैं कि आखिर मध्य प्रदेश सरकार ने कब-कब और कितना कर्ज लिया.
पेट्रोल-डीजल पर वैट बढ़ाने के बाद डीजल की खपत और उससे होने वाली आय घटने के आंकड़ों के बाद सियासत शुरू हो गई है. बीजेपी विधायक विश्वास सारंग के मुताबिक, ये पहले से तय था कि इस सरकार में दूरदर्शिता नहीं है. जब पड़ोसी राज्यों में डीजल-पेट्रोल सस्ता होगा तो मध्य प्रदेश में खपत कम होनी ही है. जबकि कांग्रेस प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी की मानें तो महंगा डीजल-पेट्रोल केंद्र की मोदी सरकार की वजह से है क्योंकि केंद्र सरकार पहले से ज्यादा टैक्स वसूल रही है.